दो बहनों के बलात्कार का आदेश? शर्म कीजिए हिंदुस्तान...
महिलाओं के खिलाफ इन जघन्य अपराधों के दोषियों को क्यों कभी सज़ा नहीं मिलती है? क्यों उनका तिरस्कार नहीं किया जाता और क्यों उनको नपुंसक नहीं बनाया जाता?
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रक्षा बंधन का त्योहार हाल ही में श्रावण की पूर्णिमा पर मनाया गया. पुराणों में कहा गया है कि ये राजपूत रानियों ने पड़ोसी शासकों को भाईचारे के प्रतीक के रूप में राखी भेजने की प्रथा शुरू की थी.
इस शुभ अवसर पर पूरे भारत में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर पूरी निष्ठा के साथा राखी बांधती हैं और भाई उनकी रक्षा की कसमें खाते हैं. ये हमारी संस्कृति में बहुत लोकप्रिय है, बॉलीवुड और हमारे प्राइम टाइम शो भाई बहन के इस रिश्ते की भावुकता और पवित्रता को कुछ ज़्यादा ही बढ़ा चढ़ाकर परोसते हैं, जिसमें एक स्त्री के जीवन में एक भाई को पिता की भूमिका निभाते हुए दिखाया जाता है, हमेशा एक रक्षक, बड़े बूढ़े या फिर अभिभावक की तरह.
महाभारत में भी राखी की झलक मिलती है- कहा जाता है कि एक बार सुदर्शन चक्र चलाते वक्त श्री कृष्ण की उंगली कट गई थी और द्रौपदी ने खून रोकने के लिए तुरंत ही अपनी रेशमी साड़ी से एक पट्टी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी. श्री कृष्ण उनके समर्पण से द्रवित हो गए और उन्हें अपनी बहन घोषित किया और उस कर्ज को चुकाने का वादा किया. बाद में जब द्रौपदी को कौरवों के हाथों अपमान सहना पड़ा, श्री कृष्ण ने द्रौपदी को निर्वस्त्र होने से बचाने के लिए उनकी साड़ी को असाधारण रूप से बड़ा कर दिया था.
यौन हिंसा की डरावनी दरों को देखते हुए क्या आधुनिक भारतीय महिलाओं को अपनी लाज बचाने के लिए शक्तिशाली, प्रबल पुरुष रक्षकों की ज़रूरत है? या फिर रक्षाबंधन, भातृ द्वितीया, भाई दूज, भाऊ बीज, भाई फोटा, करक चतुर्थी(करवा चौथ), अशोक षष्ठी और दूसरे षष्ठी व्रत(जो ज़्यादातर बंगाल में मनाए जाते हैं) नारी-द्वेषी मॉडल को प्रबल करते हैं? जहां महिलाओं को अपने पति और बच्चों की सलामती के लिए प्रार्थनाएं और कठिन व्रत करने के लिए छोड़ दिया जाता है. ऐसी प्रथाओं का उद्देश्य लाभ पाने वाले की लम्बी उम्र के लिए कामना करना होता है, जबकि महिलाओं को दर्द सहने और कठिन शारीरिक तप करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. आत्म बलिदान करना तो हमारे डीएनए में है. और इसके लिए हमें कीमत चुकानी होगी- इसका मतलब है, भले ही बेरहमी से बलात्कार किया जाये या फिर सोशल मीडिया पर प्रताड़ित करने की धमकी दी जाए.
हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने 23 वर्षीय मीनाक्षी कुमारी का मामला उठाया, जो उन दो बहनों में से एक है जिनका बलात्कार करने की सज़ा सुनाई गई क्योंकि इन बहनों का भाई एक ऊंची जाति की विवाहित महिला के साथ भाग गया था.
मीनाक्षी और उसकी छोटी बहन अपने परिवार के साथ दिल्ली एक शादी में आई हुई थीं, जब उनके एक पड़ोसी ने उन्हें बुलाया और वापस गांव न जाने के लिए कहा. क्योंकि ज़्यादातर ऊंची जाति के जाट पुरुषों द्वारा प्रभुत्व रखने वाली खाप पंचायत ने भाई की करतूतों के लिए दोनों लड़कियों के बलात्कार करने और उनका मुंह काला कर निर्वस्त्र करके घुमाने का आदेश दिया था.
