International Men’s Day: आज तुम्हारा दिन है पुरुषों, खुलकर एन्जॉय करो!
International Mens Day की मुबारकबाद पुरुषों को इस लिए भी मिलनी चाहिए क्योंकि दिन भर में ऐसे तमाम मौके आते हैं जब उन्हें अपने माथे की शिकन को छुपाना होता है और होंठों पर मुस्कान लिए मुश्किल परिस्थितियों को सामना करना होता है.
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गुज़रता हुआ यह दिन International Men’s Day का हिस्सा है. दुनिया के सभी पुरुषों के हिस्से में आए इस एक दिन की बधाई. ये वो दिन है जिसे उन सभी पुरुषों (Men) के लिए सराहा जाना चाहिए जो अपने माथे की शिकन को सबसे छुपाते हुए, बिना किसी उम्मीद, बिना किसी चाहत की कामना किये अपने सभी फ़र्ज़ होंठों पर एक छोटी सी मुस्कान लिए निभाते हैं. आज के दिन सबसे पहले शुक्रिया मैं उन अजनबी लड़कों का कहना चाहतीं हूं, जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के मेरे बुरे वक़्त में मेरा साथ दिया. चाहे वो कोचिंग से वापिसी के दौरान, साइकिल की चेन में मेरे दुपट्टे का उलझ जाना हो और किसी अजनबी का रुक मेरे दुपट्टे को उस चेन से आज़ाद करवा देना रहा हो. या किसी धुंध वाली जाड़े की सुबह को अखाड़ाघाट पुल पर मेरी साइकिल का पंक्चर हो जाना और फिर किसी का रुक, मेरी साइकिल को ठीक होने के लिए दुकान तक पहुंचा देने की मदद रही हो.
पुरुष बहुत कुछ सहते हैं इसलिए बस उन्हें खुश रहना चाहिए
किसी दिन ट्रैफ़िक में फंसने के दौरान किसी अंकल का बाहों का अहाता बना, उस भीड़ को पार करवा देना रहा हो. हर बार एक न एक अजनबी पुरुष ने बिना किसी स्वार्थ मदद की है. उन सारे पुरुषों का मदद के लिए शुक्रिया. आपलोगों के होने से इस दुनिया की ख़ूबसूरती बरक़रार है.
नहीं ऐसा बिलकुल भी नहीं कि सभी पुरुष बलात्कारी या धोखेबाज़ होते हैं और सभी के सभी पर्फ़ेक्ट्ली अच्छे. बिलकुल वैसे ही जैसे सभी स्त्रियां बुरी नहीं होती और सभी की सभी दूध की धुलीं भी नहीं होती. मैं जानती हूं कि आपको भी धोखा मिलता है रिश्तों में, प्रेम में. आप पर भी लगाए जाते हैं झूठे आक्षेप. आप को भी बेवजह किया जाता है कठघरे में खड़ा. उस पर से आपको तो बचपन से सिखाया जाता है कि मर्द को दर्द नहीं होता. मर्द रोते नहीं. हर बात पर रिएक्ट मत करो. मर्द बनों.
लेकिन कैसा मर्द? ये आपको कोई नहीं बतलाता. आपको वही सदियों पुराने रास्ते पर छोड़ दिया जाता भटकने के लिए. आपको तराशने की कोशिश ही नहीं की जाती. फिर भला हम कैसे उम्मीद पाल लेते हैं आपसे पर्फ़ेक्शन की? जानते हैं, आपको भी रोने का पूरा हक़ है. दुःखी होने पर मां की छाती से सिर टिका उन्हें दुःख कह देने का हक़ है. दिल जो टूटे तो देर रात बहन के पास बैठ, दिल का हाल बयान कर देने का हक़ है. इतना ही नहीं कभी कोई आप पर हाथ उठाए तो ये सोच कर चुप रह जाना ग़लत है कि, 'मर्द हूं. मुझ पर अगर औरत ने हाथ उठाया है और ये बात अगर बाहर आ गयी तो मेरी मर्दानगी पर सवाल उठेंगे.'
किसी भी जेंडर के लिए हिंसा सहना उतना ही ग़लत है जितना की करना. और हां, आपको भी डिप्रेशन होता होगा. एंग्जाएटी होती होगी तो अपने जीवन साथी, अपनी प्रेयसी से शेयर करना, उनसे मदद मांगना आपको कम मर्द नहीं बनाता. शायद आप जानते भी होंगे फिर भी बता रही हूं, दुनिया में 45 साल से कम उम्र में पुरूष ही सबसे ज़्यादा आत्महत्या करते हैं. वजह भी साफ है. आपका पुरुष होना ही. हां न. क्योंकि पुरुषों को दुःखी होने का हक़ नहीं होता. न ही रोने का. हर बात को सहते हुए ज़िंदगी की लड़ाई को जीतने का प्रेशर होता है न, इसीलिए!
तो प्लीज़ यूं ख़ुद को किसी भी प्रेशर में मत डालिए. पुरुष से पहले इंसान बनिए. ऐसा इंसान जो दुःख में ज़ोर-ज़ोर से लिपट कर रो ले किसी से. जो दर्द से कराह उठे. जो खुल कर हंसे. जो ज़िंदगी को जीए. कहना तो और भी बहुत कुछ. फ़िलहाल के लिए बस इतना ही. आप सभी के खुशियां भेज रही हूं. मुस्कुराइएगा. मुस्कुराते लड़के प्यारे लगते हैं. क़सम से.
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