हाउसवाइफ को वीकली ऑफ लेने का हक है या नहीं?
गृहिणी की कभी छुट्टी नहीं होती. मां को तो हमने महान की उपाधि देकर उसे हमेशा के लिए ऑन ड्यूटी पर लगा दिया. भला ममता की मूरत यह कैसे कह सकती है कि आज उसका काम करने का मन नहीं कर रहा है.
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कल्पना कीजिए, घर की महिलाएं एक दिन किचन से छुट्टी ले लें तो...और मदर्स दे पर सोशिल मीडिया पर प्यार लुटाने वाले बच्चे उनके हिस्से का काम करें तो? पत्नियों को उनके पति एक दिन आराम करने का ऑफर दें तो? अब कल्पना से बाहर आकर, हकीकत में इस फॉलो करने का वक्त आ गया है.
असल में, हम ऑफिस में काम करते हैं तो हमें वीकली ऑफ मिलता है. किसी दिन तबियत खराब हो जाने पर हमें छुट्टी भी मिल जाती है, लेकिन गृहिणी की कभी छुट्टी नहीं होती, उनका कभी ऑफ नहीं होता.
मां को तो हमने महान होने की उपाधि देकर हमेशा के लिए ऑन ड्यूटी पर लगा दिया. वो ठहरी ममता की मूरत, तो अब वे यह कैसे कह सकती हैं कि आज उनका काम करने का मन नहीं कर रहा है.
घर की महिला यह कह ही नहीं सकती कि आज उसका काम करने का मन नहीं है
वह तो बीमार होने के बाद भी रसोई में बच्चों के लिए रोटी बनाती दिख जाएगी, बच्चे इस तस्वीर को बड़े गर्व के साथ सोशल मीडिया पर शेयर भी कर देते हैं. वे कैप्शन देते हैं मां का प्यार... अरे तो बच्चे कब मां की तरह बनेंगे, क्या उन्हें बीमार मां से काम करवाना चाहिए? क्या वे अपने लिए एक दिन रोटी नहीं बना सकते या चावल नहीं खा सकते?
संडे के दिन ऑफिस जाने वाले छुट्टी पर होते हैं. वे आराम करते हैं और हाउसवाइफ उनके आराम का पूरा ध्यान रखती हैं. बाहर काम करने वालों के लिए संडे का दिन स्पेशल होता है. उस वे देर से सोकर उठते हैं, उनके लिए स्पेशल नाश्ता बनता है. लंच भी खास होता है और रात का खाना भी लजीज होता है. दोस्त और रिश्तेदार आ गए तो उनकी खातिरदारी की जिम्मेदारी भी गृहिणी के ऊपर ही होती है. हम यह नहीं कह रहे हैं कि बाहर काम करने वाले को आराम नहीं करना चाहिए.
हमें गृहिणियों को किचन में देखने की आदत है
वहीं घर की महिला को किसी दिन जब बाहर जाना होगा तो सबसे पहले उसे यह चिंता सताएगी कि सब काम जल्दी-जल्दी खत्म करना है. वह दोपहर का खाना बनाकार जाएगी और शाम के खाने की तैयारी करके जाएगी. वहीं उसे शाम को जल्दी घर आने की टेंशन भी लगी रहेगी, क्योंकि अगर वह लेट हुई तो शाम की चाय और डिनर का क्या होगा? इस तरह वे बाहर जाकर भी एंजॉय नहीं कर पाती हैं.
हम तो बस यह पूछ रहे हैं कि क्या हाउस वाइफ को हफ्ते में एक दिन भी आराम करने का हक नहीं? घरवाले तो यही समझते हैं कि वह महिला है, उसने पुरुष से शादी की है. वह पत्नी, बहू और मां है इसलिए उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह सुबह जल्दी उठकर रसोई संभाल ले और सबका ख्याल रखे. तो क्या सभी घरावालों को मिलकर उसके आराम के बारे में नहीं सोचना चाहिए? कहना आसान है कि घर में काम ही क्या है? जवाब चाहिए तो एक दिन गृहिणी का किरदार निभाकर देखें.
सोचिए, क्या होगा अगर वह एक दिन वह देर से सोकर उठे? क्या हुआ कि किसी दिन उसका किचन में काम करने का मन न करे. क्या हुआ कि किसी दिन वह भी बेड पर लेटी रहे. कोई उसे चाय बना कर देदे, कोई नाश्ता बना दे और कोई खाने की तैयारी कर दे. कोई उसे कह दे कि आज तुम किचन में कदम मत रखना क्योंकि आज तुम्हारी छुट्टी है.
यहां तो जब सोकर जगो तो मां या पत्नी किचन में मिलती है. पिता और पति को जैसे देर तक सोने का अधिकार विरासत में मिला है. स्कूल से घर आने पर हम मां-मम्मी करते किचन की तरफ ही भागते थे, क्योंकि पता है कि मां वहीं मिलेगी. असल में हमें गृहिणियों को किचन में देखने की आदत है. तभी को जब कोई त्योहार पड़ता है तो सभी लोग त्योहार मनाते हैं और घर की महिला रसोई में ही रह जाती है. हमने ईद और होली दोनों त्योहारों में अलग-अलग घरों में मां और पत्नी को किचन में ही देखा है.
कहा जाता है कि घर की महिला मां अन्नपूर्णा का रूप है. क्या कभी हमने उस अन्नपूर्णा को हमारा पेट भरने के लिए धन्यवाद कहा है? हम तो उसके बनाए खाने में मीन-मेक निकालते रहते हैं. हमें हर दिन खाने में कुछ नया स्वाद चाहिए होता है और वह हर दिन हमारे लिए नए-नए व्यंजन बनाने की कोशिश करती रहती है. तो क्या आपको नहीं लगता है कि जब वह कहे आज मेरा काम करने का मन नहीं है तो आप इस बात को सामान्य रूप में लें. आपको नहीं लगता है कि हफ्ते में एक छुट्टी लेने का अधिकार तो उसका भी बनता है?
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