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Updated: 26 मार्च, 2015 10:40 AM
आशीष पांडे
आशीष पांडे
 
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अपने स्वार्थ के लिए इतिहास को अगवा करने के कई मामले सामने आते रहे हैं. ऐसा ही एक ताजा मामला स्वर्ण मंदिर और जलियांवाला बाग के शहर अमृतसर का है. शनिवार, 24 जनवरी को मैं वहीं था. देखा कि सिख शहीदों में से एक, बाबा दीप सिंह की जयंती पर जुलूस निकाला जा रहा है. यह आयोजन स्वर्ण मंदिर और शहर के लोगों ने मिलकर किया था. वे बताना चाहते थे कि किस तरह से बाबा दीप सिंह ने सिख धर्म की शक्ति और विचार को आगे बढ़ाया.

लेकिन तभी मेरी नज़र एक होर्डिंग पर पड़ी, जिस पर जरनैल सिंह भिंडरावाला की बड़ी सी तस्वीर लगाई गई थी. मेरे जेहन में 70 से 80 के दशक का वह बीता वक्त घूमने लगा जब इस अलगाववादी की आवाज़ का असर पूरे पंजाब में दिखाई दे रहा था. पंजाब के इतिहास की सबसे पवित्र आत्माओं के सम्मान में शहर और वहां की जनता द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान मैं ये तस्वीर देख कर मैं हैरान रह गया.

मैंने वहां उस होर्डिंग की तस्वीरें खींचने की कोशिश की लेकिन कुछ लोगों को ये नागवार गुजरा. मुझे इस बात ने चौंका दिया कि इस शहर के लोगों ने अपने इस एतिहासिक पारंपरिक जुलूस में इस अलगाववादी आदमी की तस्वीर को लगाने की इजाजत कैसे दे दी? कैसे लोग अपने इतिहास को अगवा होने दे रहे हैं?

मैं हैरान हूँ, कि अशांत पंजाब के उस दौर को लेकर चर्चा होने के बजाय खामोशी है.

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लेखक

आशीष पांडे आशीष पांडे

लेखक एक पत्रकार हैं.

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