'केतली' की चाय बनी बेसहारों का सहारा
'केतली' एक ऐसी सामाजिक संस्था है जिसका उद्देश्य मानसिक रोग की पीड़ा झेल चुके लोगों को अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग देकर, उनके खोए आत्मविश्वास को वापस लाना और फिर उन्हें स्वाबलंबी बनाना है.
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जहां एक ओर देश के प्रधानमंत्री चाय पर चर्चा कर देश को बदलने का दावा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर एक कप चाय की प्याली समाज के उस तबके को आत्मनिर्भर बना रही है जो मानसिक रोग झेल चुके हैं और खुद को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लखनऊ की रहने वाली अंबरीन अब्दुल्लाह की 'केतली' ने मानसिक रोगियों के लिए रोज़गार के वो रास्ते खोले हैं जो शायद मानसिक रोगियों के लिए कभी संभव नहीं था. दरअसल 'केतली' एक ऐसी सामाजिक संस्था है जिसका उद्देश्य मानसिक रोग की पीड़ा झेल चुके लोगों को अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग देकर, उनके खोए आत्मविश्वास को वापस लाना और फिर उन्हें स्वाबलंबी बनाना है.
WHO की रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में मानसिक रोगियों के लिए काम करने वाले अलग-अलग संस्थानों में 1 लाख मानसिक रोगियों पर सिर्फ 7 सोशल वर्कर, 7 साइक्लोजिस्ट,1-3 नर्सिंग स्टाफ और 3 साइकेट्रिस्ट ही उपलब्ध हैं जो कि काफी चिंताजनक है. ऐसे में इन रोगियों को आत्मनिर्भर बनाना तो दूर इनके बेहतर स्वास्थ्य की कल्पना करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है.
मानसिक रोगियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है आत्मनिर्भर होना
लेकिन कहते है 'जहां चाह है वहां राह है'. और इसी चाह को अपने जीवन का उद्देश्य बनाकर अंबरीन गुजरात में WHO की एक बड़ी संस्था में नौकरी छोड़ लखनऊ वापस आ गईं. उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाली अम्बरीन एक मेंटल हेल्थ सोशल वर्कर हैं. उन्होंने मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से ‘सोशल वर्क इन मेंटल हेल्थ’ में मास्टर्स की डिग्री ली है. इसके बाद उन्होंने इंडियन लॉ सोसाइटी के लिए अहमदाबाद में दो साल मेंटल असायलम्स के साथ काम किया. काम के दौरान अक्सर मानसिक रोगियों के बीच रहकर अंबरीन को उन्हें करीब से जानने का मौका मिला.
अम्बरीन बताती हैं कि "काम के दौरान अक्सर मैं देखती थी कि जब किसी मानसिक रोगी की सेहत में सुधार आ जाता था तो उसे उसके परिवार के साथ वापस भेज दिया जाता था. लेकिन शाम को ही उसके परिवारवाले उसे वापस अस्पताल में भर्ती करा देते है. जिसके बाद उस रोगी की सेहत सुधरने के बावजूद दोबारा उसी स्तर पर चली जाती थी जहां से उसमें सुधार किया गया था." ये सब कुछ देखना अम्बरीन के लिए काफी चौंकाने वाला था. लेकिन अम्बरीन तय कर चुकी थी कि अब उनके जीवन का लक्ष्य सिर्फ मानसिक रोगियों की सेहत सुधारना ही नहीं बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाना भी है. और फिर यहीं से शुरू हुआ अम्बरीन की 'केतली' का सफर.
मानसिक कोगियों को रोजगार उपलब्ध करवा रही है 'केतली'
अंबरीन ने अपने शहर लखनऊ में अपने पार्टनर और अब पति फ़हाद अज़ीम के साथ मिलकर एक सामाजिक संगठन ‘केतली फाउंडेशन’ की नींव रखी. इस संगठन का उद्देश्य मानसिक रोग की पीड़ा झेल चुके लोगों को अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग देकर, उनके खोए आत्मविश्वास को वापस लाना और फिर उन्हें रोज़गार के अवसर प्रदान करना है. इसके साथ ही, यह संगठन समाज में मानसिक रोग के पीड़ितों के प्रति जागरूकता फैलाने का काम भी कर रहा है.
