हिंदू पाकिस्तान शशि थरुर के अस्थिर दिमाग की उपज है
हिंदू धर्म ही ये अनुमति देता है कि आप राम में विश्वास न रखें और फिर भी खुद को गर्व से हिंदू कहें. किसी भी दूसरे देश में कोई भी नागरिक बहुसंख्यकों की धार्मिक निष्ठा पर आघात करने की हिम्मत नहीं करेगा.
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भारत की आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक हिंदू हैं. एक धर्म के रूप में हिंदू धर्म बहुआयामी है, जिसमें शास्त्रों, जीवनशैली, विचारधारा, प्रथाओं और संस्कृति की बहुलता शामिल है. यह विचारों और अभिव्यक्तियों की विविधता से घिरा हुआ है. यह धर्म आपको नास्तिक होते हुए भी खुद को हिंदू कहने की अनुमति देता है. इसके अलावा, यह सुनिश्चित करता है कि हिंदू धर्म के अनुयायी न सिर्फ सहिष्णु हों, बल्कि सामाजिक तौर पर अपने से अलग धर्मों से सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव भी रखे.
विचारों में यह बहुलता मतदान के पैटर्न और हिंदुओं के राजनीतिक संबद्धताओं में साफ दिखती है. लेकिन दुर्भाग्यवश, हिंदू धर्म की यही बहुलता राजनेताओं द्वारा उसके शोषण के लिए दरवाजे खोल देती है. अंग्रेजों की फूट डालो और शासन नीति की ही तरह स्वतंत्र भारत में उदारवादियों ने हिंदुओं को बार-बार विभाजित करके अपनी राजनीति को बरकरार रखा है.
भारत में लोगों द्वारा राजनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए, समानांतर विचारधारा स्थापित करने के लिए जो 'हिंदू' को 'आतंकवादी' जैसे शब्दों के साथ पूरे समुदाय के लिए घृणा फैलाने के लिए, या रचनात्मकता के लिए एक अनियंत्रित उपकरण के रूप में हिंदू धर्म का दुरुपयोग किया जा रहा है. ये पूरी प्रक्रिया इतनी सूक्ष्म है कि किसी को भी इस दुरूपयोग के बारे में पता नहीं है.
हाल ही में, सेलिब्रिटी राजनेता शशि थरूर ने एक अंग्रेजी भाषा प्रयोगशाला के एक गैर जिम्मेदार छात्र की तरह व्यवहार करने का फैसला किया. उनका मानना था कि "हिंदू पाकिस्तान" शब्द का उपयोग करके वह अल्पसंख्यकों का ध्यान अपनी तरफ खींच पाएंगे. थरूर कांग्रेस के उन कुछ नेताओं में से एक हैं जो चुनाव नहीं होने के बावजूद मंदिरों के अपने दौरों का प्रचार करते हैं. इसलिए हम में से ज्यादातर लोगों का मानना था कि थरूर की यह टिप्पणी राहुल गांधी की मुस्लिम समर्थक छवि को चुनौती देने के मकसद से एक सोचा समझा प्रयास था.
इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए इस राजनीतिक हिंदू ने एक किताब लिखी "Why I am a Hindu". इस किताब का शीर्षक कांचा इलियाह द्वारा लिखी गई किताब Why I Am Not a Hindu, और भगत सिंह द्वारा लिखे गए निबंध Why I Am an Atheist से प्रेरित हो सकता है. थरूर ने पुस्तक में उल्लेख किया है, "मैं दूसरे जितने धर्मों को जानता हूं उनसे ज्यादा खुद को हिंदू धर्म के सिद्धांतों से जुड़ा हुआ पाता हूं." हालांकि, एक तरफ जहां उनकी पार्टी ने दो साल के बाद इफ्तार की मेजबानी कर मुसलमानों को समर्थन देने का विकल्प चुना. वहीं दूसरी ओर थरूर ने अलग ही रास्ता चुना और 'हिंदू पाकिस्तान' पर उपदेश देने का फैसला किया.
