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Updated: 19 फरवरी, 2022 09:26 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब केस (Hijab Row) की सुनवाई को अब तक 6 दिन हो चुके हैं. पहले दिन की सुनवाई के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्कूल-कॉलेजों में किसी भी तरह की धार्मिक पोशाक (हिजाब और भगवा गमछा) पहनने पर रोक लगा दी थी. इसके बावजूद कर्नाटक में शुरू हुआ हिजाब विवाद (Hijab Controversy) हर बदलते दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है. इसे देखते हुए कर्नाटक सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अंतर्गत आने वाले स्कूल-कॉलेजों में भी हिजाब (Hijab) पहनने पर रोक लगा दी है.

वहीं, अब क्लास में हिजाब पहन कर पढ़ाने से रोके जाने पर एक कॉलेज की लेक्चरर ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देने वाली लेक्चरर चांदनी ने इसे अपने स्वाभिमान पर आघात बताया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो हिजाब विवाद में छात्राओं के साथ ही टीचर्स भी कूद पड़े हैं. हालांकि, इन सबके बीच कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) में हिजाब केस को लेकर सुनवाई जारी है. और, हिजाब केस में याचिकाकर्ता छात्राओं के साथ ही अब कई महिला संगठनों और मुस्लिम महिलाओं की ओर से भी याचिका दायर की गई है. आइए हिजाब केस में अब तक की दलीलों पर डालते हैं एक नजर...

Hearing on Hijab Controversy हिजाब केस में याचिकाकर्ता छात्राओं के साथ ही अब कई महिला संगठनों और मुस्लिम महिलाओं की ओर से भी याचिका दायर की गई है.

18 फरवरी को हुई सुनवाई की दलीलें

बंद की जाए सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग- याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील रवि वर्मा कुमार ने हाईकोर्ट ने अनुरोध किया है कि 'सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग (सजीव प्रसारण) पर रोक लगाई जाए.' उन्होंने कहा कि 'लाइव स्ट्रीमिंग से अशांति की स्थिति पैदा हो रही है. क्योंकि, टिप्पणियों को सही संदर्भ में नहीं समझा जा रहा है. लाइव स्ट्रीमिंग प्रतिकूल साबित हो रही है.' लेकिन, कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की यह मांग खारिज करते हुए कहा कि 'लोगों को सुनने दीजिए कि उत्तर देने वालों का इसमें क्या रुख है.' 

सरकारी आदेश एजुकेशन एक्ट के अनुरूप- हिजाब केस में राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने कहा कि 'जैसा मैंने समझा है, हिजाब विवाद तीन व्यापक श्रेणियों में आता है. मेरा पहला निवेदन है कि 5 फरवरी को जारी हुआ सरकारी आदेश एजुकेशन एक्ट के अनुरूप है. दूसरा ठोस तर्क है कि हिजाब एक अनिवार्य हिस्सा है. हमने यह पक्ष लिया है कि हिजाब पहनना इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथा के अंतर्गत नहीं आता है. तीसरा ये कि हिजाब पहनने का अधिकार 19(1)(A) के तहत संरक्षित है. हमारा कहना है कि ऐसा नहीं है.' 

हिजाब पहनने को संवैधानिक कसौटी पर खरा उतरना होगा- राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने कहा कि 'सबरीमाला और शायरा बानो (तीन तलाक) मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित संवैधानिक नैतिकता और व्यक्तिगत गरिमा की कसौटी पर हिजाब के अभ्यास को खरा उतरना चाहिए. यह सकारात्मक प्रस्ताव है, जिस पर हम स्वतंत्र रूप से बहस कर रहे हैं.' 

