New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 जून, 2016 07:30 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

कितनी अजीब बात है, ये वही देश है जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां क्लाइमेट चेंज का असर बहुत व्यापक तौर पर दिखने लगा है. बांग्लादेश का एक बड़ा तटीय हिस्सा धीरे-धीरे समुंद्र में डूब रहा है. हाल के वर्षों में उन तटीय क्षेत्रों से पलायन तेजी से हुए हैं और आज पूरी दुनिया में यह चर्चा का विषय है. लेकिन अब इसी देश के एक छोटे से शहर ने वायु प्रदूषण की रोकथाम में जो मिसाल कायम की है, वो दिलचस्प है और हैरान करने वाली भी.

दिल्ली में जब ऑड ईवेन को लेकर बात शुरू हुई तो सियासत ने भी अपने लिए मौका खोज लिया. प्रदूषण और उससे जुड़ी समस्या को ताक पर रख कर बहस का रूख हम सबने कहीं और मोड़ दिया. कभी कोई ठोस बहस ही नहीं हो सकी और क्या किया जाए...कैसे किया जाए. खैर, दिल्ली की बात छोड़िए, बांग्लादेश का रूख कीजिए. यहां एक शहर है राजशाही. पिछले दो वर्षों में इस शहर में वायु प्रदूषण और हवा में घुले खतरनाक छोटे-छोटे कणों को दूर करने के लिए जो काम किए उसकी सराहना पूरी दुनिया में हो रही है.

इस शहर की हवा में 2014 में PM10 कणों की मात्रा थी 195 माइक्रोग्राम प्रति वर्ग मीटर. अब 2016 में ये घट कर केवल 63.9 रह गई है. मतलब, इन दो वर्षों में PM10 की मात्रा में करीब दो-तिहाई गिरावट आई है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है. यही नहीं, PM2.5 कणों में भी करीब पचास फीसदी की कमी आई है. दो साल पहले ये 70 माइक्रोग्राम प्रति वर्ग मीटर था और अब 37 रह गया है.

rajshahi-650_061716071743.jpg
 पूरी दुनिया में है राजशाही की चर्चा (साभार- मॉडलअर्थलैंडस्केप्स डॉट कॉम)

गौरतलब है कि PM10 और PM2.5 हवा में घुले मिट्टी या धूल के कण होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक हैं. ये आसानी से सांसों के जरिए हमारे फेफड़ो और फिर उसके जरिए हमारे खून और फिर पूरे शरीर में पहुंच जाते हैं. अक्सर, बड़े-बड़े शहरों में निर्माण, सड़कों पर आती-जाती गाड़ियों से दबकर तो कई बार दूसरे कारणों से ये कण PM10 या PM2.5 में बदल जाते हैं.

वैसे तो, राजशाही एक छोटा सा शहर है. गाड़ियां उतनी नहीं हैं. कारखाने भी बहुत ज्यादा नहीं है. इसलिए, शायद आप कहें कि राजशाही के लिए प्रदूषण से निपटना बड़ी चुनौती नही थी. हो सकता है, लेकिन फिर भी इस शहर ने जो कमाल किया..उसके मुकाबले भारत के कई छोटे शहर उसके सामने नहीं टिक सकते. ब्रिटिश अखबार 'दि गार्डियन' के अनुसार इस शहर ने एक के बाद एक कई ऐसे कदम उठाए जिसने आज इसका रंग-रूप ही बदल दिया है.

इन तरीकों ने किया कमाल..

- पेड़ लगाने को लेकर व्यापक अभियान शुरू हुए. समूचे शहर में 'जीरो स्वायल' प्रोग्राम लागू है. मतलब सड़क किनारे का कोई हिस्सा छूटे न. हर जगह पेड़, घास या फूल लगे हों. मिट्टी की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई जो तेज आंधी या तूफान में धूल का काम करे.

- शहर का मुख्य ट्रांसपोर्ट बैट्री से चलने वाला रिक्शा है और इनकी शुरुआत यहां 2004 से ही शुरू कर दी गई. उन्हें तभी चीन से ले आया गया. ट्रकों की दिन में शहर में एंट्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई.

- शहर में या उससे बाहर जो भी छोटे-मोटे कारखाने या ईंट की भट्टियां थीं, उन्हें बदला गया और नई तकनीक का इस्तेमाल शुरू हुआ.

इस बात पर जोर दिया गया कि शहर में फुटपाथों की संख्या बढ़ाई जाए. द गार्डियन के अनुसार, शहर के चीफ इंजिनियर अशरफुल हक जब 2010 में लंदन गए तो वहां उन्हें फुटपाथों का महत्व समझ आया.

- हक ने लंदन में देखा कि वहां लगभग हर किसी को एक दिन में दो किलोमीटर पैदल चलना ही होता है. लेकिन यहां लोग इससे परहेज करते हैं. वे घर से निकलते हैं और रिक्शा की तलाश शुरू हो जाती है. जाहिर है, इसका एक कारण अच्छे फुटपाथ का न होना भी था. कई फुटपाथ आधे-अधूरे थे तो कई टूटे-फुटे, तो कहीं गंदगी का ढेर और इन सकता नतीजा धूल और प्रदूषण. लेकिन इस शहर ने उस रवायत को बदला. हक बताते हैं कि शहर की सड़कें उतनी चौड़ी तो नहीं है कि हर जगह पर्याप्त मात्रा में अलग-अलग लेन बनाया जाए, लेकिन जहां भी जगह है, साईकिल चालकों के लिए लेन का निर्माण हो रहा है.

- यही नहीं, हक ने कई दूसरे देशों जैसे जापान और चीन में शहरों के रख-रखाव और वहां प्रदूषण से निपटने की तकनीक का अध्ययन किया. हक के अनुसार शहर के लोगों ने भी खूब बढ़-चढ़ कर सहयोग किया.

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय