केरल के मदरसे ने क्या वाकई एक बच्ची को बिंदी के कारण बाहर कर दिया !
मदरसे पर तंज़ कसते हुए बच्ची के पिता ने फ़ेसबुक पर लिखा कि उनकी बेटी किस्मत वाली है कि उसे बिंदी लगाने की सज़ा पत्थर खाकर नहीं चुकानी पड़ी.
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केरल के एक मदरसे ने पांचवी कक्षा की बच्ची को केवल इसलिए निष्कासित कर दिया, क्योंकि उसने चंदन की बिंदी अपने माथे पर लगाई थी. एक लघु फिल्म में अभिनय करने के लिए बच्ची का बिंदी लगाना कुछ लोगों को पसंद नहीं आया. हैरानी की बात है कि उस बच्ची के पिता को बिंदी से आपत्ति नहीं है तो धर्म के ठेकेदारों को बिंदी से क्यों डर लग रहा है? मदरसे पर तंज़ कसते हुए बच्ची के पिता ने फ़ेसबुक पर लिखा कि उनकी बेटी किस्मत वाली है कि उसे बिंदी लगाने की सज़ा पत्थर खाकर नहीं चुकानी पड़ी.
बिंदी लगाने से, वह भी केवल कुछ समय के लिए, कैसे किसी का धर्म कमज़ोर हो सकता है? मोदी सरकार आने के बाद देश में असहिष्णुता की बहस जोरों-शोरों से उठी थी. एक 10 साल की बच्ची को बिंदी लगाने के लिए निष्कासित कर देना - क्या यह असहिष्णुता नहीं है? यदि मान भी लें कि मदरसे का प्रबंधन उस बालिका के कदम से सहमत नहीं था तो वह उसे और उसके परिवार से बात करके भी अपना मत साझा कर सकता था.
विभिन्न देशों में मुस्लिम महिलाएं अपने अधिकारों और बराबरी के लिए लड़ाई लड़ रही है. ईरान की महिलाएं सड़कों पर उतरकर, रूढ़ीवादियों द्वारा उन पर थोपे गए हिज़ाब का विरोध कर रही हैं. सऊदी अरब में महिलाओं की कोशिशों का परिणाम है कि अब वहां औरतें भी गाड़ी चला सकती हैं. सऊदी अरब ने कट्टर सोच से भरी वहाबी विचारधारा पर नकेल डालने का भी प्रयास शुरू किया है. जहां विश्व के अन्य मुस्लिम देश कम से कम उदारवाद और लैंगिक समानता के बारे में सजग होते दिख रहे हैं वहीं भारत इसके विपरीत धार्मिक कट्टरता की खाई में फंसता जा रहा है. जहां विश्व के अधिकतर मुस्लिम देशों ने तीन तलाक़ को अवैध घोषित किया हुआ है वहीं भारत में अब भी इस पर क़ानून नहीं बन पाया है.
किसी धर्म की परिपक्वता उसे मानने वाले लोगों की सोच और आचरण से झलकती है. यदि आपके आचरण के चलते दूसरे के विचारों को सम्मान न मिले, दूसरा व्यक्ति आपसे डर कर अपने विचारों को अभिव्यक्त न कर सके तो ऐसी धार्मिक व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है. धर्म तो लोगों को जोड़ने का माध्यम होना चाहिए न कि अलगाव और तानाशाही का स्रोत.
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