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Updated: 09 अगस्त, 2016 08:31 PM
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देश का कानून कहता है कि शादी-शुदा दंपत्ति के बीच बलात्कार कोई जुर्म नहीं है. न पत्‍नी फरियादी हो सकती है और न पति आरोपी. ये इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) का सेक्शन 377 कहता है. अब हरियाणा की रेवाड़ी कोर्ट के एक जज ने इस धारा पर बड़ा सवाल खड़ा किया है. दरअसल उनके सामने एक महिला शिकायत लेकर आई है कि उसका पति उसके साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है.

अब कानून के मुताबिक हमारे देश में अप्राकृतिक संबंध सिर्फ समलैंगिकों के बीच गैरकानूनी है और इसके लिए सजा का प्रावधान है. लेकिन शादी-शुदा लोगों के लिए कानून में कुछ नहीं कहा गया है. लिहाजा जज साहेब ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से सुझाव मांगा है.

याद कीजिए 2012 का वह निर्भया कांड. देश के सबसे सुरक्षित शहर दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती एक बस में 23 साल की एक लड़की का गैंगरेप. इस घटना के बाद देश के कानून में (आईपीसी के सेक्शन 375 में बलात्कार की परिभाषा) बलात्कार की परिभाषा में थोड़ा सुधार किया गया.

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 पति पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध कैसे जायज?

कानून में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के दायरे को बढ़ाते हुए ओरल और एनल सेक्स को शामिल कर लिया गया. लेकिन इस कानून के दायरे में शादी-शुदा जोड़ों को शामिल नहीं किया गया.

अब रेवाड़ी की निचली अदालत को लगता है कि यह संभव है कि कोई महिला शादी के दौरान हुए अप्राकृतिक संबंधों की मंजूरी दे चुकी हो लेकिन तलाक जैसी स्थिति आने पर वह अपने पति को इस सेक्शन का गलत इस्तेमाल करके फंसा दे. गौरतलब है कि कानून के इस सेक्शन के तहत अधिकतम सजा उम्रकैद है.

देश के कई थानों में पत्नी की शिकायत पर पति पर सेक्शन 377 के तहत अप्राकृतिक संबंध बनाने का मुकदमा दर्ज होने का मामला सामने आया है. लेकिन रेवाड़ी के जज साहब ने हाई कोर्ट से पूछा है कि यह कैसे संभव है कि जो व्यक्ति धारा 377 के तहत अपराधी है वह कैसे धारा 375 के तहत बेगुनाह हो सकता है?

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