क्या कुछ बदला निर्भया के बाद?
निर्भया कांड को इस 16 दिसंबर को 4 साल हो जाएंगे. उस समय तो ये लगा था कि देश जाग गया है, अब लड़कियों के लिए देश सुरक्षित होगा, लेकिन क्या वाकई ऐसा हुआ है? कितना सच था सरकार के वादों में आइए देखते हैं..
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आज यानि 16 दिसंबर. कुछ याद आया 16 दिसंबर 2012 का वह दिन जब देश की राजधानी में सामने आए अमानवीय और क्रूर निर्भया गैंगरेप को ठीक चार साल पूरे हो गए. दोषियों को फ़ास्ट ट्रैक अदालत और दिल्ली हाई कोर्ट तो फाँसी की सजा सुना चुके हैं, लेकिन मामला अब देश की सबसे बड़ी अदालत (सुप्रीम कोर्ट) में हैं. हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले को गंभीरता से ले रही है और छुट्टी के बाबजूद भी इस मामले को अंजाम तक पहुचाने के लिए सुनवाई कर रही है.
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16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के वसंत विहार इलाके में इस जघन्यम वारदात को अंजाम दिया गया. और अंततः निर्भया (सांकेतिक नाम )का इलाज के दौरान 29 दिसंबर 2012 को देहांत हो गया. देश की राजधानी समेत पूरे भारत बर्ष में एक ऐसी लहर चली जैसे कि अब आज के बाद इस तरह की घटनाओ की पुनरावृति शायद भारत में दिखाई ना दे. संसद में नया कानून जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हुआ, जिसमें बलात्कार, हत्या, एसिड अटैक जैसे गंभीर अपराधों में 16 से 18 साल के नाबालिग आरोपियों पर भी बालिगों वाले कानून के तहत आम अदालतों में केस चल सकेगा. नए कानून में 16 से 18 साल के नाबालिग के लिए अधिकतम 10 साल की सजा का ही प्रावधान है, उम्रकैद या मौत की सजा का नहीं.
निर्भया कांड का नाबालिग दोषी अब रिहा हो चुका है |
विशेष याचिका पर सुनवाई-
गौरतलब है कि इस मामले में 2014 में फांसी की सजा पाए चारों मुजरिमों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी. पहली सजा: निचली अदालत ने 13 सितंबर, 2013 को चारों को फांसी की सजा सुनाई. दूसरी सजा : 13 मार्च 2014, हाई कोर्ट ने इस मामले में चारों दोषियों अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश की अपील भी खारिज कर दी. इस फैसले के खिलाफ चारों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है और मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.
नाबालिग की रिहाई-
दिल्ली पुलिस ने इस सिलसिले में मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर, रामसिंह और एक नाबालिग समेत 6 लोगों को अरेस्ट किया था. मुकेश और पवन समेत चारों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है. इस बीच एक मुजरिम रामसिंह ने तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया था. नाबालिग दोषी को बाल सुधार गृह में तीन साल तक रखा गया. इस बीच दिसंबर 2015 में दोषी नाबालिग को सुधार गृह से रिहा कर दिया. एक अन्य दोषी विनय शर्मा भी तिहाड़ जेल में आत्महत्या करने की कोशिश कर चुका है.
कुछ भी तो नहीं बदला न माहौल और न आंकड़े-
आज भी शाम ढलते ही मां-बाप को आशंकाएँ घेर लेती हैं जिनकी बेटियां घरों से बाहर होती हैं. अगर तब से अब तक के आकड़ों पर नज़र डाली जाए तो बाल अपराधियों की यह प्रवृति कम होने का नाम नहीं ले रही है. आंकड़े तो यही कहते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 में बाल अपराधियों ने 1688 रेप केसों को अंजाम दिया जिसमें 88 केस गैंग रेप के थे. इसी प्रकार 2014 में 1989 तथा गैंगरेप के 137 मामले सामने आए. 2013 में 1884 व 2012 में 1175 मामले सामने आए. 2003 में इनकी संख्या 466 थी.
