सनातन संस्कृति को खंडित करने का हथियार बन चुका है 'लिव इन रिलेशनशिप'
'लिव इन रिलेशनशिप' पर तीखी टिप्पणी करते हुए केरल हाईकोर्ट ने कहा कि ईश्वर की धरती माना जाने वाला केरल कभी गहरे परिवारिक संबंधों के लिए जाना जाता था. अब यहां वैवाहिक संबंध 'इस्तेमाल करो और फेंक दो' कि उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित हो गए हैं. 'लिव इन रिलेशनशिप' के चलते तलाक लेने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, शिव पार्वती, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पवित्र रिश्तों से अवगत करवाकर आपसी स्नेह को मजबूत बताने का प्रयास किया जाता है, वहीं आजकल पश्चिमी देशों से प्रेरित होकर एक नया शिगूफा हिंदू सनातन संस्कृति को खंडित करने का खड़ा किया जा रहा है. इसका नाम है "लिव इन रिलेशनशिप". यानि शादी से पहले लड़के लड़की का साथ रहना वो भी पति पत्नी की ही तरह. आप कल्पना करें कि भला कैसे संस्कृति के साथ-साथ संस्कारों का भी दहन करने का ये प्रयास आज की पीढ़ी द्वारा किया जा रहा है. शिक्षा को मूलभूत विकास समझ बैठे आज की युवा पीढ़ी धर्म और संस्कृति को ही तोड़ने को अपनी तरक्की समझती है. आज जहां केरल का शिक्षा स्तर पूरे भारत में सबसे ज्यादा है वहीं वहां लिव इन रिलेशनशिप और फिर तलाक के मामले कानूनी पचड़ों में फंसते नजर आ रहे हैं.
कुछ दिन पहले केरल हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि ईश्वर की धरती माना जाने वाला केरल कभी गहरे परिवारिक संबंधों के लिए जाना जाता था लेकिन अब यहां वैवाहिक संबंध 'इस्तेमाल करो और फेंक दो' कि उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित हो गए हैं. 'लिव इन रिलेशनशिप' और स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते तलाक लेने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. अदालत का मानना है कि युवा पीढ़ी विवाह को बुराई के रूप में देखने लगी है. इसे वह बिना जिम्मेदारी की आजादी वाले जीवन का आनंद लेने के लिए टालना चाहती है. जस्टिस ए. मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की पीठ ने कहा, ''अब युवा पीढ़ी वाइफ (पत्नी) शब्द को 'वॉइज इन्वेस्टमेंट फॉर एवर' (सदा के लिए समझदारी वाला निवेश) की पुरानी अवधारणा के बजाए 'वरी इनवाइटेड फॉर एवर' (हमेशा के लिए आमंत्रित चिंता) के रूप में परिभाषित करती है.
लिव इन रिलेशनशिप' पर केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी कई मायनों में अहम है.
कोर्ट की इस पीठ ने यह भी कहा, ''लिव इन संबंध के मामले बढ़ रहे हैं, ताकि वे अलगाव होने पर एक दूसरे को अलविदा कह सकें. जब स्त्री एवं पुरुष बिना विवाह किए पति-पत्नी की तरह एक ही घर में रहते हैं तो उसे लिव इन संबंध कहा जाता है.'' अदालत ने 9 साल के वैवाहिक संबंधों के बाद किसी अन्य महिला के साथ कथित प्रेम संबंधों के कारण अपनी पत्नी और तीन बेटे बेटियों को छोड़ने वाले व्यक्ति की तलाक की याचिका खारिज करते हुए कहा, ''स्वार्थ के कारण अथवा विवाहेतर संबंधों के लिए यहां तक कि अपने बच्चों की भी परवाह किए बिना वैवाहिक बंधन तोड़ना मौजूदा चलन बन गया है. एक दूसरे से संबंध तोड़ने की इच्छा रखने वाले जोड़े, (माता-पिता द्वारा) त्यागी गए बच्चे और हताश तलाकशुदा लोग जब हमारी आबादी में अधिसंख्य हो जाते हैं तो इससे हमारे सामाजिक जीवन की शांति पर निसंदेह प्रतिकूल असर पड़ेगा और हमारे समाज का विकास रुक जाएगा.''
पीठ ने कहा कि प्राचीन काल से विवाह को ऐसा संस्कार माना जाता है जिसे पवित्र समझा जाता है. यह 'मजबूत समाज की नींव' के तौर पर देखा जाता है. विवाह, पक्षों की यौन इच्छाओं की पूर्ति का लाइसेंस देने वाली कोई खोखली रस्म भर नहीं है. स्वार्थ के कारण वैवाहिक बंधन तोड़ना मौजूदा चलन बन गया है. आज के समय का यह एक कड़वा सच है. जिम्मेदारियों से दूर भागने समय-समय पर अपनी जिम्मेदारी को ना समझने का ही बहाना है 'लिव इन’ रिलेशनशिप', जहां एक तरफ पति पत्नी के रिश्ते को सात जन्म का रिश्ता मानने के साथ-साथ बच्चों के वर्तमान और बच्चे के भविष्य के लिए माता-पिता द्वारा किए गए प्रयासों को कहीं ना कहीं तोड़ने की साजिश है.
'लिव इन’ रिलेशनशिप', भावनाओं और सम्मान की प्रवृत्ति को तोड़कर केवल और केवल अपने स्वार्थ को फलीभूत करना ही बनकर रह गया है. आज के शिक्षा के स्तर को समझना होगा, शिक्षा के स्तर को केवल शिक्षा तक ही सीमित ना रख कर, हिंदू सनातन संस्कृति के आधार स्तंभ वेदों की तरफ लौटना होगा. हमारे धार्मिक ग्रंथों को शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावशाली बनाकर धर्म पुरुषों और महापुरुषों के जीवन का अनुसरण करने का अनुग्रह आज की युवा पीढ़ी के साथ करना होगा. तभी युवा पीढ़ी बचेगी, उनका संस्कार बचेगा और युवा पीढ़ी बचेगी तभी हमारा धर्म बचेगा, सनातन संस्कृति बचेगी, हमारे संस्कार बचेंगे.
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