कोई भी हिंदू जो अपने धर्म को इतना समझने का दावा भी करता है कि एक किताब लिख दे, कभी भी 'हिंदू' और 'पाकिस्तान' को एक साथ रखने के बारे में सोचेगा भी नहीं. अगर इतना ही काफी नहीं था तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इसका समर्थन करने वाले हिंदुओं की संख्या यकीन करने लायक नहीं थी. लेकिन देश भर में हिंदू इस बात से परेशान थे कि उनके धर्म को एक असफल आतंकवादी राज्य के बराबर लाकर खड़ा किया जा रहा था. अगर "भगवा आतंक" जैसे बयान ने हिंदुओं को नाराज किया, तो "हिंदू पाकिस्तान" की भविष्यवाणी ने उन्हें तार तार कर दिया.
लेकिन शब्दों के साथ थरूर के प्रयोग यहीं पर नहीं रुका.
उन्होंने भारत में वर्तमान युग की तुलना "हिंदू तालिबान" के साथ करके एक बार फिर हिंदू धर्म और तालिबान दोनों ही के बारे में अपने ज्ञान की कमी को दिखाया. मैं इस हिंदू लेखक से उस पद्धति के बारे में विस्तार से बताने का आग्रह करती हूं जिसने उन्हें ये निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित किया कि हिंदू धर्म जैसा धर्म, जो 10,000 से अधिक सालों से चला आ रहा है और जिसने सदियों से अपने ऊपर हुए कई तरह के आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया, एक दशक के भीतर विघटित हो जाएगा और एक आतंकवादी संगठन में बदल जाएगा.
इस संदर्भ में अगर देखें तो थरूर दूर दूर तक हिंदू नहीं है. बल्कि वो एक ऐसे नेता है जो सिर्फ लोगों को डरा रहे हैं.
अप्रैल में, हिंदू पौराणिक कथाओं की अमेरिकी विशेषज्ञ, ऑड्रे ट्रुस्के ने हिंदू भगवान राम के चरित्र को "misogynist pig" के रूप में व्याख्या करने का फैसला किया.
वो लिखती हैं- एक समय था जब दशरथ के बेटे, सीता से अपनी बुराई सुन नहीं पाए. अग्निपरीक्षा के समय सीता ने राम से क्या कहा और जब लक्ष्मण ने हिरण का पीछा करते हुए राम का साथ देने से मना कर दिया था इस पर सीता ने जो आरोप लगाए वो आपको सुनना चाहिए.
दूसरे ट्वीट में वो लिखती हैं- जिन लोगों को इस पूरी घटना का पता नहीं है. मैं उनके लिए वाल्मिकी के शब्दों का टूटा फूटा अनुवाद यहां कर रही हूं: अग्निपरीक्षा के समय सीता ने राम को misogynist pig और गंवार कहा था. स्वर्णमृग की घटना के समय सीता, लक्ष्मण द्वारा कामुक व्यवहार का आरोप लगाती हैं.
There was a time when Dasaratha's sons could handle criticism from Sita. You should hear what she said to Rama during the agnipariksha, and her unseemly accusations against Lakshmana when he hesitated to go after Rama in the golden deer incident. https://t.co/x97QQ9slhl #Ramayana
— Audrey Truschke (@AudreyTruschke) April 19, 2018
इस महिला को सोशल मीडिया पर लोगों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. हालांकि कुछ हिंदूओं ने इसपर आश्चर्यजनक रुप से चुप्पी साधे रखी. रामायण के 300 से अधिक प्रकार हैं. प्रत्येक संस्करण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतिनिधि है जो हिंदू धर्म को प्रोत्साहित करता है. हालांकि, उस महिला ने अपनी बात की ज़िम्मेदारी भी नहीं ली, इसके बजाय उसने ये दावा किया कि यह वाल्मीकि की व्याख्या है.
अपने एक आर्टिकल में वह लिखती हैं: "राम के खिलाफ महत्वपूर्ण दृष्टिकोणों को शामिल करने में हिंदू परंपराएं काफी सहिष्णु रही हैं. हालांकि आज के समय का हिंदुत्व इन मानकों को कम करने की कोशिश करता है."