मीनाक्षी को ये कहते सुना गया कि 'मैं सो नहीं पा रही, मुझे डर लग रहा है.'
दलित जाति का उनका 25 वर्षीय भाई रवि कुमार और जाट परिवार की 21 वर्षीय कृष्णा के दो साल से प्रेम संबंध थे. जब दोनों परिवारों को पता चला तो उन्होंने दोनों प्रेमियों को अलग करने के लिए बहुत कुछ किया.
ये रेपिस्तान है-
वो देश जहां कहा जाता है कि रोज़ाना 92 महिलाएं बलात्कार की शिकार होती हैं, वहां जब घिनौने यौन शोषण के मामले संकलित किए जाएंगे तो शायद मीनाक्षी भी जल्दी ही फुटनोट में बदल जाएगी.
क्या हम इस तरह अपनी बेटियों को समाज में भेजें? ये शर्मनाक है कि जब वैवाहिक बलात्कार जैसे मामले पर कोई निर्णय लेने की बारी आती है तो देश का सर्वोच्च न्यायालय भी नपुंसक नज़र आता है. तो भले ही हम सती और जौहर जैसी प्रथा के खत्म होने पर गर्व महसूस करते हों, पर दहेज के लिए महिलाओं का जलना, उनके चेहरों पर तेजाब डालना, छोटी बच्चियों के साथ चलती स्कूल बसों में छो़ड़छाड़ करना जारी है.
क्यों हमारे गर्भ, योनि, छाती, कूल्हे और होंठ पर कलंक और लांछन लगाया जाता है? क्यों हमारे दुखों का मजाक बनाया जाता है? इन जघन्य अपराधों के दोषियों को क्यों कभी सज़ा नहीं मिलती, क्यों उनका तिरस्कार नहीं किया जाता और क्यों उनको नपुंसक नहीं बनाया जाता?
यौन हिंसा की विरासत-
इस साल अगस्त में, एक 16 वर्षीय दलित लड़की जो अपने पिता द्वारा बलात्कार किए जाने पर गर्भवती हो गई थी उसे कानपुर में डॉक्टर ने गर्भपात के लिए मना कर दिया क्योंकि उससे उसकी जान को खतरा था. उसके 18 साल के बड़े भाई के गरीबी के कारण जिम्मेदारी न लिए जाने पर लड़की को बाद में कानपुर के सरकारी शेल्टर होम भेज दिया गया. लड़की के तीन भाई और एक छोटी बहन है, और दो साल पहले उसकी मा की मौत हो गई थी.
क्यों हमारा भाग्य आखिरकार पुरुषों पर निर्भर करता है?
चलिए फिर पुराने समय पर नज़र डालते हैं.
2005 में पांच बच्चों की मां 28 वर्षीय मुस्लिम महिला इमराना का उसके ही 69 वर्षीय ससुर ने उत्तर प्रदेश के चरथावल गांव में बलात्कार किया. गांव के बड़े बूढ़ों और इस्लाम कानून के कुछ समर्थकों ने उसकी शादी को खारिज करते हुए दावा किया किया कि अब उसे अपने पति नूर इलाही को अपना बेटा मानना होगा.
देश की सबसे चर्चित इस्लामी मदरसे दारुल उलूम देवबंद ने जल्द ही एक फतवा जारी किया क्योंकि शरियत में पिता और पुत्र दोनों के साथ संबंध रखना व्याभिचार/गलत माना गया है.
बचाने और फिर से जीवन सुधारने के बजाय, ज़्यादातर महिलाओं को हमेशा समाज से बहिष्कृत किया जाता है- हमारे शरीर को ही खरोंचा जाता है. हमारे राजनेता राजनीतिक बयानबाजियों में हमें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते? पुरुषों की वासना के लिए हम कब तक एक यौन उपकरण बने रहेंगे?
सजे धजे रहेंगे?
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