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Updated: 22 फरवरी, 2022 07:55 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद (Hijab Controversy) पर हाईकोर्ट में रोजाना सुनवाई हो रही है. याचिकाकर्ता मुस्लिम छात्राओं के वकीलों की ओर से हिजाब को संवैधानिक अधिकार (Constitutional Right) बताते हुए दलील दी गई है कि इस्लाम (Islam) में हिजाब एक जरूरी धार्मिक प्रथा है. हिजाब के पक्ष में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के जरिये सोशल मीडिया पर राजनेताओं, सेकुलर और कथित बुद्धिजीवी वर्ग पुरजोर तरीके से अपनी आवाज बुलंद कर रहा है. इन सबके बीच कर्नाटक के शिवमोगा में एक 26 साल के बजरंग दल कार्यकर्ता हर्ष की चाकुओं से गोदकर निर्मम हत्या कर दी गई. हर्ष का दोष केवल इतना था कि उसने हिजाब (Hijab) के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. हर्ष की इस मॉब लिंचिंग पर सोशल मीडिया पर #justiceforharsha और #HinduLivesMatter जैसे हैशटैग चलाए जा रहे हैं. अब यहां ये बताने की जरूरत नही पड़ेगी कि ये हैशटैग भाजपा नेताओं और हिंदूवादी संगठनों द्वारा ही चलाए जा रहे हैं. क्योंकि, हर्ष बजरंग दल का कार्यकर्ता था, तो पहलू-अखलाक-जुनैद पर छाती पीटने वाले और इसे अंतराराष्ट्रीय मुद्दा बनाने वाले राजनेता, सेकुलर और कथित बुद्धिजीवी वर्ग में कोई हलचल नजर नहीं आ रही है.

Karnataka Hijab Row Harsha Killedअसहिष्णुता का ढोल पीटने वालों को हर्ष की हत्या में कुछ भी गलत नजर नहीं आ रहा है.

'भड़काऊ' पोस्ट करने की जरूरत ही क्या थी?

सब कुछ बिल्कुल शांत नजर आ रहा है. असहिष्णुता का ढोल पीटने वालों को हर्ष की हत्या में कुछ भी गलत नजर नहीं आ रहा है. क्योंकि, 'जीने का अधिकार' भले ही भारत के नागरिकों को संविधान ने दिया हो. लेकिन, हर्ष की मॉब लिंचिंग पर चुप्पी साधने वाले राजनेताओं, सेकुलर और कथित बुद्धिजीवी वर्ग के अनुसार, देश के बहुसंख्यक हिंदुओं के पास ये संवैधानिक अधिकार नहीं है. क्योंकि, हिंदुओं के लिए इस संवैधानिक अधिकार की मांग करने भर से इस देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने लगता है. 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर भले ही 'जय श्री राम' का नारा लगाने वालों को आतंकवादी कह दिया जाए. लेकिन, हिजाब के खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट करना असहिष्णुता का चरम ही माना जाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सेकुलर और कथित बुद्धिजीवी वर्ग ऐसी घटनाओं के लिए भी बहुसंख्यक हिंदुओं को ही दोषी ठहराने में जुट जाएंगे. तर्क दिए जाएंगे कि आखिर हिजाब के खिलाफ सोशल मीडिया पर 'भड़काऊ' पोस्ट करने की जरूरत ही क्या थी?

'सांप्रदायिक' था बजरंग दल का कार्यकर्ता हर्ष!

