पासपोर्ट अधिकारी ने जानकारी क्या माँग ली, देश में 'धर्म निरपेक्षता' ख़तरे में आ गई
भारत सरकार ने जांच किए बिना ही तन्वी सेठ और उनके पति को पासपोर्ट जारी कर दिया, लेकिन मामला तो कुछ और ही निकला. दुख की बात ये है कि सरकार ने सेक्युलर छवि तो बचा ली, लेकिन नियमों की बारह बजा दी.
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'तन्वी सेठ' उर्फ 'शादिया हसन' अपने पति अनस सिद्धीकी के साथ पासपोर्ट बनवाने लखनऊ के पासपोर्ट कार्यालय पहुँची थीं. अपने आवेदन को लेकर तन्वी पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा के पास गईं. यहाँ तक सब ठीक था. पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया के दौरान पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा के आग्रह पर तन्वी ने अपना निकाह नामा दिखाया. निकाह नामा में उसका नाम 'शादिया हसन' था, पर वह अपने इस नाम को पासपोर्ट में अंकित नहीं करना चाहती थी. यहीं से सारा विवाद शुरू हो गया.
पासपोर्ट अधिकारी के इस आग्रह का तन्वी ने विरोध किया और उसकी बात मानने से मना कर दिया. तुरंत ही विकास मिश्रा ने इस घटना की पूरी जानकारी अपने उच्च अधिकारी को दे दी. तन्वी ने पासपोर्ट अधिकारी पर धर्म के नाम पर भेदभाव करने का आरोप लगाया तो दूसरी ओर विकास मिश्रा ने इस आरोप को सरासर खारिज़ कर दिया.
तन्वी सेठ और उनके पति
यह बड़े दुख की बात है की पूरी जाँच किए बिना विकास मिश्रा का लखनऊ से गोरखपुर तबादला कर दिया गया और उन पर विभागीय करवाही के आदेश दे दिए गए. ऐसा लगता है की भारत सरकार स्वयं को धर्म निरपेक्ष दिखाने के चक्कर में फँस गई. पूरे तथ्यों की जाँच किए बिना, तुरंत तन्वी को पासपोर्ट दे दिया गया. एक व्यक्ति के दो आधिकारिक नाम कैसे हो सकते है? जब निकाह नामा पर तन्वी का नाम 'शादिया हसन' लिखा है तो उसे 'तन्वी सेठ' के नाम का पासपोर्ट देना बिल्कुल ग़लत है. एक व्यक्ति के दो नाम होना नियमों के खिलाफ है. फ़र्ज़ी नाम से पासपोर्ट बनाने के कारण अबू सलेम की प्रेमिका मोनिका बेदी को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी. इससे पता चलता है की पासपोर्ट में ग़लत जानकारी देना कितना बड़ा अपराध है. तन्वी वर्तमान में नोएडा में निवास कर रही है पर उनका लखनऊ पासपोर्ट कार्यालय से आवेदन करना भी नियमों के विरुद्ध था.
स्वयं को धर्म निरपेक्ष साबित करने की होड़ में विदेश मंत्रालय इन सारे नियमों को भूल गया. भारत सरकार को यही डर था की कहीं उसे मुस्लिम विरोधी न घोषित कर दिया जाए. इसलिए पूरी जाँच के बिना 24 घंटे के अंदर तन्वी को पासपोर्ट दे दिया गया.
पूर्व में भी ऐसे कुछ किससे हुए हैं जब तथ्यों की जाँच किए बिना, लोगों, मीडिया और समाज के दबाव में आकर सरकारों और संस्थानों ने ग़लत निर्णय लिए है. 2015 में मिस्बाह कादरी को मुस्लिम होने के कारण मुंबई में घर ने देने की खबर झूठ साबित हुई थी. 2014 में रोहतक की बहनो द्वारा दो लड़कों पर लगाए गए उत्पीड़न के आरोप झूठे साबित हुए थे. आरोप लगाना बहुत आसान है पर जब तक आरोप साबित न हो जाए तब तक किसी की प्रताड़ना नहीं होनी चाहिए. अफ़सोस 'मैं भी धर्म-निरपेक्ष' की दौड़ में भाग रहीं भाजपा सरकार को तथ्यों के बजाए अपनी छवि ज़्यादा महत्वपूर्ण लगी. यही इस देश का दुर्भाग्य है.
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