Hyderabad Police Encounter के बाद उठने लगे हैं ये 10 सवाल !
हैदराबाद (Hyderabad Rape Case) पुलिस वेटरिनरी डॉक्टर दिशा (Disha Rape Case) के इन चारों आरोपियों को लेकर घटनास्थल पर गई थी, जहां पर क्राइम सीन रीक्रिएट करने की कोशिश की जा रही थी. इसी दौरान चारों ने भागने की कोशिश की और चारों को पुलिस ने एनकाउंटर (Hyderabad Police Encounter) में मार दिया.
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हैदराबाद एनकाउंटर (Hyderabad Police Encounter) के बाद अब कई सवाल उठने लगे हैं. पुलिस ने शुक्रवार तड़के 4 बजे के करीब हैदराबाद की वेटरिनरी डॉक्टर से रेप (Disha Rape Case) के बाद हत्या और उसके बाद जला देने के आरोपियों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया है. पुलिस के अपने तर्क हैं, लेकिन लोगों का मानना है कि पुलिस ने इन्हें मारकर एक नजीर पेश की है. इससे उन लोगों में एक डर बैठेगा, जो रेप जैसे अपराध करने से पहले सोचते भी नहीं हैं. पुलिस का कहना है कि वह इन चारों को लेकर घटनास्थल पर गई थी, जहां पर क्राइम सीन रीक्रिएट करने की कोशिश की जा रही थी. इसी दौरान चारों ने भागने की कोशिश की और पुलिस को गोली चलानी पड़ी. शुक्रवार की सुबह जैसे ही टीवी चैनलों पर लोगों ने ये खबर देखी, उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. सबको भरोसा हो गया कि न्याय हो गया है. हत्यारे रेपिस्ट मार दिए गए. दिल को सुकून मिल गया, लेकिन जैसे-जैसे सूरज चढ़ता गया, वैसे-वैसे इस एनकाउंटर पर सवाल उठना शुरू हो गए और अब इन सवालों की फेहरिस्त काफी लंबी हो गई है.
हैदराबाद पुलिस ने वेटरिनरी डॉक्टर के आरोपियों का एनकाउंटर कर दिया है.
1- जो मारे गए वो अपराधी थे भी या नहीं?
सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि हैदराबाद रेप केस में जिन 4 आरोपियों शिवा, नवीन, केशवुलू और मोहम्मद आरिफ को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, वह वाकई दोषी थे या नहीं? पुलिस के अनुसार उन्होंने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था कि उन्होंने ही वेटरिनरी डॉक्टर के साथ गैंगरेप कर के हत्या की और जला दिया. बता दें कि उनके आरोप साबित नहीं हुए थे, इसी वजह से ये सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये भी है कि अगर वो आरोपी या उनमें से कोई दोषी नहीं था, तो क्या फिर भी लोग इस एनकाउंटर को उसी तरह सराहेंगे, जैसे अभी सराह रहे हैं?
2- हथकड़ी नहीं थी, फिर भी सुरक्षा में कोताही क्यों?
जब पुलिस हैदराबाद की सड़कों पर इन आरोपियों को लेकर निकलती थी, तो बेतहाशा भीड़ जमा हो जाती थी. यहां तक कि थाने में भी अगर इन्हें रखा जाता था तो वहां भी लोग थाने में घुसकर इन्हें मारने की कोशिश करती थी. लेकिन जब रात में करीब 3.30 बजे पुलिस क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए इन चारों को लेकर गई तो उनके पास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे. अगर होते, तो वह भागने की कोशिश नहीं कर पाते. बता दें कि इन आरोपियों को हथकड़ी नहीं लगी थी, क्योंकि खतरनाक अपराधियों को ही हथकड़ी लगाई जाती है, जबकि इनका कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं था. अब इसे पुलिस की लापरवाही कहें या सोची समझी प्लानिंग?
3- ये एनकाउंटर सही है या गलत?
