Holika Dahan 2022: भक्त तो प्रहलाद हैं फिर होलिका की पूजा क्यों होती है?
जो होलिका (Holika dahan) भक्त प्रहलाद को जलाकर मार देना चाहती थी, उसकी पूजा क्यों की जाती है? लोग होलिका को जलाते भी हैं और उसे माता की तरह पूजते भी हैं, लेकिन क्यों?
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होलिका दहन (Holika dahan 2022) पर कई लोगों के मन में यह सवाल आता होगा कि जो होलिका, भक्त प्रहलाद को जलाकर मार देना चाहती थी, उसकी पूजा क्यों की जाती है? लोग होली (Holi 2022) से पहले होलिका को जलाते भी हैं और उसे माता की तरह पूजते भी हैं, लेकिन क्यों?
तो फिर रावण दहन से पहले पूजा क्यों नहीं होती? हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार महिलाएं श्मशान नहीं जा सकतीं, लेकिन वही महिलाएं होलिका दहन की पूजा ((holika dahan puja) पूरे विधी-विधान से कर सकती हैं? होलिका को जलते हुए देख सकती हैं? विष्ण के भक्त तो प्रहलाद हैं लेकिन पूजा होलिका की क्यों की जाती है? क्या होलिका पूजा सिर्फ भक्त प्रहलाद से संबंधित है?
लोग होलिका को जलाते भी हैं और उसे देवी की तरह पूजते भी हैं, लेकिन क्यों?
होलिका पूजा की पौरणिक मान्यता क्या है?
कथाओं के अनुसार, होलिका-पूजन के पीछे यह कहानी बताई जाती है. जिस दिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने वाली थी. उस दिन नगर के सभी लोगों ने घर-घर में अग्नि प्रज्वलित कर प्रहलाद की रक्षा करने के लिए अग्निदेव से प्रार्थना की थी. प्रसन्न होकर अग्निदेव ने लोगों की प्रार्थना को स्वीकार किया. जिसके फलस्वपूर होलिका नष्ट हो गई और अग्नि की कसौटी में से पार उतरा हुआ प्रहलाद नरश्रेष्ठ बन गए. मान्यता है कि, प्रहलाद को बचाने की प्रार्थना के रूप में प्रारंभ हुई घर-घर की अग्नि पूजा ने कालक्रमानुसार सामुदायिक पूजा का रूप ले लिया. इस तरह गली-गली में होलिका की पूजा प्रारंभ हो गई.
होलिका दहन की कथा क्या है?
होलिका दहन की पौराणिक कथा में हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास मानी जाती है. इस कथा के अनुसार, असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद श्रीहरि भगवान विष्णु के परम भक्त थे. यही बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी. स्वंय को भगवान मानने वाले हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को आठ दिनों तक कड़ी यातनाएं दीं. उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा.
होलिका के पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को नहीं जला सकती. उसके पास एक ऐसा वस्त्र था जो आग में नहीं जल सकता था. भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गई, लेकिन बालक की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप प्रह्लाद के लिए बनाई चिता में स्वयं होलिका जल मरी. इसलिए लोग इस दिन होलिका दहन की परंपरा का पालन करते हैं. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि, होलिका ने यह पाप अपने भाई के डर से किया था. एक स्त्री होने के नाते उसका दहन करने से पहले महिलाओं उसकी पूजा कर उसे सम्मान देती हैं.
हिंदू पौराणिक कथाओं में यह माना गया है कि, होलिका पूजा करने से घर में समृद्धि आती है. होलिका पूजा करने के बाद लोग सभी प्रकार के भय पर विजय प्राप्त कर लेते हैं. होलिका दहन को असत्य पर सत्य की जीत के रुप में मनाया जाता है.
क्या होली का कोई वास्तविक रूप भी है?
