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Updated: 15 जून, 2015 03:16 PM
रश्मि सिंह
रश्मि सिंह
 
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इतने वर्षों से मुझे शादी के कड़े कॉम्पिटीशन के बारे में नहीं पता था. जब मैं खुद इस मेट्रोमोनियल मार्केट में गई तब मुझे इसका सामना करना पड़ा. मुझे भरोसा है कि यहां सभी वर्गों की दुल्हनों को बहुत ही काबिल-ए-गौर तरीके के साथ पेश किया जाता है.

रविवार के समाचार पत्रों में आने वाले वैवाहिक विज्ञापनों में फिट करने के लिए सावधानी के साथ कंटेंट तैयार किया जाता है. इसका बारीकी से स्वमूल्यांकन भी करना होता है.एक प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र में रविवार को प्रकाशित कुछ "वर चाहिए" विज्ञापनों का अवलोकन करने के बाद मैं कह सकती हूं कि मैं कहीं टिकती ही नहीं.

मेरे परिवार ने वैवाहिक मानकों के हिसाब से उनकी साधारण सी बेटी के लिए एक वैवाहिक विज्ञापन देने का फैसला किया था. हालांकि, उन्हें यह आइडिया ड्रॉप कर देना चाहिए था क्योंकि उसके पास ऐसे गुण नहीं थे, जिनको अखबार में छापा जा सके.

क्या वाकई वे अपनी उस बेटी की शादी की तैयारी कर रहे थे जिसका रंग साफ नहीं है, जो "घरेलू" नहीं है, जो खाना पकाना नहीं जानती और जो हर टॉम, डिक और हैरी के साथ अपने शौक के बारे में बात करने से मना कर देती है. मेट्रोमोनियल विज्ञापन हमें विश्वास दिलाते हैं कि इस तरह के उम्मीदवार मेट्रोमोनियल विज्ञापन देने के हकदार भी नहीं हैं.

बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाले हैंडसम लड़के के लिए, जो सात अंकों में वेतन पाता हो, जो "एक सुसंस्कृत परिवार से आता हो, इस तरह के दूल्हों को अधिकांश परिवार प्रभावित करना चाहते हैं.अब मैं "साफ रंग, स्लिम और घरेलू" नहीं होने की वजह से रेस से बाहर हूं. मेरे भीतर आत्मविश्वास को कुचलने के जिम्मेदार विज्ञापनों की छानबीन करने की उत्सुकता है.

मेरे विश्लेषण पर किसी प्रकार के अध्ययन के लिए विचार किया जा सकता है. करीब 80 वैवाहिक विज्ञापनों को देखने के बाद मेरे कुछ ऑब्जर्वेशन हैं. जिसका एक छोटा सा नमूना मैं यहां पेश कर रही हूं:

01. विज्ञापनों की रागिनी गा रहे "वर चाहिए" सेक्शन को आसानी से "पेश है दुल्हन" नाम दिया जा सकता है.

02. लड़कियों के लिए शब्द रणनीतिक रूप से चुने जाते हैं. जैसे 'वर्किंग' और 'वैल सैटल्ड', लगता है जैसे दहेज के लिए कोई और आइटम हो. लड़कों के लिए प्रोफेशनल स्टेटस बेचने का मुख्य बिंदु है. लड़कियां शायद ही कभी अपने वेतन या पैकेज का उल्लेख करती हों, लेकिन लड़के इसे लिखना कभी नहीं भूलते.

03. लड़कियों के परिवारों PQM (प्रोफेशनली क्वालिफाइड मैच) को तरजीह देते हैं या ज्यादा पसंद करते हैं. वे खाने की आदतों के आधार पर लड़के की खोज करते हैं.लड़का पक्ष पिछली जानकारी के लिए विशिष्ट हो सकता है: लड़कियों के शैक्षिक योग्यता से लेकर उनके रंग तक और यहां तक कि ऊंचाई को लेकर भी. कुछ भी मांग के योग्य नहीं है.

04. जाहिर है, घर बनाने की क्षमता लड़कियों के वैवाहिक योग को बढ़ाती है लेकिन लड़कों के नहीं. लड़कियों के परिवारों से आने वाले ज्यादातर विज्ञापनों में "घरेलूपन" का दावा किया जाता है, लेकिन मुझे शादी के बाजार में कोई "घरेलू" लड़का नहीं मिला.मैं वैवाहिक विज्ञापनों के माध्यम से तय हुई कुछ शादियों में गई हूं और वहां मुफ्त स्वादिष्ट भोजन और महंगे ड्रिंक्स का मज़ा भी लिया है. लेकिन हैरानी होती है कि उन विज्ञापनों के लिए एक जैसे शुल्क चुकाने के बावजूद दुल्हन का परिवार दूल्हे के सामने गाय क्यों बन जाता है. जाहिर है, एक जैसा शुल्क कभी-कभी ग्राहक से एक जैसे दर्जे या बर्ताव का वादा नहीं करता है."घरेलू" शब्द का इस्तेमाल वैवाहिक विज्ञापनों में कड़ाई से किया जाता है. सब जानते हैं कि एक "घरेलू" लड़की शादी के बाजार के लिए विशेष नस्ल होती है.

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लेखक

रश्मि सिंह रश्मि सिंह

लेखिका NewsFlicks में एसोसिएट एडिटर हैं.

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