आम आदमी से विलेन, और विलेन से बेचारा बनने तक का सफर
क्लीन चिट मिलने के बाद चौदहवें दिन 22 नवम्बर को अशोक जेल से छूटा. लेकिन आखिरी के ये 14 दिन अशोक के लिए एक सुखद एहसास था. वो कैदी जो कभी उसके दुश्मन थे अब उसकी मदद के लिए खड़े थे. सबकी नजर में अशोक अब बेचारा बन चुका था.
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8 सितम्बर से पहले तक अशोक एक आम आदमी था. उसे उसके गांव घामडड़ोज के कुछ लोग और रेयान स्कूल में जिन लोगों के नीचे वो काम करता था, के अलावा कोई नहीं जानता था. हर दिन सुबह-सुबह 5 बजे वो घर से करीब 3 किलोमीटर दूर रेयान स्कूल पहुंच जाता. और अपने तय रूट की बस में सवार हो जाता. अशोक स्कूल बस में कंडक्टर था. लिहाजा बच्चों को बस में सुरक्षित चढ़ाने और उतारने की जिम्मेदारी उसकी ही थी.
8 सितम्बर को भी हर दिन की तरह वो सुबह सुबह स्कूल पहुंच गया. और बस में बैठकर काम पर निकल गया. करीब 7 बजकर 50 मिनट पर अशोक अपनी बस के साथ सब बच्चों को लेकर स्कूल पहुंचा. लेकिन अगले 15 मिनट में स्कूल में जो कुछ भी हुआ उसने अशोक की जिंदगी बदल दी. रेयान स्कूल के वाशरूम में 7 साल के प्रद्युम्न ठाकुर की लाश मिली. बच्चे के गले के पास तेज धारदार हथियार से दो बार वार कर उसका कत्ल किया गया था. कत्ल के 4 घंटे के बाद ही गुड़गांव पुलिस ने कह दिया कि कातिल की पहचान हो गई है. और शाम होते होते एक आम इंसान देश का सबसे बड़ा विलेन बन गया. पुलिस ने कहा कि अशोक ने प्रद्युम्न का शोषण करना चाहा और फिर घबराहट में उसका कत्ल कर दिया. अगले दिन सुबह 9 सितम्बर को तमाम टीवी कैमरों के सामने अशोक ने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया. बस फिर क्या था, सभी को पुलिस की थ्योरी सही लगने लगी.
कैमरे पर अशोक का ये कबूलनामा पूरे देश ने देखा और अशोक देश का सबसे बड़ा विलेन बन गया. उसके बाद शुरु हुई गुड़गांव पुलिस की जांच. कभी खबर आती कि पुलिस आगरा गई, वो चाकू बरामद करने जो उसने आगरा से खरीदा और फिर उसी से कत्ल किया. पुलिस रिमांड पूरी करने के बाद ये विलेन जब जेल पहुंचा तो उसका जेल में विलेन की तरह ही स्वागत किया गया. पुलिस सूत्रों के मुताबिक अशोक की जेल में जमकर पिटाई की गई. जेल के सभी कैदियों की निगाह में भी अशोक एक ऐसा विलेन था जिसे तुरंत सजा मिलनी चाहिए थी.
अशोक का जीवन ही बदल गया
सबके इंसाफ का अपना तरीका होता है, लिहाजा अशोक पर खतरा बढ़ गया. जेल में ही अशोक को कैदियों से अलग सुरक्षित रखा गया. बाहर घरवाले जब कोर्ट में वकील की तलाश में गए तो वकीलों ने अशोक का केस लड़ने से ही इंकार कर दिया. अब भला इतने बड़े विलेन का साथ देकर कौन विलेन बने! लेकिन अभी भी कुछ लोग थे जिनकी नजर में अशोक विलेन नहीं था. और वो अशोक के परिवार के अलावा सिर्फ एक शख्स था जिसे गुड़गांव पुलिस की इस जांच पर जरा सा भी भरोसा नहीं था.
वो इंसान और कोई नहीं बल्कि प्रद्युम्न ठाकुर के पिता वरुण ठाकुर थे. इनका कहना था कि पुलिस की जांच सही नहीं है, कत्ल किसी और ने किया है और उन्होंने केस की सीबीआई जांच की मांग कर दी. किस्मत से वरुण ठाकुर की ये बात सरकार मे मान ली और 15 सितम्बर को केस सीबीआई के हवाले कर दिया गया. गुड़गांव पुलिस कमिश्नर ने कत्ल के दो दिन बाद ही कह दिया था कि केस में एक हफ्ते के अंदर चार्जशीट दाखिल कर दी जाएगी. जिस दिन केस गुड़गांव पुलिस से लेकर सीबीआई को दिया गया, पुलिस उसी दिन चार्जशीट दाखिल करने वाली थी. पुलिस की उस वक्त की इस हड़बड़ी की वजह अब साफ समझ में आ रही है.
केस लेने के बाद कई दिनों तक जब सीबीआई की तरफ से हलचल नहीं दिखी तो वरुण ठाकुर के सब्र का बांध टूट गया. उन्होंने केस में जल्द कार्रवाई की मांग की. इसके बाद 8 नवम्बर को सीबीआई ने कत्ल के इस केस में 16 साल के लड़के को पकड़ा और अशोक को क्लीन चिट दे दी. विलेन अब बेचारा बन गया. जेल में बंद कैदियों ने खसकर उन सबने जिसने किसी ना किसी तरह से अशोक को सताया था अब वो उसके साथ हो गए.
क्लीन चिट मिलने के बाद चौदहवें दिन 22 नवम्बर को अशोक जेल से छूटा. लेकिन आखिरी के ये 14 दिन अशोक के लिए एक सुखद एहसास था. वो भले ही जेल में था, लेकिन उसे पता था कि अब कभी भी उसे बेल मिल जाएगी. वो कैदी जो कभी उसके दुश्मन थे अब उसकी मदद के लिए खड़े थे. सबकी नजर में अशोक अब बेचारा बन चुका था.
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