जिस तरह हैदराबाद पुलिस ने वेटरिनरी डॉक्टर के रेपिस्ट हत्यारों का एनकाउंटर किया है, उसके बाद अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि ये एनकाउंटर सही है भी या नहीं? कहीं ये फर्जी एनकाउंटर तो नहीं? खैर, इसका पता तो चल ही जाएगा, क्योंकि इस एनकाउंटर की जांच भी शुरू हो गई है. सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि उस इलाके में आसपास सिर्फ एक घर है और वहां रहने वाले शख्स ने बताया है कि उसने रात में 4 बजे के करीब 4 गोलियां चलने की आवाज सुनी. हालांकि, पुलिस के अनुसार मुठभेड़ 5.40 बजे के करीब हुई थी. भाग रहे 4 आरोपियों को 4 गोलियों से मार देना भी पुलिस की मंशा पर सवाल उठाता है. हालांकि, ये तो रिपोर्ट के बाद ही पता चलेगा कि कितनी गोलियां चली थीं. पुलिस ने अभी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि कितनी गोलियां चली थीं.
4- अगर सही भी है तो क्या पुलिस को एनकाउंटर की छूट दी जा सकती है?
चलिए अब मान लेते हैं कि एनकाउंटर सही है. वाकई वैसा ही हुआ, जैसा पुलिस कह रही है. वाकई इन सबने भागने की कोशिश की और पुलिस ने सबको मार गिराया. अब लोग ये कह रहे हैं कि पुलिस को रेप के हर मामले में ऐसा ही करना चाहिए. वो तो यहां तक कह रहे हैं कि उन्नाव मामले में, जिसे जेल से जमानत पर छूटे रेप के आरोपियों ने पीड़िता को जलाने की कोशिश की, उनका भी एनकाउंटर कर देना चाहिए. क्या एनकाउंटर ही सजा देने का आखिरी विकल्प बचा है? क्या पुलिस को वाकई एनकाउंटर करने की छूट मिलनी चाहिए? ऐसा ही है तो फिर कानून और न्यायिक प्रक्रिया का क्या मतलब?
5- देश संविधान से चलेगा या पुलिस की बंदूक से?
देश को चलाने के लिए एक सिस्टम बना हुआ है. कानून बनाया गया है. किसी के साथ अन्याय ना हो इसलिए संविधान बनाया गया है. अब सवाल ये उठता है कि अगर एनकाउंटर से ही सब सुलझाना है तो इन सबका क्या मतलब? सवाल उठता है कि देश संविधान से चलेगा या पुलिस की बंदूक से? देखा जाए तो हैदराबाद पुलिस एनकाउंटर पर लोगों के चेहरे की खुशी का मतलब है कि न्याय व्यवस्था से उनका भरोसा अब उठ चुका है. उमा भारती भी बोल चुकी हैं कि जिस तरह महिलाएं पुलिस को मिठाई खिला रही हैं, वो ये दिखाता है कि ऐसे मामलों पर त्वरित कार्रवाई की जरूरत है, क्योंकि न्याय व्यवस्था ये लोगों का विश्वास उठ रहा है.
6- अगर सब कानून के हिसाब से करना है तो अब तक निर्भया के आरोपियों को सजा क्यों नहीं मिली?
इसमें एक सवाल ये भी उठ रहा है कि अगर हैदराबाद एनकाउंटर जैसी घटनाएं नहीं होंगी, तो किस तरह आरोपियों को सजा मिलेगी? तर्क दिया जा रहा है कि कानून के हिसाब से होना चाहिए, एनकाउंटर नहीं होना चाहिए. ऐसे में लोग सवाल पूछ रहे हैं कि अगर सब कानून के हिसाब से करना है तो अब तक निर्भया के आरोपियों को सजा क्यों नहीं मिली? खुद निर्भया के माता-पिता इस बात से दुखी हैं कि उनकी बेटी के दोषियों को अब तक फांसी नहीं हुई. यानी एक बात तो साफ है कि कहीं न कहीं कानून व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठ सा गया है.
