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Updated: 15 अप्रिल, 2016 05:52 PM
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असम में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. कांग्रेस अपना किला बचाने में लगी है और बीजेपी इसे कांग्रेस मुक्त कराने में. लेकिन दिलवारा बेगम को उनके शौहर एनुद्दीन ने शादी से पहले ही मुक्त कर दिया है. वैसे तो इस चुनाव और दिलवारा बेगम के तलाक का कोई कनेक्शन नहीं होना चाहिए था, लेकिन हो गया है. एनुद्दीन को यह नहीं जंचा कि दिलवारा ने बीजेपी को क्यों वोट दिया. गुस्सा आया और कह दिया- तलाक, तलाक, तलाक...

असम के सोनितपुर विधानसभा सीट पर पहले चरण में वोटिंग थी. मस्जिद से फरमान जारी हो चुका था- कांग्रेस को वोट दो. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि प्रदेश के मुसलमान यानी 34 फीसदी वोटर कांग्रेस के चुनाव निशान पंजे पर बटन दबा रहे हैं. लेकिन सोनितपुर की दिलवारा बेगम को अपनी विधानसभा में सबसे उपयुक्त कैंडिडेट प्रमोद बोराठाकुर लगे, जो बीजेपी के उम्मीदवार हैं, सो अपना अमूल्य वोट उनके नाम कर दिया. इतना ही नहीं, वोट डालने के बाद दिलवारा ने पति के सामने यह जाहिर कर दिया. मस्जिद, मौलवी और शौहर, सबसे अलग. फिर क्या था 10 साल पुरानी शादी की शामत आ गई.

अब एक बात तो बिलकुल साफ है कि देश में तलाक देने का फैसला किसी भी वजह से लिया जा सकता है. मौलवी और कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाने से भी इन कहे हुए शब्दों के असर को दूर नहीं किया जा सकता है. मौलवी को कुछ देर के लिए अगर छोड़ भी दें और देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाया जाए तब भी नतीजा वहीं- ढ़ाक के तीन पात. गलती और आवेश में दिए हुए तलाक को खारिज करने की शरियत में लंबी चौड़ी कवायद है जिसे बिना पूरा किए कुछ नहीं किया जा सकता है.

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स्रोत: पीटीआई (प्रतीकात्मक)

इससे पहले एक ऐसा ही मामला दिल्ली से सटे गाजियाबाद में सामने आया था. पति-पत्नी के बीच पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को लेकर तनाव इतना बढ़ गया कि दोनों ने तलाक लेने के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी. बहरहाल गाजियाबाद का वह मामला हिंदू पती-पत्नी का था और राजनीतिक सोच में अंतर तलाक लेने की वजह बनी थी.

इसी तरह नेवी में काम करने वाले एक शख्स ने अपनी पत्नी से महज इसलिए तलाक ले लिया क्योंकी वह जरूरत से ज्यादा पार्टी करती थी. देश की निचली अदालत ने इस आधार पर तलाक को मंजूरी दे दी थी, लेकिन फिर इसे हाईकोर्ट में चुनौती मिली, जहां फैसले को पलट दिया गया.

अब सवाल यह है कि समाज में पुरुष और महिला के बीच रिश्ता शादी के बंधन में बंधकर अपना आदर्श स्वरूप लेता है तो क्या ऐसे हल्के और छिछले कारणों से शादी को तोड़ना रिश्ते के खोखलेपन को नहीं उजागर करता. हिंदू धर्म में तो अदालत का एक डर है कि जरूरी नहीं कोर्ट को तलाक लेने के पर्याप्त आधार दिखाई दें लेकिन इस्लाम में तो पुरुष की जुबान पर तलाक शब्द आ जाना ही सबकुछ खत्म कर देता है. लिहाजा यहां महिलाओं की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि इससे बचने के लिए उनके पास हमेशा पति के निर्देशों पर चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता.

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