2018 में तय हुई यूनिफॉर्म पर 2021 में हुई मुश्किल- महाधिवक्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने कहा कि '2018 में यूनिफॉर्म तय की गई थी. जब एक छात्राओं का ग्रुप, जो संभवत: याचिकाकर्ता हैं, प्रिंसिपल के पास पहुंची और कॉलेड में हिजाब पहनकर प्रवेश करने पर जोर दिया. इस पर दिसंबर 2021 से पहले तक कोई दिक्कत नहीं थी.' इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा-'क्या ये को-एड कॉलेज है?' जिस पर महाअधिवक्ता ने कहा- 'यह केवल लड़कियों का कॉलेज है.' 

हिजाब जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं- सुनवाई खत्म होने से पहले चीफ जस्टिस ने महाअधिवक्ता से पूछा- 'क्या हिजाब पहनना जरूरी धार्मिक प्रथा का हिस्सा है?' इस पर महाअधिवक्ता ने कहा कि 'मेरा जवाब है नहीं. क्यों नहीं है, मैं इसकी पुष्टि करूंगा.' इसके बाद सुनवाई 21 फरवरी तक के लिए टाल दी गई. 

17 फरवरी को हुई सुनवाई की दलीलें

हिजाब पर रोक कुरान पर बैन लगाने जैसा- कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान पार्टी-इन-पर्सन विनोद कुलकर्णी ने कहा कि 'हिजाब पर रोक लगाना कुरान पर प्रतिबंध लगाने के समान है.' कुलकर्णी की इस दलील पर आपत्ति जताते हुए हाईकोर्ट ने पूछा कि 'क्या हिजाब और कुरान एक ही चीज हैं?' इस पर विनोद कुलकर्णी ने कहा कि 'मेरे लिए नहीं, लेकिन पूरी दुनिया के लिए ऐसा ही है. मैं एक हिंदू ब्राह्मण हूं और कुरान पूरी दुनियाभर के मुस्लिम समुदाय के लिए है.' 

शुक्रवार और रमजान में मिले हिजाब पहनने की छूट- कर्नाटक हाईकोर्ट से पार्टी-इन-पर्सन विनोद कुलकर्णी ने छात्राओं को शुक्रवार के दिन हिजाब पहनने की अनुमति देने का अनुरोध किया. विनोद कुलकर्णी ने कहा कि 'मुस्लिम छात्राओं को शुक्रवार को हिजाब पहनने की छूट दी जाए. जुमा (शुक्रवार) का दिन मुसलमानों के लिए सबसे शुभ दिन होता है और रमजान का पवित्र महीना भी जल्द ही आ रहा है.' जिस पर हाईकोर्ट ने कहा कि 'हम आपके अनुरोध पर विचार करेंगे.' 

16 फरवरी को हुई सुनवाई की दलीलें

शिक्षा नियमों में हथियार का भी जिक्र नहीं- वकील रवि वर्मा कुमार ने हाईकोर्ट के सामने दलील दी कि 'शिक्षा नियमों के रूल नंबर 11 कहता है कि शिक्षण संस्थानों को यूनिफॉर्म बदलने से पहले अभिभावकों को एक साल का एडवांस नोटिस देना होता है. न तो अधिनियम के प्रावधान और न ही नियम कोई यूनिफॉर्म निर्धारित करते हैं. न तो अधिनियम के तहत और न ही नियमों के तहत हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है.' इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि 'यह सही सवाल नहीं हो सकता है. अगर इस दृष्टिकोण को लिया जाता है, तो कोई कह सकता है कि क्लास में हथियार ले जाने के लिए किसी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि, कोई निषेध नहीं है. मैं तार्किक रूप से विश्लेषण कर रहा हूं कि आपका प्रस्ताव हमें किस ओर ले जा सकता है. अगर यह निर्धारित नहीं है, तो कृपाण ले जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि, नियम 9 के तहत निर्धारित करने की शक्ति है. इस पर अलग से बहस करने की जरूरत है.' 

