मुझे तीन माह में 21 बार इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए
मेरी बहन एक साइकोलॉजिस्ट है. उसने मुझसे वादा किया कि वो मुझे सामान्य बनने में मदद करेगी, हालांकि मैं उन जैसा नहीं बनना चाहता था.
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मैं दिल्ली विश्वविद्यलाय से मॉसटर्स का फाइनल ईयर कर रहा था. उसी दौरान हम एक स्टडी टूर पर गए. मेरी क्लॉस का वो लड़का भी साथ था जिसके लिए मेरे दिल में खास जगह थी. वह मेरा फैमली फ्रेंड हुआ करता था. मैं हमेशा उससे अपनी फीलिंग बताने से डरता था. मुझे डर था कि कहीं मैं अपने सबसे अच्छे दोस्त को न खो दूं.
और तभी ये ट्रिप आ गया. टूर पर हम एक ही कमरे में ठहरे. एक रात हमने जमकर शराब पी ली और मैं खुद पर काबू न रख सका. यही मेरी बर्बादी की शुरुआत थी. वह मेरे घर आया और उसने सारे घरवालों को मेरे शर्मनाक व्यवहार के बारे में बता दिया. मुझे सबके सामने शर्मिंदा किया.
मेरी बहन एक साइकोलॉजिस्ट है. उसने मुझसे वादा किया कि वो मुझे सामान्य बनने में मदद करेगी, हालांकि मैं उन जैसा नहीं बनना चाहता था. वो मुझे एक बड़े मनोचिकित्सक के पास ले गई. अगले तीन महीने मेरे लिए बुरे सपने की तरह बीते. मनोचिकित्सक ने पहले मुझे अपनी सोच बदलने के लिए कहा. उन्होंने मुझसे महिलाओं के साथ प्यार और सेक्स को लेकर बातें की.
जब मैंने उन्हें बताया कि मैं लड़कियों की तरफ आकर्षित नहीं होता हूं, तो उन्होंने मुझे एक कुर्सी पर बैठ जाने के लिए कहा. और मेरी अंगुली के छोर पर एक इलेक्ट्रोड लगा दिया. और बिजली के हल्के शॉक दिए. हर बार वह मुझे एक नग्न पुरुष की तस्वीर दिखाकर शॉक दे रहे थे ताकि मैं उससे नफरत करूं. और जब उनके इस फार्मूले ने काम नहीं किया तो उन्होंने मुझे एक बिस्तर पर लेटा दिया. और मेरे सिर पर इलेक्ट्रोड लगा दिए. मेरे हाथ-पैर बांध दिए. मेरे मुंह में कुछ ठूंस दिया गया ताकि शॉक के दौरान मेरी जबान न कट जाए.
शॉक दिए जाने का हर सेशन 15 से 20 मिनट तक चला. बीच-बीच में कूलिंग के लिए सिर्फ 30 सेकंड रुकते रहे. तीन महीनों में मुझे 21 बार शॉक दिए गए. यह भयानक था. मैं एक अजीब हालत में था, मुझे हर वक्त घबराहट महसूस होती थी. मैं ठीक से बात नहीं कर सकता था. अगर मैं बात करने की कोशिश करता तो जुबान पर नियंत्रण नहीं रख पाता. मैं अपनी याददाश्त भी खोने लगा. मैं सचमुच तीन महीने के अपने घर में कैद हो गया था. मेरी पढ़ाई रुक गई और डिग्री में भी एक साल की देरी हुई. लेकिन मैं सच कहता हूं, इस इलाज को लेकर मेरी सोच-समझ में कोई खास बदलाव नहीं हुआ.
मैं अभी भी समलैंगिक हूं और हमेशा रहूंगा. लेकिन मेरे परिवार के लिए अब मैं सामान्य हूं. जब मैं बाहर जाता हूं तो मेरी मां मुझे चिढ़ाती है और मुझसे उन लड़कियों के नाम पूछती है जिनसे मैं मिला या मैंने दोस्ती की. यह बकवास है. मुझे लगता था कि कम से कम वह मेरी उस परेशानी को समझेंगी, जो मैंने तीन महीने तक अपाहिज के तौर पर महसूस की थी. जब वो मेरे दर्द को महसूस नहीं कर सकती तो मैं उनकी भावनाओं को लेकर परेशान क्यों रहूं? मैं अपने फैसले पर अडिग हूं कि मैं किसी लड़की से शादी करने नहीं जा रहा हूं. मैं किसी औरत की जिंदगी बर्बाद करना नहीं चाहता.
(एक पीड़ित की इस संवाददाता से बातचीत पर आधारित)
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