यही है दोहरा चरित्र, पहले जाति ढूंढते हैं फिर जातिवाद को कोसते हैं
वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भारत को गोल्ड दिलाने वाली हिमा दास ने तो भारत को सम्मान दिला दिया, लेकिन उनकी जाति खोजकर भारतीयों ने हिमा के आत्मसम्मान पर गहरी चोट की है.
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किसी के बारे में जानने के लिए जब आप गूगल सर्च पर उसका नाम टाइप करते हैं तो गूगल खुद ही डिस्प्ले कर देता है कि लोग उसके बारे में क्या-क्या और क्या सबसे ज्यादा खोज रहे हैं. वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भारत को गोल्ड दिलाने वाली हिमा दास भी आजकल काफी सर्च की जा रही हैं लेकिन सबसे ज्यादा शर्म की बात ये है कि हमारे देश के लोग उनकी उपलब्धियों के ज्यादा ये जानने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं कि उनकी जाति क्या है.
400 मीटर दौड़ 51.46 सेकंड में की खत्म
हिमा से पहले भारत की कोई महिला खिलाड़ी विश्व चैम्पियनशिप में गोल्ड नहीं जीत सकी है. और यही एक बात उन्हें सबसे खास बनाती है. हिमा के बारे में अखबारों में काफी कुछ लिखा जा रहा है, कि वो देश के किस हिस्से से हैं, उनका बचपन कैसा था, एक बार उन्होंने कार को भी हरा दिया था....वगैरह वगैरह... उनके बारे में इतना जान लेना भी मन को संतुष्टि देने के लिए काफी था कि वो असम से हैं लेकिन इंसानों की उत्सुकता खत्म नहीं होती. हिमा दास को सर्च इंजन पर ढ़ूंढा जा रहा है. लेकिन अफसोस होता है कि हमारे समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो हिमा की उपलब्धियां नहीं उनकी जाति ढूंढ रहा है.
गूगल पर हिमा दास की जाति सबसे ज्यादा ढूंढ़ी जा रही है
और इस बार गूगल सर्च खुद बता रहा है कि हिमा के बारे में उनकी जाति ही सबसे ज्यादा सर्च की जा रही है. ये सर्च सबसे ज्यादा असम और अरुणाचल प्रदेश से की जा रही है.
जाति में दिलचस्पी लेने वाले सबसे ज्यादा असम से
ऐसा पहली बार नहीं है कि लोग किसी खिलाड़ी की जाति के बारे में जानना चाहते हैं. इससे पहले जब पीवी सिंधू ने रियो ओलंपिक्स में सिल्वर मेडल जीता था तो भी लोग उनकी जाति सर्च कर रहे थे, खासतौर पर आंध्रप्रदेश और तेलंगाना क्षेत्र के.
जिस दिन ये खबर आई कि भारत की हिमा दास ने अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में गोल्ड जीता है. उस दिन से हिमा सिर्फ हिमा न रहीं. भारत की उड़न परी बनीं और देश के उन तमाम महान खिलाड़ियों के समकक्ष आ गईं जिन्होंने अपने खेल के जरिए भारत को दुनिया में सम्मान दिलवाया. तब से इस लड़की के बारे में जिनता सुना और पढ़ा, उससे अंदरी ही अंदर इसके प्रति सम्मान और गर्व की अनुभूति होती गई.
पहले हिमा की उस दौड़ का वीडियो जिसमें 400 मीटर दौड़ने में उन्हें 51.46 सेकंड लगे.
Unforgettable moments from @HimaDas8’s victory. Seeing her passionately search for the Tricolour immediately after winning and getting emotional while singing the National Anthem touched me deeply. I was extremely moved. Which Indian won’t have tears of joy seeing this! pic.twitter.com/8mG9xmEuuM
— Narendra Modi (@narendramodi) July 14, 2018
उसके बाद हिमा ने जिस तरह बधाई देने वालों का आभार व्यक्त किया...
— Hima Das (@HimaDas8) July 13, 2018
और आखिर में वो वीडियो जब भारत के सम्मान में राष्ट्रगान की धुन बजाई जा रही थी और हिमा को मेडल दिया गया था. तब हिमा इतनी भावुक हो गई थीं कि उनकी आंखों से आंसू बहे जा रहे थे.
Tears rolling down her cheeks, #HimaDas sings the Indian National anthem after receiving the Gold medal. A moment to savour. For what else can true love be quantified in but tears. pic.twitter.com/BRmFernRsB
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) July 13, 2018
इस मौके पर शायद ही कोई ऐसा होगा जिसकी आखें नम न हुई होंगी. हिमा को देखकर गर्व का अनुभव करने वाले भारतीय शायद और ही हैं, ये वो लोग नहीं हैं जो गर्व करने से पहले खिलाड़ी की जाति खोजते हैं, ये वो लोग हैं जिन्हें किसी की भी जाति से कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन इनसे अलहदा भारत के ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर जाति व्यवस्था के खिलाफ बातें तो बहुत करते हैं, जातिवाद को कोसते तो बहुत हैं लेकिन असल में यही लोग किसी पर गर्व करने से पहले उनकी जाति का पता करते हैं.(ज्यादातर इसलिए कहा क्योंकि हिमा को लेकर उनकी जाति को सबसे ज्यादा खोजा गया है). इसे दोहरा चरित्र कहा जाना गलत नहीं होगा. अफसोस कि भारत के लोग इसी चरित्र के साथ जीते हैं.
ये वही लोग हैं जो इस बात से भी परेशानी महसूस करते हैं कि हिमा को ठीक से अंग्रेजी बोलना भी नहीं आता. अरे क्या फर्क पड़ता है कि वो क्या बोलती हैं और कैसे बोलती हैं, वो हिंदी बोलती हैं या असमिया; या वो किस जाति से ताल्लुक रखती हैं. अरे पूरा भारत अंग्रेजी बोले तो भी वो हिमा दास नहीं बन सकता. लेकिन हमारी सुई वहीं जाकर क्यों अटक जाती है, लोगों की सोच का दायरा राई के दाने जितना बड़ा है. आश्चर्य नहीं कि कल लोगों को उनके रंग से भी परेशान होने लगे.
#HimaDas speking to media after her SF win at #iaaftampere2018 @iaaforg Not so fluent in English but she gave her best there too. So proud of u #HimaDas Keep rocking & yeah,try ur best in final! @ioaindia @IndianOlympians @TejaswinShankar @PTI_News @StarSportsIndia @hotstartweets pic.twitter.com/N3PdEamJen
— Athletics Federation of India (@afiindia) July 12, 2018
हिमा ने तो भारत को सम्मान दिला दिया, लेकिन उनकी जाति खोजकर भारतीयों ने हिमा के आत्मसम्मान पर गहरी चोट की है. इन लोगों ने हिमा को ये जताने की कोशिश की है कि उसकी मेहनत, उसकी काबिलियत, इस जीत के लिए उसका संघर्ष उसकी जाति के आगे ये सब कुछ बौना है.
हिमा के लिए इतने गर्व और सम्मान की भवनाओं के साथ मैं खुद को शर्मिंदा भी महसूस करूंगी ये सोचा न था ! Sorry Hima !!
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