हिजाब के साथ शत्रुतापूर्ण भेदभाव- याचिकाकर्ता के वकील रवि वर्मा कुमार ने एक धार्मिक चिन्हों के एक रिसर्च पेपर के आधार पर कहा कि 'सर, जब सौ चिन्ह हैं, तो सरकार हिजाब को ही क्यों उठा रही है. चूड़ियां भी पहनी जाती हैं.' इस पर जस्टिस दीक्षित ने कहा कि 'जब तक पेपर की प्रमाणिकता स्थापित नहीं हो जाती, हम इसके कहे अनुसार नहीं चल सकते.' इस पर कुमार ने कहा कि 'मैं समाज के सभी वर्गों में धार्मिक प्रतीकों की विशाल विविधता को ही दिखा रहा हूं. सरकार अकेले हिजाब को क्यों उठा रही है और यह शत्रुतापूर्ण भेदभाव कर रही है? चूड़ियां पहनी जाती हैं? क्या वे धार्मिक प्रतीक नहीं हैं? आप इन बेचारी मुस्लिम लड़कियों को क्यों चुन रहे हैं?' 

आस्था और शिक्षा के बीच चयन का विकल्प- याचिकाकर्ता के वकील युसूफ मुछला ने कहा कि 'मुस्लिम लड़कियां जो ईमानदारी से मानती हैं कि उन्हें हेडस्कार्फ पहनना चाहिए, उन्हें आस्था और शिक्षा के बीच चयन करने के लिए कहा जा रहा है. क्या यह उचित है? यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.' 

15 फरवरी को हुई सुनवाई की दलीलें

धार्मिक प्रतीक करते हैं सुरक्षा प्रदान- याचिकाकर्ता मुस्लिम छात्राओं की ओर ह‍िजाब के पक्ष में दलील देते हुए देवदत्त कामत ने कहा क‍ि 'जब मैं स्कूल और कॉलेज में था, तो रुद्राक्ष पहनता था. यह मेरी धार्मिक पहचान को दिखाने के लिए नहीं था. यह विश्वास का अभ्यास था, क्योंकि इसने मुझे सुरक्षा प्रदान की. हम कई जजों और वरिष्ठ वकीलों को भी यह चीजें पहने हुए देखते हैं. इसका प्रतिरोध करने के लिए अगर कोई शॉल पहनता है, तो आपको यह दिखाना होगा कि यह केवल धार्मिक पहचान का प्रदर्शन है या कुछ और है. अगर इसे हिंदू धर्म, हमारे वेदों या उपनिषदों द्वारा अनुमोदित किया गया है, तो अदालत इसकी रक्षा करने के लिए बाध्य है.' 

दक्षिण अफ्रीका के नोज पिन केस का उदाहरण- देवदत्त कामत ने हाईकोर्ट के सामने दक्षिण अफ्रीका में 2004 के एक हिंदू लड़की सुनाली पिल्ले बनाम डरबन गर्ल्स हाई स्कूल केस का जिक्र किया. जिसमें सुनाली पिल्ले नाम की लड़की को स्कूल में नोज पिन पहनने से रोका गया था. स्कूल का कहना था कि यह स्कूल के कोड ऑफ कंडक्ट के खिलाफ है. इस मामले में दक्षिण अफ्रीका की अदालत ने लड़की को नोज पिन पहनने की छूट देने का निर्देश दिया था. 

हम तुर्की नहीं हैं- मुस्लिम छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने कहा कि 'राज्य कहता है कि हम सेकुलर स्टेट हैं. हम तुर्की नहीं हैं. हमारा संविधान सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का पालन करता है और सभी की आस्थाओं को पहचानना होगा.' 

14 फरवरी को हुई सुनवाई की दलीलें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 14 फरवरी को दी गई दलील में देवदत्त कामत ने हिजाब केस को लेकर जारी सुनवाई को मार्च के बाद करने को कहा था. क्योंकि, उनका मानना था कि हिजाब विवाद का चुनावी फायदा उठाया जा रहा है. हालांकि, हाईकोर्ट ने इस दलील को मानने से इनकार कर दिया था.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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