पहले बने आदर्श पति और सास फिर मिलेगी आदर्श बहू
अगर ससुराल का हर व्यक्ति अपनी भूमिका को आदर्श तरीके से निभाये और आने वाली बहू से स्नेह, सहयोग और सम्मान का व्यवहार करे तो ये लगभग सुनिश्चित है कि बहू भी आदर्श भूमिका निभाने को तैयार रहेगी.
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भोपाल का बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय 3 महीने का एक कोर्स शुरू करने जा रहा है, जिसमें लड़कियों को ये सिखाया जाएगा कि कैसे आदर्श बहू बनें. कोर्स की समाप्ति पर सर्टिफिकेट भी मिलेगा. विश्वविद्यालय के उप कुलपति डी सी गुप्ता का कहना है कि सास-बहू के झगड़े को रोकने के इरादे से ये कोर्स शुरू किया जा रहा है. विश्वविद्यालय का यह भी कहना है कि इससे महिला सशक्तिकरण को बल मिलेगा.
मध्य प्रदेश के भोपाल में एक यूनिवर्सिटी आदर्श बहू बनाने का कोर्स शुरू कर रही है.
दरअसल, भारतीय समाज में विवाह एक ऐसा संस्थान है, जिसके सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू हैं. पश्चिमी समाज की तरह हमारे यहां विवाह दो व्यक्तियों के बीच नहीं, बल्कि 2 परिवारों के बीच होता है. शादी होते ही एक लड़की के लिए पत्नी, बहू, भाभी जैसे तमाम रोल तय हो जाते हैं और उससे जुड़ी भूमिकाएं और उम्मीदें भी. अब तो संयुक्त परिवार की परंपरा काफी कम हो गई है लेकिन अभी भी शादी के बाद बहू को पति के अलावा सास-ससुर, देवर और ननद के साथ काफी वक्त बिताना पड़ता है. किसी भी परिवार में सास-बहू के बीच अक्सर विवाद के मामले सामने आते रहते हैं. सास को लगता है कि बहू अपनी जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभा रही तो बहू महसूस करती है कि सास से उसे स्नेह और सहयोग नहीं मिल रहा है, जिससे अक्सर परिवार में तनाव बना रहता है. टीवी पर आने वाले तमाम सीरियल तो इसी विषय पर आधारित होते हैं.
दरअसल सास और बहू दो अलग-अलग पीढियों से आती हैं और अक्सर दोनों एक दूसरे को उनके नजरिये से देखने समझने की शायद कोशिश नहीं करते हैं. लेकिन इस मामले में मैं व्यक्तिगत तौर पर महसूस करता हूं कि सबसे ज्यादा जिम्मेदारी सास या ससुराल पक्ष की होती है. एक लड़की की शादी होकर जब वो अपने ससुराल आती है तो उससे उम्मीद की जाती है कि वो पत्नी, बहू, भाभी जैसी तमाम रिश्तों को बहुत खूबसूरती से और आदर्श तरीके से निभाए. नई दुल्हन के लिए हालात काफी मुश्किल होते हैं. उसके लिए माहौल, घर के लोग, उनका स्वभाव, खान-पान की आदत सब कुछ नया होता है. कई बार जिस माहौल में उसने अपने जीवन के 25-30 साल गुजारे होते हैं वो काफी अलग होता है इसलिये उसे तालमेल बैठाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
मेरा मानना है कि किसी भी नई दुल्हन को आदर्श बहू बनाने की जिम्मेदारी ससुराल वालों से शुरू होती है. अगर एक अकेली बहू से परिवार के 6-8 लोगों को खुश रखने की उम्मीद की जा सकती है वो भी एक नए माहौल में तो पति और सास सहित परिवार के 6-8 लोग मिलकर एक नई बहू को प्यार और सम्मान देकर खुश क्यों नहीं रख सकते? उम्र में बड़े और जीवन का ज्यादा अनुभव रखने वाले सास और ससुर क्या बहू से आदर्श व्यवहार की उम्मीद रखने से पहले खुद आदर्श सास-ससुर बनने को तैयार हैं. क्या सास ने अपने लड़के की परवरिश इस तरह की है कि वो एक आदर्श पति की भूमिका निभा सके? अगर ससुराल का हर व्यक्ति अपनी भूमिका को आदर्श तरीके से निभाये और आने वाली बहू से स्नेह, सहयोग और सम्मान का व्यवहार करे तो ये लगभग सुनिश्चित है कि बहू भी आदर्श भूमिका निभाने को तैयार रहेगी, और ऐसे किसी कोर्स की जरूरत नहीं होगी, अन्यथा आदर्श बहू के साथ आदर्श सास और आदर्श पति के कोर्स भी चलाने चाहिए.
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