वैसे, मॉब लिंचिंग का ताजा शिकार बने हर्ष का सबसे बड़ा दोष ये नही था कि उसने हिजाब के खिलाफ पोस्ट किया था. बल्कि, उसका सबसे बड़ा दोष यही था कि वह बजरंग दल का कार्यकर्ता था. तो, उसके लिए न्याय की मांग कैसे की जा सकती है? वो हिंदू था, ये पूरी तरह से अलग बात है. लेकिन, हर्ष दक्षिणपंथी था, तो उसकी नृशंस हत्या भी न्यायोचित ठहराई जा सकती है. इस देश के सेकुलर लोगों और कथित बुद्धिजीवी वर्ग की चुप्पी इसी ओर इशारा करती है. क्योंकि, भारत में सैकड़ों भगवा पहने छात्रों के सामने बुर्का पहनकर अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाने वाली मुस्कान को हमारे देश में एक धर्मनिरपेक्ष चेहरा घोषित कर दिया जाता है. भले ही उसे लाखों का इनाम देने वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद अहमदाबाद बम ब्लास्ट मामले में आरोपी साबित हुए मुस्लिम आतंकियों की पैरवी करने वाली ही क्यों न हो? वहीं, सबके लिए एक कानून की बात करने वाला हर्ष केवल बजरंग दल कार्यकर्ता होने की वजह से ही सांप्रदायिक घोषित कर दिया जाता है. और, उसकी हत्या पर इन लोगों की चुप्पी भी जायज हो जाती है.

मुस्लिम कट्टरपंथियों पर दोष लगाना बिगाड़ देगा सामाजिक ताना-बाना!

सीएए के विरोध में दंगा करने वाले 'अल्पसंख्यक' मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथियों को गलत नहीं कहा जा सकता है. असम की किसी घटना पर महाराष्ट्र में आग लगाने वाले मुस्लिम संगठनों को कठघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता है. ऐसे ही सैकड़ों मामलों को आखिर कैसे मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथियों से जोड़ा जा सकता है, क्योंकि वे केवल अपने मजहब की कथित रक्षा के लिए ये सब कर रहे हैं. बीते महीने गुजरात में किशन भरवाड़ की हत्या भी एक फेसबुक पोस्ट को लेकर कर दी गई थी. कट्टरपंथियों की भावनाएं किशन भरवाड़ की फेसबुक पोस्ट से आहत हो गई थीं. वहीं, एक स्कूली छात्रा लावण्या को इस वजह से जहर पीकर आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उसने ईसाई बनने से इनकार कर दिया था. इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि इतना सब होने के बावजूद भी हर्ष या किशन भरवाड़ और इससे पहले ऐसी ही घटनाओं में मारे गए सैकड़ों लोगों को मॉब लिंचिंग का शिकार नहीं माना जा सकता है. क्योंकि, अगर भारत में बहुसंख्यक हिंदू पीड़ित के तौर पर दिखने लगेगा, तो फिर असहिष्णुता के नाम पर अपना राजनीतिक और वैचारिक एजेंडा चलाने वालों की दुकान बंद होने का खतरा है.

जरूरी है हिंदुओं का अपराधबोध से भरे रहना!

भारत में सामाजिक ताने-बाने के लिए जरूरी है कि स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने की स्वतंत्रता को सेकुलर देश के तौर पर संवैधानिक अधिकार बताया जाए. लेकिन, यूनिफॉर्म सिविल कोड को अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन बताया जाए. और, ऐसी मांग करने वाले सांप्रदायिक घोषित होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे. हर्ष की निर्मम हत्या को एक दक्षिणपंथी की हत्या के तौर पर पेश कर बहुसंख्यक हिंदुओं को इस घटना का पक्ष लेने पर कथित सेकुलर और बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों द्वारा अपराधबोध से भरने का एजेंडा पूरा किया जा रहा है. और, आगे भी किया जाता रहेगा. इन तमाम चीजों के देखते हुए केवल इतना ही कहा जा सकता है कि हर्ष की मॉब लिंचिंग पर सोशल मीडिया पर #justiceforharsha और #HinduLivesMatter जैसे कैंपेन चलाने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने न्याय दिलाने की मांग के साथ उग्र प्रदर्शन करते हुए आगजनी और तोड़-फोड़ की घटनाओं का अंजाम दिया है. वैसे भी अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ हो रहे रंगभेद को दूर करने के लिए ब्लैक लाइव्स मैटर जैसा कैंपेन शुरू किया गया था. लेकिन, भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं, तो तार्किक तौर पर #HinduLivesMatters समझ से परे है. खैर, हर्ष बजरंग दल का कार्यकर्ता था, तो उसकी लिंचिंग पर #HinduLivesMatters का ट्रेंड नही होना चाहिए.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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