अम्बरीन बताती हैं कि "मानसिक रोगियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके बेहतर होने के बाद रोज़गार के अवसर ढूंढना है. क्योंकि 10 से 15 साल अस्पताल में बिता चुके ये लोग समाज से काफी पिछड़ चुके होते हैं और परिवार इन्हे पीछे छोड़ चुका होता है". ऐसे में इन लोगों को समाज की मुख्या धारा में लाना अम्बरीन के लिए एक बड़ी चुनौती था. लेकिन चुनौतियां अम्बरीन के हौसलों को डिगा नहीं पाईं और फिर लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट पर खोला गया पहला 'केतली' स्टाल. ‘केतली फाउंडेशन’ दवारा चलाये जा रहे इस प्रोग्राम को 'सपोर्टिव इम्प्लायमेंट मॉडल' की तर्ज पर चलाया गया जिसके तहत बेहतर हो रहे मानसिक रोगियों को एक ऐसे आदमी के साथ जोड़ा जाता है जो मानसिक रोगी न हो. उस आदमी के सुपरविजन में ये मानसिक रोगी एक टी स्टाल पर अपनी अपनी रूचि और योग्यता के अनुसार काम करते हैं.
'सपोर्टिव इम्प्लायमेंट मॉडल' की तर्ज पर चलाया गया है ये प्रोजेक्ट
एक स्टाल पर दो से तीन लोग काम करते हैं. सबसे पहले ये लोग हर दिन 2 घंटे चाय के स्टॉल पर काम करने से शुरू करते हैं. फिर धीरे-धीरे ये टाइम 4 घंटे होता है, फिर 6 और फिर 8 घंटों के लिए ये लोग यहां काम करते हैं. जिन भी मानसिक रोगियों के लिए केतली टीम रोज़गार तैयार करती है, उन्हें एक साल के इस प्रोग्राम के दौरान कुछ सैलरी भी दी जाती है.
‘केतली’ की टीम छह भागों में काम करती है- वोकेशनल ट्रेनिंग, साइको-सोशल सपोर्ट, काउंसलिंग, स्किल डेवलपमेंट, अवेयरनेस प्रोग्राम और एडवोकेसी. इस प्रोग्राम से जुड़ने वाले को सबसे पहले खुद पर निर्भर होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जैसे कि अकेले यात्रा करना, अपना कमरा खुद साफ रखना, अपने रोजमर्रा के काम खुद करना. फिर धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व के विकास पर काम होता है. एक-डेढ़ साल की ट्रेनिंग के बाद, केतली की टीम इन लोगों के एग्जिट प्लान पर भी काम करती है. वे इनसे पूछते हैं कि उन्हें अब आगे क्या करना है?
नवम्बर 2016 में गोमती रिवर फ्रंट पर खोले गए पहले 'केतली' स्टाल के बाद ये सिलसिला आगे बढ़ते हुए अब तक लखनऊ की अलग अलग जगहों पर 6 से 7 'केतली' टी स्टाल खोल चुका है. साथ ही अब तक कई मानसिक रोगियों की ज़िन्दगी में बड़े बदलाव भी ला चुका है. ट्रीटमेंट के बाद भी खुद को समाज से अलग महसूस करने वाले कई लोग अब ‘केतली’ की कोशिशों के चलते आज समाज में सम्मान से अपना जीवन जी रहे हैं. साथ ही इस संस्था के साथ जुड़कर मानसिक रोग का दंश झेल रहे लोगों का सहारा भी बन रहे हैं.
‘केतली’ के ही बैनर तले अब अम्बरीन ने एक दूसरा प्रोजेक्ट ‘डोर’ शुरू किया है. इस प्रोजेक्ट के तहत वे मानसिक रोग से पीड़ित महिलाओं को क्रोशिया की बुनाई से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग दिलवा रही हैं. साथ ही, उनके बनाए प्रोडक्ट्स को मार्केट तक पहुंचाने के लिए भी काम कर रही हैं.
देखा जाए तो मानसिक रोगियों को हमारे समाज में काफी हीन भावना से देखा जाता है. ऐसे लोग अगर आज खुद अपने पैरों पर खड़े होकर कमा रहे हैं, इससे बड़ी बात और क्या होगी? यही सबसे बड़ा बदलाव है, जिसके ज़रिए हम समाज का और इनका खुद का नज़रिया मानसिक रोग के प्रति बदल सकते हैं.
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