निर्भया फंड- तत्कालीन संप्रग सरकार ने 2013 के बजट में निर्भया फंड के नाम से रेप पीड़ितों के लिए एक नया फंड बनाया जिससे यौन अपराध और दुष्कर्म पीड़ितों की मदद हो सके. आज भी इस फंड में दो हज़ार करोड़ रुपए पड़े हुए हैं. सरकारों की कार्यशैली का पता इस बात से चलता है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट को सरकार को फटकार लगानी पड़ी. मुआवजे की राशि को लेकर भी कई खामिया हैं कहीं मुआवजा 50 हजार कुछ जगहों पर मुआवजा 10 लाख रुपए है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि ऐसी योजना बनाई जाए, जिसमें मुआवजा राशि एक समान हो.
फंड में तो दो लाख करोड़ रुपए हैं, लेकिन उनका कर क्या रही है सरकार? |
कहते हैं समय हर जख्म को भर देता हैं लेकिन निर्भया की मां आशा देवी आज भी अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने की लड़ाई जारी रखे हुए हैं . सरकारों चाहे वह केंद्र की हो या दिल्ली की सरकार दोनों से आश्वासन तो बार-बार मिला है, लेकिन किसी तरह की मदद नहीं मिली. फलस्वरूप हाथ में केवल आश्वासन ही आश्वासन, निर्भया की आत्मा आज भी इंसाफ मांग रहीं हैं . दिल्ली सरकार ने तो वादों की झड़ी लगा दी थी, सभी बसों में CCTV कैमरे लगाए जाएंगे लेकिन लक्ष्य अब भी पूरा नहीं हो पाया है.
नहीं बदली तो मानसिकता-
बुलंदशहर गैंगरेप पर उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री और सपा नेता आजम खान ने विवास्पद बयान. आजम ने कहा था कि बुलंदशहर गैंगरेप मामला एक राजनीतिक साजिश है. खान कहा था कि चुनाव नजदीक हैं और विपक्ष सरकार की छवि खराब करने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है. हमें इस बात की भी जांच करनी चाहिए कि इस मामले में विपक्ष का हाथ तो नहीं है. जिसके बाद उन्हें देश की उच्च अदालत ने फटकार लगाई थी व बिना शर्त माफ़ी मांगने की बात कही थी.
कांग्रेस की सीनियर नेता रेणुका चौधरी ने बुलंदशहर गैंगरेप पर कहा 'रेप तो चलते रहते हैं और अगर वे 10-20 दिनों के बाद किसी को अरेस्ट करते हैं और सोचते हैं कि हम उनको शाबाशी देंगे तो ऐसा नहीं होगा.'
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जुलाई 2016 में भाजपा की नेता निर्मल बैरागी ने बलात्कार पर विवादस्पद बयान देते हुए कहा कि संसार के सृजन से ही बलात्कार होते रहे हैं.
डर्टी सवाल-
हाल ही में आर्टिस्ट भाग्यलक्ष्मी ने गैंगरेप को उजागर कर पीड़िता की आपबीती को लेकर फेसबुक पर पुलिस के रवैए पर सवाल खड़े किए थे. भाग्यलक्ष्मी ने फेसबुक पोस्ट में पीड़ित महिला के हवाले से लिखा था कि पुलिस के सवालों का जवाब देना उसके लिए मानसिक बलात्कार होने जैसा था. शायद उन्होंने मानसिक तौर पर मुझे इसलिए प्रताड़ित किया क्योंकि वे जानते थे कि मेरे पास कोई सबूत नहीं है. अच्छा हुआ कि निर्भया, जिशा और सौम्या जैसी बलात्कार पीड़ित लड़कियों की मौत हो गई वरना उन्हें भी ऐसी मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता.' देश के पुलिस थानों में महिला पुलिस कर्मियों की कमी इस बात को और भी कठिन बना रही है. पुलिस प्रक्रिया से गुजरने के बाद कोर्ट प्रक्रिया भी रेप पीड़िता की मानसिक प्रताड़ना को बढ़ाने वाली हैं.
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