मैं सुजैट जॉर्डन हूं, पार्क स्ट्रीट रेप विक्टिम नहीं
सेशन कोर्ट का यह फैसला उस आदमी के मुंह पर तमाचा है. कोलकाता और समूचे मुल्क के हर उस आदमी के मुंह पर तमाचा, जिसने कहा कि वह गंदी औरत थी, कि उसके कारण कोलकाता की बदनामी हुई.
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आज सुबह-सुबह अखबार में एक खबर थी. पार्क स्ट्रीट रेप केस में सेशन कोर्ट ने तीन अभियुक्तों को दोषी करार दिया है. फैसला शुक्रवार को सुनाया जाएगा.ये वही लड़की है, जिसने कहा था- "मेरा नाम मत बदलना. मेरा चेहरा मत छिपाना. मैं सुजैट जॉर्डन हूं. पार्क स्ट्रीट रेप विक्टिम नहीं."
ये वही लड़की है, जिसकी इस साल मार्च में मौत हो गई थी. जो आखिर तक इज्जत से सिर उठाकर जीने के हक के लिए लड़ती रही, इस बात के लिए लड़ती रही कि "मैं सुजैट जॉर्डन हूं. पार्क स्ट्रीट रेप विक्टिम नहीं." उसके लिए मैं भी लड़ी थी एक बार. उतने ही हक से, उतनी ही बैचनी और दुख से, जैसे अपने लिए लड़ती हूं.
सुजैट जॉर्डन को मैं सिर्फ खबरों से जानती थी. जो कुछ लिखा गया उसके बारे में, पार्क स्ट्रीट की उस मनहूस अंधेरी रात के बारे में. उसे तस्वीरों में देखा. फिर सत्यमेव जयते में उसे बोलते सुना. उसने कहा था, "मेरा नाम मत बदलना. मेरा चेहरा मत छिपाना. मैं सुजैट जॉर्डन हूं. पार्क स्ट्रीट रेप विक्टिम नहीं." मैं उसके लिए अपार मुहब्बत और इज्जत से भर गई. जरूर किसी अदृश्य अपनापे की डोर से बंधी थी मैं. तभी तो उस शाम उसके लिए एक औपचारिक अजनबी से भी लड़ने को तैयार हो गई.
मेरे एक दोस्त का दोस्त था वो. न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में हम साथ थे. कोलकाता का कुछ जिक्र चला. सुजैट जॉर्डन का भी. कोलकाता के रहने वाले उस शख्स ने बड़ी हिकारत से सुजैट का नाम लिया. गंदी औरत थी. उसकी वजह से कोलकाता शहर बदनाम हो गया. उसने इतने हक से बोला कि उस रात जो कुछ हुआ, सब सुजैट की मर्जी से हुआ. ये रात-बेरात नाइट क्लबों में जाने वाली औरतों के कैरेक्टर का वैसे भी कोई भरोसा नहीं होता.
हम बीयर पी रहे थे, लेकिन उसकी बात सुनने के बाद मेरा सारा नशा काफूर हो गया. उस आदमी से तीखी बहस हो गई. तू-तड़ाक और झगड़े की हद तक. "सुजैट गंदी औरत थी. मैं भी गंदी ही औरत हूं. यहां बीयर पी रही हूं आपके साथ. इससे हक मिल जाता है आपको कि आप कुछ भी करें मेरे साथ. गंदी औरतों के साथ कुछ भी किया जा सकता है."
उस शाम मुझे बहुत रोना आया. मुझे रोना आया क्योंकि सुजैट ने कहा था, "मेरा नाम मत बदलना. मेरा चेहरा मत छिपाना. मैं सुजैट जॉर्डन हूं. पार्क स्ट्रीट रेप विक्टिम नहीं." मैं बेइंतहा दुखी थी.
सोचती हूं, कोलकाता वाला तो मुझे एक ही मिला था. सुजैट के अपने शहर में कितने ऐसे लोग मिले होंगे, जिन्होंने उसे संदेह भरी निगाहों से देखा होगा. मन-ही-मन उसका मजाक उड़ाया होगा. रेप विक्टिम होकर भी इतना क्यों सज-संवरकर रहती है. जरूर ये गंदी औरत है. फर्क नहीं पड़ता इसे सेक्स कर लेने से कि सेक्स के हो जाने से.
पता नहीं, किसी ने कभी पकड़ा भी उसका हाथ या नहीं. कोई उसके सीने से लगकर रोया भी होगा या नहीं. पता नहीं, किसी ने कहा कि नहीं कि कितना प्यार है तुमसे. दिल कैसी तो इज्जत और दुलार से भर-भर आता है.
कोई ऐसे ही नहीं मर जाता इतनी जल्दी. शरीर के हिस्से यूं ही काम करना नहीं बंद कर देते. कोई थाह नहीं है उस दुख और अकेलेपन की, जो इतनी हिम्मत दिखाने के बावजूद सुजैट के हिस्से में आए होंगे. वो कितनी बार मरी होगी, असल में मरने से पहले. मैं जो इतना मरी उस औरत के लिए, जिसकी उंगली भी कभी छूकर नहीं देखी.
सभ्य कोलकाता, सभ्य मुल्क, सभ्य समाज के समस्त सभ्य नागरिक ये कभी नहीं समझ पाएंगे कि क्यों मर गई सुजैट जॉर्डन अपने पक्ष में आया यह फैसला सुनने से पहले ही.
सेशन कोर्ट का यह फैसला उस आदमी के मुंह पर तमाचा है. कोलकाता और समूचे मुल्क के हर उस आदमी के मुंह पर तमाचा, जिसने कहा कि वह गंदी औरत थी, कि उसके कारण कोलकाता की बदनामी हुई.
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