'रेप यदि होना ही है तो लेटो और आनंद लो': कहने वाले कांग्रेस नेता से खतरनाक हैं उस पर हंसने वाले!
कर्नाटक (Karnataka) के कांग्रेस विधायक (Congress MLA) केआर रमेश कुमार (KR Ramesh Kumar) ने बलात्कार को लेकर ऐसी टिप्पणी की है. जिसका देश के हर चौक-चौराहे पर सामान्यीकरण कर दिया गया है. भारत में बहुत आसानी से इस बदजुबानी को जुबान फिसलने (Rape) का नाम दे दिया जाता है.
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महिलाओं के खिलाफ होने वाले सबसे जघन्य, क्रूर और हिंसक अपराध बलात्कार यानी रेप पर भारत में लोगों की असंवेदनशीलता किसी से छिपी नहीं है. रेप को लेकर लोग अपनी असंवेदनशीलता का शर्मनाक प्रदर्शन करते ही रहते हैं. और, ये असंवेदनशीलता छोटे से लेकर बड़े स्तर तक हर जगह मौजूद है. बलात्कार जैसे अपराध का भारतीय समाज में इस तरह से सामान्यीकरण कर दिया गया है कि इस शब्द का प्रयोग करने में भारतीय पुरुष बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते हैं. असंवेदनशीलता से भरी इस भद्दी सोच का प्रदर्शन हाल ही में कर्नाटक के कांग्रेस विधायक केआर रमेश कुमार ने किया है. आपत्तिजनक टिप्पणी मामले पर विवाद बढ़ने के बाद केआर रमेश कुमार ने माफी मांग ली है. लेकिन, महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक वो लोग हैं, जो महिलाओं को लेकर की गई रमेश कुमार की आपत्तिजनक टिप्पणी पर विधानसभा में ठहाके लगाते दिखाए दिए थे. इस असंवेदनशील टिप्पणी पर केवल रमेश कुमार ही नहीं, उन तमाम लोगों को माफी मांगनी चाहिए, जो उस समय सदन में बैठकर इस पर अपनी मुस्कान बिखेर रहे थे.
The House shall apologise to entire womanhood, every mother, sister & daughter of this nation for such an obnoxious & shameless behaviour @INCIndia @INCKarnataka @BJP4India @BJP4Karnataka @MahilaCongress @BJPMahilaMorcha pic.twitter.com/wPKbnxJlnp
— Dr. Anjali Nimbalkar (@DrAnjaliTai) December 16, 2021
ठहाके लगाने वालों का दोष कौन तय करेगा?
भारतीय हो या दुनिया की कोई भी संस्कृति, बलात्कार को बढ़ावा नहीं देती है. लेकिन, अपनी 'कथनी और करनी' के जरिये परोक्ष रूप से ही सही, लोगों के बीच रेप कल्चर को बढ़ावा देने का काम ये सभी करती हैं. और, ऐसा ही कर्नाटक विधानसभा में भी किया गया. दरअसल, कर्नाटक में बाढ़ की वजह से फसलों को हुए नुकसान को लेकर कांग्रेस विधायक केआर रमेश कुमार चर्चा के लिए समय मांगा. समय नहीं मिलने पर हंगामा किया जाने लगा. जोरदार हंगामे के बीच स्पीकर विश्वेश्वर हेगड़े ने विधायकों को समझाने की कोशिश की. जब राकेश कुमार नहीं माने, तो स्पीकर हेगड़े ने कहा कि 'रमेश कुमार आप जानते हैं, अब मुझे लग रहा है कि मुझे इस स्थिति को एन्जॉय करना चाहिए. मैंने तय किया है कि अब किसी भी को भी रोकने और स्थिति को संभालने की कोशिश नहीं करूंगा. आप लोग चर्चा करिए.' जिस पर कांग्रेस विधायक रमेश कुमार ने असंवेदनशीलता के साथ कहा कि 'एक पुरानी कहावत है... जब बलात्कार अपरिहार्य हो, तो लेटो और मजे लो. अभी आपकी स्थिति बिल्कुल ऐसी ही हो गई है.'
अगर किसी भी शख्स को रमेश कुमार के इस बयान में केवल मजाक नजर आ रहा है. तो, विश्वास मानिए कि उस शख्स के दिमाग में भी रेप कल्चर का वही कीड़ा है, जो रमेश कुमार की आपत्तिजनक टिप्पणी पर ठहाका लगाने वालों के अंदर है. इन तमाम लोगों ने इस पर आपत्ति न जताकर केवल अपनी पितृसत्तात्मक सोच का परिचय नहीं दिया है. बल्कि, ये वो लोग हैं, जो बलात्कार जैसे अपराध का मजाक और चुटकुलों के जरिये सामान्यीकरण करते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो ये एक ऐसी सोच है, जो देश पोटेंशियल रेपिस्ट को जन्म देती है. क्योंकि, हमारे देश में रेप का इतना सामान्यीकरण कर दिया गया है कि लोगों की इस शब्द के प्रति संवेदना ही खत्म हो गई है. ऐसी घटना पर माफी मांग लेने या सदन से कुछ दिन के लिए सस्पेंड कर देने भर से इस सोच में बदलाव की उम्मीद करना निरर्थक है. क्योंकि, समाज में मौजूद ये तमाम लोग अपनी बदजुबानी को जुबान फिसलने का नाम देकर इस असंवेदनशीलता को फिर से दोहराने के लिए तैयार बैठे रहते हैं. ऐसी हर भद्दी हरकत के लिए इन लोगों के पास माफी और से इतर सैकड़ों बहाने हैं, जिसे ये फिर से गलती दोहराने की छूट के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
कांग्रेस विधायक रमेश कुमार की आपत्तिजनक टिप्पणी पर कई लोग ठहाके लगाते दिखाए दिए थे.
