ट्रैफिक समस्या से जूझ रहे शहरों को शिमला दिखा सकता है नई राह
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक दिलचस्प निर्देश राजधानी शिमला के लिए जारी किया. इसके अनुसार जब तक कोई व्यक्ति यह साबित नहीं करता कि उसके पास पार्किंग की जगह है, वह कोई गाड़ी नहीं खरीद सकता.
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हाल में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक दिलचस्प निर्देश राजधानी शिमला के लिए जारी किया. इसके अनुसार जब तक कोई व्यक्ति यह साबित नहीं करता कि उसके पास पार्किंग की जगह है, वह कोई गाड़ी नहीं खरीद सकता. इसमें कोई राय नहीं कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे.
इस निर्देश के बाद पिछले कुछ महीनों में शिमला में गाड़ियों की खरीददारी और पंजीकरण में काफी कमी आई है. पिछले कुछ दिनों में शिमला में ट्रैफिक और पार्किंग की समस्या तेजी से बढ़ी है. हाईवे और सड़कों के किनारे कई किलोमीटर तक गाड़ियों की लंबी लाइन लगी रहती है. शहर में आने वाला हर नया पर्यटक इस समस्या को महसूस कर सकता है.
शहर वालों के लिए खासकर यह बड़ी समस्या है. रोज का ट्रैफिक जाम, गाड़ियों का रेला, यह सब उनके रोजमर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा सा बन गया है. इसलिए राज्य सरकार के इस समस्या को सुलझाने में नाकाम होने के बाद जब हाई कोर्ट ने दखल दिया, तो कई लोगों ने इस पर संतोष और खुशी जताई. शिमला के लोगों और हर साल आने वाले पर्यटकों के लिए यहां गाड़ी चलाना किसी डरावने सपने जैसा हो गया था.
हालांकि गाड़ी खरीदने से पहले पार्किंग की जगह पक्की करने की प्रक्रिया को जरूरी बनाने वाला शिमला देश का पहला शहर नहीं है. लेकिन निश्चित रूप से शिमला ने देश के और शहरों खासकर मेट्रो शहरों को कुछ करने का काम जरूर किया है. इससे वे भी रोज बढ़ती ट्रैफिक समस्या से निजात पाने की तरकीब खोज सकेंगे. सिंगापुर में इस मामले में बेहद सख्त नियम काफी पहले से ही हैं. वहीं, यहां हिल स्टेशनों जैसे आइजोल और गैंगटॉक में भी पार्किंग स्पेस के बिना आप गाड़ी नहीं खरीद सकते.
शिमला पर्यटकों के बीच आइजोल और गैंगटॉक से ज्यादा लोकप्रिय है. गर्मियों के दिनों में शिमला में पर्यटकों की संख्या करीब-करीब दोगुनी हो जाती है. कभी ब्रिटिश काल में गर्मियों में भारत की राजधानी शिमला ने दूसरे शहरों को भी तेजी से बढ़ रहे ट्रैफिक समस्या से निपटने का एक संदेश दिया है.
एक आंकड़े के अनुसार, शिमला में करीब 80,000 पंजीकृत गाड़ियां हैं. लेकिन इनमें से ज्यादातर लोगों के पास गैराज या घर में पार्किग की जगह नहीं है. एक अधिकारी के अनुसार इनमें से करीब 80 प्रतिशत गाड़ियों को सड़क के किनारे ही पार्क किया जाता है.
एक दूसरे अधिकारी ने बताया कि शहर में सार्वजनिक तौर पर केवल 1000 गाड़ियों के लिए ही पार्किंग की सुविधा है. लेकिन इससे दोगुनी गाड़ियां हर रोज पर्यटकों के साथ शहर में प्रवेश करती हैं.
आकड़ों के अनुसार पिछले बीस सालों में पंजीकृत गाड़ियों की तादाद शहर में काफी बढ़ी है. 1995 में यह संख्या 16,450 थी लेकिन अब यह 80,000 तक जा पहुंची है. शिमला में हर महीने 3,000 से ज्यादा गाड़ियों का पंजीकरण होता है. हालांकि हाई कोर्ट के प्रतिबंध के बाद यह संख्या घट कर 900 के करीब पहुंच गई है.
नए नियम के अनुसार अब हर खरीददार को नगरपालिका से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना होगा. नगरपालिका उसके आवेदन को स्थानीय पुलिस स्टेशन के पास भेजेगी. पुलिस उस व्यक्ति के निवास पर जाएगी और इस संबंध में रिपोर्ट भेजेगी कि उसके पास पार्किग की उपयुक्त जगह है या नहीं.
इसमें दो राय नहीं कि यहां भी कुछ लोग इस कानून की अनदेखी करने का कोई रास्ता खोज ही लेंगे. मसलन हो सकता है कि वे गाड़ी कहीं और से खरीद लें और उस रजिट्रेशन नंबर को जारी रखें. वहीं, कई लोग दूसरे जिलों से अपने किसी और रिश्तेदार के नाम पर गाड़ी खरीद सकते हैं. लेकिन फिर भी इस प्रतिबंध के दूरगामी परिणाम होंगे.
हाई कोर्ट के एक और निर्देश के अनुसार पुलिस को साफ कहा गया है कि वे उन गाड़ियों को उठवा लें जो रोड पर पार्क हैं. इससे भी यहां रहने वाले लोगों पर एक दबाव बनेगा. वे इस बात का ख्याल रखेंगे कि उनकी गाड़ी सड़क के किसी भी हिस्से का अतिक्रमण न करे.
गाड़ियों की खरीद से संबंधित नए नियम सरकार द्वारा सख्ती से लागू कराने के लिए हाई कोर्ट की तारीफ होनी चाहिए. साथ ही शिमला को ज्यादा खूबसूरत बनाने में मदद के लिए भी अदालत को श्रेय दिया जाना चाहिए. अदालत ने शिमला के सभी घर मालिकों को हर तीन साल में अपने छतों को लाल या हरे रंग से रंगने का निर्देश दिया है. ऐसा नहीं करने वालों को न केवल जुर्माना देना होगा. साथ ही नगरपालिका द्वारा छत रंगाने के खर्च को भी वहन करना होगा. इसका नतीजा यह हुआ कि अब शिमला दूर से लाल या हरे रंगे में बेहद आकर्षक दिखता है.
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