7- क्या ये एनकाउंटर पुलिस द्वारा अपनी वर्दी पर लगे दाग धोने जैसा नहीं है?
आज पुलिस की तारीफें हो रही हैं, उन्हें मिठाइयां खिलाई जा रही हैं. सभी कह रहे हैं कि पुलिस ने बहुत अच्छा काम किया. अब जरा कुछ दिन पीछे चलते हैं. वेटरिनरी डॉक्टर के परिवार ने बताया है कि जब उन्होंने अपने बेटी के गायब होने की शिकायत पुलिस में की थी, तो इसी हैदराबाद पुलिस ने बहानेबाजी की थी. कह रहे थे कि आपकी बेटी किसी के साथ भाग गई होगी. अगर समय से वह रिपोर्ट दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर देते तो शायद वेटरिनरी डॉक्टर की जान बच सकती थी. इस एनकाउंटर को देखकर यूं लग रहा है मानो पुलिस ने अपनी ही वर्दी पर लगे दाग धोने की कोशिश की हो.
8- हैदराबाद एनकाउंटर के पीछे राजनीति तो नहीं?
जब से हैदराबाद में वेटरिनरी डॉक्टर से रेप और हत्या के बाद जला देने की खबर सामने आई, तब से ही वहां जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे थे. पुलिस के खिलाफ तो लोग सड़क पर उतर ही रहे थे, सरकार पर भी उंगलियां उठ रही थीं. सवाल तो ये भी उठ रहा है कि कहीं सिर्फ राजनीतिक हित साधने के लिए तो पुलिस का इस्तेमाल नहीं किया गया? आखिरकार इस एक एनकाउंटर के बाद सारे प्रदर्शन जश्न में तब्दील हो गए हैं, तो सवाल तो उठता ही है.
9- अगर जनता पुलिस को सिर आंखों पर बिठा सकती है तो पुलिस क्यों नहीं?
किसी भी मामले की बात करिए, हर एक में आपको ये सुनने को मिलेगा कि पुलिस ने सही से काम नहीं किया. उससे भी अधिक ये सुनने को मिलेगा कि पुलिस ने उनकी बात नहीं मानी, शिकायत नहीं सुनी, जबकि अब जनता ने पुलिस को ही सिर आंखों पर बिठा लिया है. ये वही पुलिस है जो जनता से सीधे मुंह बात नहीं करती, जिन्हें आज लोग मिठाई खिला रहे हैं, पैर छू रहे हैं, कंधों पर उठा ले रहे हैं, क्या पुलिस को भी जनता के साथ कुछ नरमी नहीं बरतनी चाहिए? जनता पुलिस से ज्यादा नहीं मांगती, बस इतना ही चाहती है कि वो शिकायत सुन ले और उस पर तुरंत कार्रवाई कर दे. ऐसा होता तो शायद आज हैदराबाद की वेटरिनरी डॉक्टर जिंदा होती.
10- एनकाउंटर की तारीफ करने वाले इसकी गंभीरता को कितना समझते हैं?
पुलिस के एनकाउंटर की तारीफ करने वालों में सबसे अधिक आम जनता है. महिलाएं और स्कूली बच्चियां हैं, जिन्हें एनकाउंटर की गंभीरता को अंदाजा भी नहीं है. लोगों को तो सिर्फ ये दिख रहा है कि दरिंदों को सजा मिल गई, लेकिन ये सजा कैसे मिली, इस पर वो ना तो सोच रहे हैं, ना ही आम जनता इस पर इतना सोचती है. एनकाउंटर की गंभीरता पुलिस और न्याय व्यवस्था अच्छे से समझते हैं. तभी तो, हर एनकाउंटर के पास उसकी न्यायिक जांच होती है. एनकाउंटर पर जिस तरह लोग खुश हो रहे हैं, जश्न मना रहे हैं और पुलिसवालों को मिठाइयां खिला रहे हैं, वह वाकई चिंता का विषय है.
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