AI ने अपना फैसला सुना दिया है कोरोना, उसके वेरिएंट्स निर्दोष हैं, उन्हें बरी किया जाता है!
AI की रिपोर्ट के बाद कोरोना वायरस और उसके तमाम वेरिएंट्स के बीच जश्न का माहौल है. ऐसे में मिठाई खिलते हुए जो ब्लैक फंगस ने ओमिक्रॉन और डेल्टा से कहा है उसे सुनकर आपकी भी आंखें नम हो जाएंगी.
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कोविड 19 के साथ साथ उसके अलग-अलग वेरिएंट्स सब बड़े खुश हैं. खुश हों भी क्यों न, कोरोना जब से देश दुनिया में आया मिलने के नाम पर सिर्फ उसे गलियां और तिरस्कार ही मिला. आज उस तक को अच्छी खबर मिली है. और दिलचस्प ये कि ये अच्छी खबर उसे किसी और ने नहीं बल्कि एआई या ये कहें कि Artificial Intelligence ने दी है और जो दाग इस ज़ालिम दुनिया ने उसके मत्थे डाले थे उन्हें धो दिया है. आज पूरे विषय के साथ साथ भारत में दोबारा कोरोना ने दस्तक दे दी है और हर बीतते दिन के साथ मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है ऐसे में शोधकर्ताओं का चिंतित होना लाजमी है. ये लोग आए रोज नए नए शोध कर रहे हैं और बता रहे हैं कि SARS-CoV-2 मानव शरीर में क्या प्रभाव डाल रहा है.
आज भी तमाम लोग हैं जो कोविड की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं
इसी क्रम में कुछ शोधकर्ताओं ने एक नयी खोज की है जिससे और किसी को राहत मिली हो या न मिली हो कोरोना जरूर खुश हुआ होगा. शोध ने हत्यारे कोरोना को बाइज्जत बरी कर दिया है. शोध के अनुसार कोविड-19 संक्रमण के दौरान जो लोग वेंटिलेटर में थे और जिनकी मौत हुई उसका जिम्मेदार कोरोना नहीं, एक अन्य बैक्टीरिया है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक इसी बैक्टीरिया ने लोगों को संकर्मित किया और फिर संक्रमण आम लोगों की मौत की वजह बना. बात आगे बढ़े उससे पहले ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि फेफड़े (निमोनिया) का द्वितीयक जीवाणु संक्रमण कोविड-19 के रोगियों में बेहद आम था, जो लगभग आधे रोगियों को प्रभावित करता था जिन्हें जिन्दा बचे रहने के लिए वेंटिलेटर की ज़रुरत पड़ती.
चूंकि कोविड 19 हमसे हमारे कई चाहने वाले, यार दोस्त, परिजन, रिश्तेदार छीन चुका है. इसलिए हममें से कई लोग ऐसे हैं जो इस बात पर बल देते हैं कि यदि लोगों ने हमारा साथ असमय छोड़ा तो इसका जिम्मेदार कोरोना और उसके अलग अलग वेरिएंट्स ही हैं.
चूंकि हर चीज जानना मनुष्य की फितरत है लोग इसके विषय में और गहराई से जानना चाहते हैं और उन लोगों की तरफ देखते हैं जो शोध में लगे हैं और रोज नयी नयी जानकारियां इस खौफनाक वायरस के संदर्भ में निकालते हैं.
शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग, जोकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक रूप है, उसका इस्तेमाल यह पता लगाने के लिए किया कि द्वितीयक जीवाणु निमोनिया, जिसका पूरी तरह से इलाज नहीं किया जा सकता था, उच्च मृत्यु दर का एकमात्र कारण था. नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी फीनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन की टीम ने जर्नल ऑफ क्लिनिकल इन्वेस्टिगेशन में एक पेपर प्रकाशित किया है और तमाम निष्कर्ष निकाले हैं.
पेपर में कहा गया है कि,'हमने गंभीर निमोनिया वाले मरीजों में मृत्यु दर के लिए वेंटिलेटर से जुड़े निमोनिया (वीएपी) के असफल उपचार के योगदान को निर्धारित करने का लक्ष्य रखा है, डॉक्टरों ने यह भी पाया कि COVID-19 'साइटोकिन स्टॉर्म' का कारण नहीं बनता है, जिसे अक्सर मौत का कारण माना जाता है. बताते चलें कि साइटोकिन स्टॉर्म का तात्पर्य एक ऐसी सूजन से है जो फेफड़े, गुर्दे और मस्तिष्क को प्रभावित करती है जो पैरालिसिस की वजह बनती है.
शोध से जुड़ी शोधकर्ता और इस पेपर की वरिष्ठ लेखक बेंजामिन सिंगर ने शोध को लेकर दिए गए एक बयान में कहा है कि, 'हमारा अध्ययन गंभीर निमोनिया वाले गंभीर रूप से बीमार रोगियों में माध्यमिक जीवाणु निमोनिया को रोकने, तलाशने और आक्रामक रूप से उपचार करने के महत्व पर प्रकाश डालता है."
पूर्व में हम देख चुके हैं कैसे कोविड के चलते हमने अपने अपनों को मरते हुए देखा
शोधकर्ताओं ने नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल अस्पताल में सीवियर निमोनिया और श्वसन विफलता के चलते आईसीयू में एडमिट 585 रोगियों का विश्लेषण किया है और इसके लिए उन्होंने मशीन लर्निंग की मदद ली है. ऐसे में शोधकर्ताओं के हाथ जो जानकारियां लगी हैं वो चौंकाने वाली हैं. बताया जा रहा है कि इनमें 190 मरीज कोविड टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए. टीम ने कार्पेडियम नामक एक नया मशीन-लर्निंग एप्रोच डेवेलप किया है जो ऐसी तमाम जानकारियां दे रहा है जो कोरोना या ये कहें कि कोविड 19 को लेकर तमाम मिथक तोड़ रहा है.
इसमें आईसीयू में भर्ती मरीजों का इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड डाटा लिया जाता है और उससे जानकारियां ली जाती हैं, क्योंकि ए आई ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि लोग कोविड के वायरस से न मरके एक बैक्टीरिया के चलते हुए संक्रमण के कारण मरे हैं आज ज़रूर ब्लैक फंगस से लेकर ओमिक्रॉन और डेल्टा जैसे कोविड के वैरिएंट्स को बड़ी राहत मिली है.
ध्यान रहे अब से कुछ समय पूर्व लोगों को कुछ भी होता था सारा ठीकरा या तो कोरोना वायरस के ऊपर फोड़ दिया जाता था या फिर ब्लैक फंगस से लेकर ओमिक्रॉन और डेल्टा को आड़े हाथों ले लिया जाता था.
रिसर्च में कितना सच छिपा है? इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है लेकिन जैसे हाल हैं और जिस तरह आज भी देश दुनिया की एक बड़ी आबादी इससे संक्रमित हो रही है लोगों में डर बना हुआ है और आज भी तमाम लोग इसे असमय मौत की एक बड़ी वजह के रूप में देखते हैं. ऐसे में अब जबकि एआई के हवाले से ये नयी रिसर्च सामने आ गयी है लोगों के साथ साथ खुद कोरोना को थोड़ा बहुत सुकून जरूर मिला होगा.
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