वास्तव में यह इस हिंदू धर्म की सहिष्णु प्रकृति ही है जिसे बार-बार भावनाओं के उल्लंघन करने के लिए प्रयोग किया जाता है. हालांकि इस विषय पर कुछ विशेषज्ञों ने विकृति को उजागर किया है, लेकिन उनके समर्थन में आने वाले हिंदुओं की संख्या परेशान करती है. महिला को अपनी बात सही ढंग से रखने और शांत सभ्य तरीके से अपनी बात रखने के लिए कहने के बजाए उन्होंने उसके युद्ध के सिद्धांत पर सहमति जताई और उसको आगे बढ़ाया. अब इस महिला ने न सिर्फ खुद हिंदू पौराणिक कथाओं पर नियमित टिप्पणीकार के रुप में स्थापित कर लिया है, बल्कि वह जल्दी ही भारत में भारतीय इतिहास पर व्याख्यान भी देगी.
2007 में, यूपीए सरकार ने सेतुसमुद्रम नहर परियोजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया. इसने एक विवाद को जन्म दिया क्योंकि इस परियोजना में राम सेतु की चौड़ाई को बढ़ाना शामिल था. सेतुसमुद्रम एक ऐसा पुल है जिसे खुद राम का बनाया माना जाता है.
रामायण और रामचरितमानस पर यकीन नहीं कर सकते!
सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में, यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में धार्मिक दावों को खारिज कर दिया था. हलफनामे में कहा गया "वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस को प्राचीन भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. लेकिन इन साहित्यों को और इसमें वर्णित घटनाओं के अस्तित्व को अविश्वसनीय रूप से साबित करने के लिए ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं कहा जा सकता है." इस तरह से उन्होंने इसकी सटीकता पर सवाल उठाते हुए राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया.
यह इतने सारे राष्ट्रों में हिंदुओं और राम के अनुयायियों के विश्वास पर आघात था. उसका अतिक्रमण था.
राम एशिया में कई देशों का सांस्कृतिक प्रतीक हैं. उनके अस्तित्व पर सवाल उठाकर, लाखों हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई.
दुर्भाग्यवश, क्योंकि हिंदू धर्म आपको राम में विश्वास न करने की अनुमति देता है और फिर भी आप खुद को गर्व से हिंदू कह सकते हैं इस बात का अधिकार भी देता है. इस याचिका का प्रतिरोध खुद हिंदुओं द्वारा किया गया और हिंदू याचिकाकर्ता ने ही इसका समर्थन किया. यहा राम में विश्वास करने वाले हिंदुओं और उन हिंदुओं के बीच का एक संघर्ष था, जो ये मानते थे कि राम सिर्फ एक कवि की कल्पना मात्र है. किसी भी दूसरे देश में कोई भी नागरिक बहुसंख्यकों की धार्मिक निष्ठा पर आघात करने की हिम्मत नहीं करेगा.
इसका जवाव ये है कि भारत, पाकिस्तान नहीं है. भारत के लोग उदार और आत्मनिर्भर हैं.
ऊपर बताए गए कई घटनाओं के जरिए ही पता चलता है कि हिंदुओं को केवल एक संख्यात्मक बहुमत में तब्दील कर दिया गया है. उनकी विविधता ही उनकी कमजोरी बन गई है. और उनकी मिश्रित संस्कृति, समुदाय को तोड़ने वाले लोगों के लिए एक जरिया है. हिन्दूओं को हिंदूओं द्वारा ही आपस में लड़ाया जाता है. ये वो लोग होते हैं जो मानते हैं कि वे हिंदू धर्म में एक नया बदलाव ला सकते हैं.
जो राम को एक misogynist के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, कृष्णा को इश्कबाज़ के रूप में और देवी को "वेश्या" रूप में पेश कर रहे हैं उन्हें ये बात याद रखनी चाहिए कि वो आग से खेल रहे हैं.
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