असंवेदनशीलता का चरम
ये रमेश कुमार और सदन में मौजूद होकर ठहाका लगाने वाले हर उस शख्स की असंवेदनशीलता की हद ही है कि उनका बयान उस दिन सामने आया, जब 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया कांड की बरसी थी. निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था. उस दौरान सैकड़ों प्रदर्शन हुए जिसके बाद बलात्कार के जघन्य मामलों में फांसी की सजा दी जाने लगी. इस हादसे को एक लंबा समय बीत चुका है. लेकिन, इतने सालों में भी बलात्कार को लेकर लोगों में मर चुकी संवेदना को जगाया नहीं जा सका है. यहां बड़ा सवाल है कि ऐसा होगा भी कैसे? क्योंकि, निर्भया गैंगरेप मामले में अभियुक्तों के वकील रहे एपी सिंह ही कहते नजर आए थे कि 'अगर मेरी बेटी या बहन ऐसा कोई काम करती है, तो मैं अपने पूरे परिवार के सामने उसे जला देता.' निर्भया मामले के ही एक अन्य अभियुक्त के वकील एमएल शर्मा ने कहा था कि 'हमारे घर की लड़कियां किसी अनजान व्यक्ति के साथ शाम को घर से बाहर नहीं निकलती हैं, और आप लड़के और लड़की की दोस्ती की बात करते है? माफ कीजिए, हमारे समाज में ऐसा नहीं होता है. हमारी संस्कृति कहीं बेहतर है.'
रेप पर नेताओं की बदजुबानी के दर्जनों मामले लोगों के सामने हैं. 2014 में सपा संरक्षक मुलायम सिंह ने एक चुनावी कार्यक्रम में बलात्कार पर फांसी की सजा का विरोध करने के लिए तर्क दिया था कि 'लड़के हैं, उनसे गलतियां हो जाती हैं.' उस दौरान भी मंच के सामने खड़ी जनता में से अधिकांश ने इस भाषण पर ताली पीटी थी. पत्नियों को क्रिकेट ट्रॉफी बताने, महिला नेता को टंच माल कहने, महिला नेता की तुलना वेश्या से करने जैसे कई मामले हैं. जिन पर केवल तात्कालिक हो-हल्ले के बाद मिट्टी डाल दी गई. लेकिन, किसी भी पार्टी की ओर से इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. इसे ऐसे समझिए कि कुछ दिन पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सीबीएसई की परीक्षा में एक प्रश्न को महिला विरोधी बताते हुए बोर्ड और शिक्षा मंत्रालय से इस विषय पर माफी की मांग की थी. वैसे, महिलाओं के प्रति ये बदजुबानी बॉलीवुड के दबंग खान यानी सलमान खान भी दिखा चुके हैं. सलमान खान ने अपनी फिल्म सुल्तान के प्रमोशन के दौरान पहलवानों के साथ अपने सीन का दर्द बताते हुए कहा था कि 'शूटिंग के बाद वो इतना थक जाते थे कि वो चल नहीं पाते थे, उनका पैर लड़खड़ाने लगता था और ऐसी में वो रेप पीड़ित महिला की तरह महसूस करते थे.'
बलात्कार के आरोपियों को इनकाउंटर में मार देने या बलात्कार के आरोपियों को फांसी पर चढ़ा देने से भारत में रेप के मामलों में कमी नहीं आ सकती है. क्योंकि, हमारे देश में न्याय मांगने वाली रेप पीड़िता के साथ शासन-प्रशासन से लेकर न्याय व्यवस्था में बैठे लोग ही भेदभाव करते हुए नजर आ जाते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो लोगों को महिलाओं के प्रति किए जाने वाले इस जघन्य अपराध के लिए संवेदनशील बनाने की पहल करनी होगी. ये कैसे होगा, इसका फैसला सरकारों से लेकर आप और हम को ही करना है. इसे एक सुझाव माना जा सकता है कि खुद में एक छोटा सा बदलाव लाकर लोगों के सामने इस तरह के हर भद्दे मजाक पर आपत्ति दर्ज करें और ऐसा करने वाले को शर्मिंदा करें. ताकि, इस तरह की बदजुबानी का सामान्यीकरण बंद हो सके.
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