तो क्या अब ये मान लिया जाए जनसंख्या विस्फोट के मुहाने पर खड़ा हो गया है भारत?
आज जैसे हालात हैं न सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण करने वालों को प्रोत्साहन देने की जरुरत है, बल्कि जो इसके विपरीत व्यवहार करे उसे दण्डित करने की भी जरुरत है. आखिर इस प्रकृति पर पेड़ पौधों, जानवरों और पक्षियों का भी उतना ही हक़ है जितना हम इंसानों का.
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प्रकृति अपना संतुलन बनाये रखने की भरपूर कोशिश करती है और अगर इसमें भयानक छेड़छाड़ न की जाए तो वह इसे बरकरार भी रख सकती है. अगर हम पिछले पचास सालों को छोड़ दें तो शायद यह तथ्य बिलकुल शीशे की तरह साफ़ दिखता है. हां उसके साथ साथ एक और चीज चलती है और वह है सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट की, मतलब जिसमें टिके रह पाने की कूव्वत होती है, वही बच पाता है. जीव जानवर तो अपना संतुलन बरकरार रख सकते हैं लेकिन मनुष्य, जिसे इस ब्रम्हांड का सबसे समझदार प्राणी समझा जाता है, वह न तो अपना संतुलन बरकरार रख पा रहा है और न ही अन्य पशु पक्षियों का रहने देता है. जिस अबाध गति से मनुष्य अपनी जनसंख्या बढ़ा रहा है, खासकर एशिया में, उससे तो लगता है कि आने वाले समय में प्रकृति मनुष्य के आगे समर्पण कर देगी. इस संसार में संसाधन तो सीमित हैं लेकिन अगर उनको उपभोग करने वाले असीमित हो गए तो बड़ी भयावह स्थिति बन जाएगी.
लगातार बढ़ती आबादी भारत जैसे देश के लिए चिंता का विषय है
आज पर्यावरण असंतुलन की जो बातें हो रही हैं और जिनका असर हर तरफ महसूस हो रहा है, वह भी कहीं न कहीं जनसंख्या वृद्धि से ही जुडी हुई हैं. पानी का संकट विकराल रूप धरते जा रहा है, पेड़ों के अंधाधुंध कटने से तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है. और यह सारी चीजें जनसंख्या विस्फोट से ही जुड़ी हुई हैं. लोग बढ़ रहे हैं तो उनके रहने के लिए घर बन रहे हैं. इन घरों के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं, खेती की जमीन को रहने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. उनके लिए पानी की जरुरत बढ़ रही है, स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरतें बढ़ रही हैं और तमाम अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए कल कारखाने बढ़ रहे हैं.
बढ़ता प्रदूषण भी कहीं न कहीं बढ़ती जनसंख्या के साथ जुड़ा हुआ है.जहां एक तरफ हमारा देश धीरे धीरे जनसंख्या के मामले में पहले नंबर पर काबिज होने की तरफ पूरी ताक़त से अग्रसर है, वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो जनसंख्या बढ़ाने के लिए अपने लोगों को कई तरह के प्रोत्साहन भी दे रहे हैं. कुछ ऐसे देश भी हैं जहां जनसंख्या बढ़ने के चलते कोई समस्या फिलहाल नजर नहीं आ रही है और ये देश अपने निवासियों पर किसी भी तरह का रोक नहीं लगा रहे हैं.
मिसाल के तौर पर अगर मैं दक्षिण अफ्रीका की चर्चा करूं, जहां मैंने कुछ वर्ष बिताये हैं तो उस देश में चंद शहरों को छोड़कर पूरा देश ही खाली खाली दिखता है. अगर हम उत्तर प्रदेश की तुलना दक्षिण अफ्रीका से करें तो उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल के लिहाज से दक्षिण अफ्रीका का पांचवां हिस्सा ही है लेकिन अगर जनसंख्या में देखें तो यह उसका लगभग चार गुना है. अब ऐसे में संसाधन की स्थिति उत्तर प्रदेश में क्या हो सकती है, इसका अंदाजा बड़े आराम से लगाया जा सकता है.
मैंने कभी किसी दक्षिण अफ़्रीकी व्यक्ति को अपने देश की जनसंख्या के बारे में परेशान होते हुए नहीं देखा और यह समझ में भी आता है. उलटे वहां ज्यादा बच्चे पैदा करना कत्तई बुरा नहीं समझा जाता. लेकिन क्या यही चीज उत्तर प्रदेश में या कहें तो पूरे भारत में लागू होती है. हम पहले ही जनसंख्या वृद्धि में उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं जहां से सिर्फ और सिर्फ पीछे आया जा सकता है और इस पीछे आने में कोई बुराई नहीं है.
अगर सच कहें तो अगले पंद्रह से बीस सालों तक अपने देश में जनसंख्या वृद्धि को लेकर उसी तरह से इमरजेंसी लगाने की जरुरत है जैसा कि यूरोप के कई शहर पर्यावरण को लेकर लगा रहे हैं. अगर वह पर्यावरण को लेकर इतनी गहरी सोच रख सकते हैं तो क्या हम जनसंख्या के मामले में नहीं रख सकते. चीन का उदाहरण भी सामने है जिसने इस मसले पर दृढ निश्चय रखते हुए अपने आप को संभाला.
न सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण करने वालों को प्रोत्साहन देने की जरुरत है, बल्कि जो इसके विपरीत व्यवहार करे उसे दण्डित करने की भी जरुरत है. आखिर इस प्रकृति पर पेड़ पौधों, जानवरों और पक्षियों का भी उतना ही हक़ है जितना हम इंसानों का.
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