सोशल मीडिया पर कई ऐसी पोस्ट वारल हो रही हैं जो इसे मौसम, खेती-बाड़ी, ऋतु और हमारी जीवनचर्या से जोड़ रही हैं. ऐसे में होलिका पूजा को सिर्फ एक कथा से जोड़ना बैमानी लगता है. बसन्त ऋतु के मौसम में अनाज पक जाते हैं. जिसमें चना, मटर, गेंहू, जौ आदि शामिल हैं. खेतों में पीले सरसों के फूल लहलहाते हैं. लोग आपस में मिलजुल उत्साह मनाते हैं. यही भारतीय त्योहारों की खूबसूरती है कि उसके बारे में जानकर कई रंग जुड़ने लगते हैं.
होलिका दहन की घटना को असत्य पर सत्य की जीत के रुप में मनाया जाता है
असल में इस पर्व को बसंत ऋतु से जोड़कर देखा जाता है. इस पर्व में बसन्त ऋतु के नए अनाजों से यज्ञ किया जाता है. जहां होली होलक शब्द का अपभ्रंश है. होलक का मतलब तिनके में भुने हुए फली वाले अन्न से है. जो वात-पित्त-कफ जैसे दोषों को खत्म करता है.
वहीं किसी अनाज के ऊपर परत को होलिका कहते हैं. वहीं अनाज के अंदरूनी गिदी को प्रहलाद कहते हैं. आप इसे ऐसे समझिए, चना का ऊपरी भाग वाला छिलका होलिका है और चने के अंदर के खाने वाले हिस्सा प्रहलाद है. वहीं होलिका को माता कहते हैं, क्योंकि वही चना आदि का निर्माण करती है. जब हम चना, मटर, गेहूं और जौ को भुनते हैं तो ऊपरी खोल (होलिका) पहले जलता है. इस प्रकार गिदी (प्रहलाद) बच जाता है. इसके बाद ही लोग खुश होकर होलिका माता की जय बोलते हैं, क्योंकि होलिका रुपी ऊपरी परत ने खुद को जलाकर प्रहलाद यानी चना, मटर को बचा लिया.
मानव सृष्टि की यह परम्परा रही है कि वह नए अनाज को सबसे पहले अग्निदेव व पितरों को समर्पित करते थे. इसके बाद ही वे उस अन्न का भोग करते थे. हमारा कृषि वर्ग दो भागों वैशाखी और कार्तिकी में बटी है. जिसे वासन्ती-शारदीय और रबी-खरीफ की फसल कहते हैं. परंपरा के अनुसार, पके हुए इन अनाजों को आग में डालने से यह सूक्ष्म होकर पितरों देवों को प्राप्त हो जाता है.
दूसरा कारण यह है कि हम हर साल होलिका दहन करते हैं और इसमें आखत डालते हैं. यह आखत अक्षत का अपभ्रंश रुप है. अक्षत को चावल कहते हैं वहीं अवधि भाषा में आखत को आहुति कहते हैं. इसे आप आहुति कहें या चावल कहें, यह सब यज्ञ की प्रक्रिया है. हम जो परिक्रमा देते हैं, यह भी यज्ञ की प्रक्रिया है.
इस तरह होलिका पूजा हर साल सामूहिक यज्ञ की परम्परा रही होगी. सामूहिक बड़े यज्ञ से अग्नि ले जाकर लोग अपने-अपने घरों में हवन करते थे. बाहरी वायु शुद्धि के लिए विशाल सामूहिक यज्ञ होते थे और घर की वायु शुद्धि के लिए छोटे-छोटे हवन करते थे.
एक बात यह भी है कि, ऋतुओं के मिलने से रोग उत्पन्न होते हैं. होली हेमन्त और बसन्त ऋतु का योग है. इसलिए रोग निवारण के लिए यज्ञ ही सर्वोत्तम साधन है. इस हिसाब से होली उत्सव यज्ञ का प्रतीक है. इस सांस्कृतिक त्योहार में होलिका दहन रूपी यज्ञ में लोग परम्परा का पालन करते लोग तिल, मूंग, जड़ी बूटी, अनाज से हवन करते हैं.
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