New

होम -> समाज

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 नवम्बर, 2015 04:40 PM
ऋचा साकल्ले
ऋचा साकल्ले
  @richa.sakalley
  • Total Shares

जिस किसी ने खाप पंचायतों की स्थापना की होगी तो शायद यही सोचा होगा कि खाप पंचायतें विकास में भागीदार बनेंगी, छोटे-छोटे मामलों का निपटारा इन्हीं के जरिए हो जाएगा और न्याय व्यवस्था को बल मिलेगा. लेकिन कई ऐसे मामले सामने आए जिन्होंने खाप के निर्णयों पर सवालिया निशान लगा दिया. लड़कियों को स्कर्ट पहनने पर पाबंदी, बलात्कारी की उसी लड़की से शादी जिसके साथ उसने बलात्कार किया, सवर्णों के दलितों पर अत्याचार में सवर्णों के पक्ष में फैसला सुनाना, महिला को डायन बताकर गांव भर में घुमाना, ऑनर किलिंग में मदद करना आदि से संबंधित खबरें. समाचारों की मानें तो खाप के ऐसे ना जाने कितने फैसले हैं जो आपको हिलाकर रख देते हैं. लेकिन, मैं जिस खाप की बात आपको बताने जा रही हूं, उसके बारे में सुनकर आपको सुकून मिलेगा और आप खाप के बारे में सिर्फ नेगेटिव नहीं सोचेंगे बल्कि ये जानकर खुश होंगे की खापों की स्थापना जिस मकसद के साथ की गई, उसमें ये सफल रहे हैं.
 
मैं बात कर रही हूं हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के एक छोटे से गांव शाहाबाद की. मारकंडा नदी के तट पर बसा ये गांव आज गांव नहीं है बल्कि एक कस्बे में तब्दील हो गया है, सब डिविजन बन गया है. यहां नगरपालिका भी है जो काफी पुरानी है. आज से तीस साल पहले कोई इस गांव को जानता भी नहीं था लेकिन आज इंटरनेशनल मैप में इस कस्बे का नाम रोशन है. और इसके पीछे छिपी है इस गांव की खाप की पहल... इस खाप ने बदल दी शाहाबाद की तकदीर.
 
ये खाप ही थी जिसने यहां लड़कियों का सही मायने में सम्मान किया, उनकी इच्छाओं और प्रतिभा को ललकारा नहीं बल्कि उसे पोषित किया. शाहाबाद की खाप ने लड़कियों के लड़कों की तरह हॉकी खेलने पर सवाल नहीं उठाया, बल्कि उन्हें खेलने के लिए प्रेरित किया. यहां उनके छोटे स्कर्ट पहनकर हॉकी खेलने पर भी कोई हलकटपन नहीं दिखाया. इस खाप को यहां की लड़कियों ने क्या कपड़े पहने हैं ये देखने की फुर्सत नहीं थी, क्योंकि उसे दिख रहा था शाहाबाद का उज्जवल भविष्य, उसके फोकस में था शाहाबाद का नाम, शाहाबाद का विकास.
 
शाहाबाद में वो खाप ही थी, जिसने यहां हॉकी का मैदान बनने के फैसले को चुनौती नहीं दी और जब मैदान बना तो उसके बाद तो मानों गांव को चार चांद ही लग गया. यहां एस्ट्रो टर्फ लगी तो फिर तो अजूबा ही हो गया. इस छोटे से गांव से करीब 200 राष्ट्रीय स्तर के और 24 से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी निकले. भारतीय महिला हॉकी टीम के बारे में शाहाबाद की लड़कियों के बिना सोचना भी गुनाह है. हॉकी की गोल्डन गर्ल का खिताब पा चुकी रानी रामपाल और महिला हॉकी टीम की कप्तान ऋतु रानी शाहाबाद की ही देन हैं. यही नहीं, भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे संदीप सिंह भी शाहाबाद के हैं. हॉकी के मैदान में आज भी यहां छोटे स्कर्ट पहनकर लड़कियों को हॉकी के गुर सीखते देखा जा सकता है. यहां मैदान बना तो खिलाड़ी निकले, फिर खूब पैसा आया, करोड़ों रुपये के इनाम यहां आए और उस पैसे ने गांव को कस्बे में बदल दिया आज यहां लड़कियों का कॉलेज है, स्कूल है, बैंक है, सिविल कोर्ट है. कुल मिलाकर तरक्की ही तरक्की है. आज भले ही यहां खाप का वर्चस्व ना हो लेकिन ये गांव यहां की खाप का हमेशा शुक्रगुजार रहेगा. दरअसल सिर्फ सोच ही होती है, जो आपको आगे ले जा सकती है. अगर यहां की खाप भी बेवजह के सवाल उठाती, लड़कियों के कपड़े पहनने पर सवाल उठाती, प्रोग्रेसिव थिंकिंग नहीं रखती तो यहां की लड़कियां आज यूं शहर का नाम रोशन नहीं कर रही होतीं.
 
मुद्दे की बात तो ये है कि हर इंसान को इन तीन बातों की व्यक्तिगत छूट होनी चाहिए कि वो क्या पहनेगा, क्या खाएगा और क्या करेगा और ये छूट लड़कियों को भी मिलनी चाहिए. क्योंकि ये बात अब से, आज से, अभी से, दिमाग में धारण करनी ही होगी कि लड़कियां भी इंसान हैं.

#खाप पंचायत, #महिला हॉकी, #रानी रामपाल, खाप पंचायत, महिला हॉकी, रानी रामपाल

लेखक

ऋचा साकल्ले ऋचा साकल्ले @richa.sakalley

लेेखिका टीवीटुडे में प्रोड्यूसर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय