जय हो कोरोना, जहां जेब से सौ रु गायब हो जाते थे, वहां सड़क पर बीस हजार पड़े मिलना क्या है?
जिन्हें अब भी कोरोना वायरस (Coronavirus ) बीमारी की गंभीरता का अंदाजा नहीं है वो बिहार (Bihar ) में हुई उस घटना से सड़क लें जहां एक ऑटो वाले को सिर्फ इसलिए उसके 20,000 रुपए मिल गए क्योंकि संक्रमण (Infection ) के डर से किसी ने उसे उठाया नहीं वरना हम उस देश के लोग हैं जहां आदमी पड़ी हुई चवन्नी नहीं छोड़ता
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2900 नए मामलों और 129 मौतों के बाद जब भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus) से हुई कुल मौतों की संख्या 1600 के पार चली गई हो, बीमारी की भयावता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. लॉकडाउन का तीसरा चरण (Lockdown 3 ) है मगर जैसे एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं सरकार तक विचलित है. बीमारी की अहम वजह संक्रमण (Infection ) है. अब एक लंबे समय बाद, लोगों को समझ आ गया है कि सावधानी ही बचाव है तो क्यों न व्यर्थ की परेशानियों से दूर रहा जाए. बात जब ख़ुद की जान की हो तो आदमी को किसी चीज़ की परवाह नहीं होती. और ये बिहार (Bihar ) में हुई उस घटना से साबित हो गया जिसमें लोगों को सड़क पर गिरे हुए पैसे दिखे मगर किसी ने उसे इसलिए नहीं उठाया क्यों कि उन्हें कोरोना के संक्रमण की चपेट में आ जाने का डर था. लोगों ने इसकी जानकारी पुलिस (Police ) को दी. जिसने पैसों को अपने कब्जे में लिया और बाद में ये पैसे उस आदमी को भी मिल गए जिसकी अमानत ये थे.
मामला बिहार के सहरसा का है. यहां रहने वाले गजेंद्र शाह पेशे से ऑटो चालक हैं. कोरोना वायरस के इस दौर में जब लॉक डाउन के कारण सारा कामधाम ठप पड़ा हो उन्होंने कुछ ज़रूरी खरीदारी के लिए 25,000 रुपए जुटाए थे और स्थानीय बाजार निकले थे. बाजार आकर जब सामान खरीदने के लिए इन्होंने अपनी जेबें टटोली इनके होश उस वक़्त फाख्ता हो गए जब इन्होंने देखा कि 25,000 में से 20,500 रुपए मिसिंग हैं. गजेंद्र को याद आया कि रास्ते में एक जगह तम्बाकू खाने के लिए इन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला था शायद पैसे वहीं गिरे हों.
कहीं न कहीं गजेंद्र भी इस बात को जानते थे कि गिरे हुए पैसे तो इस देश में हरगिज़ नहीं मिलते। इसलिए वो उदास मन से अपने घर वापस आ गए. रास्ते में इन्होंने पैसों को ढूंढने की कोशिश की थी मगर इनके हाथ नाकामी लगी. अभी गजेंद्र को वापस आए कुछ ही देर हुई होगी कि उनके पड़ोसी ने बताया कि फेसबुक पर कुछ ऐसी तस्वीरें तैर रही हैं जिनमें स्थानीय थाने में पुलिस ने वो कैश रिकवर किया है जो एक साज़िश के तहत फेंका गया था. जिसका मकसद इलाके में कोरोना फैलाना था.
सड़क पर गिरे पैसे जिन्हें किसी ने इसलिए नहीं उठाया की कहीं उन्हें कोरोना न हो जाए
ध्यान रहे कि हममें से ऐसे तमाम लोग होंगे जिन्होंने अपने जीवन में कभी न कभी पैसे गिराए होंगे. फिर उसके बाद शायद ही कभी वो पैसे उन्हें वापस मिले हों. गजेंद्र भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे. लेकिन इनका जो पैसा गिरा उसमें एक दिलचस्प बात ये थी कि लोगों को लगा कि उन्हें कोरोना की सौगात देने के लिए रुपये का जाल बिछाया गया है.
अपनी जान की परवाह करते हुए जनता ने भी सूझबूझ का परिचय दिया और मामले की जानकारी पुलिस को दी. मामले का संज्ञान लेने पहुंची पुलिस जब सामने भी स्थिति वही थी कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधे तो कौन बांधे? बड़े सोच विचार के बाद पुलिस ने रुपयों को अपने कब्जे में लेने के बारे में सोचा और बड़ी ही सावधानी से इन पैसों को उठाकर अपने कब्जे में लिया और उसकी एंट्री अपने रजिस्टर में की . अपने रजिस्टर में पुलिस ने भी माना था कि इन पैसों को फेंकने का मकसद इलाके में कोरोना फैलाना है.
पैसे पुलिस ने कैसे बरामद किए इसकी भी कहानी काफी दिलचस्प है. शुरुआत में पुलिस को भी लोगों की बातों पर संदेह था. पुलिस को यही लग रहा था कि लोग मजाक कर रहे हैं. जब बार बार इस मामले में पुलिस के पास फ़ोन आए तो पुलिस गंभीर हुई और उसने लोगों से फ़ोटो खींचकर तस्वीर व्हाट्सएप करने की बात कही.
इलाके के पुलिस इंस्पेक्टर शशि भूषण सिंह के अनुसार उनके पास इस मामले के मद्देनजर जितने भी लोगों के फोन आए सबने यही कहा कि एक बड़ी साजिश के तहत इन पैसों को फेंका गया है. वहीं बात अगर ऑटो ड्राइवर गजेंद्र की हो तो उसने यही कहा कि बीते कुछ समय से उसके पास ऐसे तमाम वीडियो आ रहे हैं जिनमें उसने लोगों को नोटों पर थूक लगाते या फिर उनकी मदद से नाम पोंछते हुए देखा.
गजेंद्र ने कहा कि यदि ग्रामीणों की जगह वो खुद होता तो वो भी इन पड़े हुए पैसों को नहीं उठाता और इसकी जानकारी पुलिस को देता. खैर फेसबुक पर वायरल हुईं तस्वीरों को देहखर गजेंद्र थाने पहुंचा और सारी बात पुलिस को बताई जिसने शुरुआती लिखा पढ़ी के बाद गजेंद्र की अमानत उसे वापस लौटा दी.
बहरहाल अब जबकि गजेंद्र को उसके पैसे वापस मिल चुके हैं तो कहा यही जा सकता है कि इस मामले में न तो कोई खास योगदान पुलिस का था और न ही जनता ने पैसे के बारे में पुलिस को बताकर कोई एहसान किया. गजेंद्र को उसके पैसे इसलिए मिले क्यों कि लोगों को अपनी जान की परवाह थी.कोई आम दिन होता तो हम जिस देश में रह रहे हैं वहां ऐसे लोगों की भरमार है जो सड़क पर गिरी चवन्नी नहीं छोड़ते ये तो जबकि 20,000 के रूप में एक बड़ी रकम थी.
ऑटो ड्राइवर जो बार बार लोगों को धन्यवाद कर रहा है सही मायनों में इस धन्यवाद का असली हकदार कोरोना है जो कुंडली मारे उसकी मेहनत की कमाई पर बैठा रहा और किसी ने उसे छूने की हिम्मत नहीं की.
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