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Updated: 09 जुलाई, 2015 01:58 PM
कमलेश सिंह
कमलेश सिंह
  @kamksingh
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मध्य प्रदेश सुर्ख़ियों में है. व्यापम की व्यापकता से देश सदमे में है. ना जाने कितने कंकाल छुपे हैं इस कोठरी में जिसमें रौशनी नहीं जाती. देश में मध्य प्रदेश की चर्चा नहीं होती जब तक वह किसी त्रासदी के मध्य नहीं पाया जाए. बाकी देश की नजरों से ऐसे छुपा है ये प्रदेश, उसके बीचों बीच पसरे होने के बावजूद. मैं जब दस साल का था तब बिहार के एक गांव में बुजुर्गों ने बताया कि हमारे पुरखे मध्य प्रदेश से आए थे. मैं भी कुछ महीने भोपाल रहा काम के सिलसिले में. फिर मैं निकल आया.

एक बार कवि सम्मलेन के मंच पर एक कवि का कुछ यूं परिचय करवाया गया कि महाशय मध्य प्रदेश से आए हैं, तो वहां बैठे हास्य कवि से रहा ना गया. वह बोल उठे: यही क्यों, हम सभी मध्य प्रदेश से ही आए हैं. मनुष्य मध्य प्रदेश से ही आता है. ठहाकों के बीच लोग भूल गए कि बात सच भी हो सकती है. मध्य प्रदेश में गोंड बसते हैं, जो देश के प्राचीनतम मनुष्यों में से हैं. भीमबेटका के भित्ति चित्र और समुद्र की लहरों के निशान बताते हैं कि मध्य प्रदेश इस ज़मीन पर मानव सभ्यता के केंद्र में था.

मगर हम तब के मध्य प्रदेश के बारे में बात नहीं कर रहे, हम अब के मध्य प्रदेश के बारे में बात करें जिसे हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है. पहले तो वह विज्ञापन ही गलत है. अगर भारत एक धड़कता शरीर है तो मध्य प्रदेश हृदय नहीं, उदर है. दिल इधर है, वह उधर है. दिल ना होकर पेट है. पेट हमारे शरीर का वह अंग है जिस पर हम ध्यान नहीं देते हैं. जीते हैं जिसके लिए और जो हमें जिंदा रखता है, पर ढंका रहता है और छुपा रहता है. कभी कभार दुखा और पुदीन हरा से दर्द नहीं भरा तो गोली खा ली. पेट कभी नोटिस ही नहीं करते हम, अगर वह फूले ना. कोई पेट से हो तो क्रेडिट पांव को जाता है जो अनावश्यक भारी हो जाता है. जब पेट और पीठ मिलकर एक होते हैं तब भी लोग नेक होते हैं और जो नहीं होते वह पेट को पापी बताकर आपके सवालों पर सवाल खड़े करते हैं.

ताल और तलैयों वाली राजधानी भोपाल सुंदर बहुत है, पर कहां राजा भोज और कहां आज के भोपाल की चाल. गाली, जुगाली, राग भोपाली. अब कोई सूरमा ही खुद को भोपाली कहे और गर्व करे. सैफ के पिताश्री मंसूर अली खान भोपाल और पटौदी के नवाब थे. पटौदी की हरियाणा में ढाणी से औकात है भोपाल के सामने फिर भी, नवाब साहब पटौदी के नवाब कहलाते. भोपाल को बीच में नहीं लाते. इंदौर व्यावसायिक राजधानी कहलाता है पर खुद को मिनी मुंबई मानता है. किसी को मध्य में रहने में मज़ा नहीं आता है.

मध्य में होना कैसा है, ये मंझलों से पूछ लो या मध्यमवर्ग से. जो बड़ा है उसे किसी नीति, नियम से फर्क नहीं पड़ता. जो छोटा है उसे मनपसंद नीतियां मिलती हैं. ये जो मध्यवर्ग है उसे लगता है देश वह चला रहा है पर इस चलने में मज़ा सा कुछ ना आ रहा है. उसे शिकायत रहती है, बुड़बुड़ाता है जैसे पेट गुड़गुड़ाता है. चर्बी चढ़ गई तो लोग मज़ाक उड़ाते हैं, थोड़ी कसरत करते हैं तो आत्मविश्वास बढ़ जाता है. नितिन गडकरी ने अपने मध्य प्रदेश में सर्जरी करा ली और पतले न हुए, जैसे छत्तीसगढ़ के निकल जाने पर भी मध्य प्रदेश उन्नीस नहीं हुआ. अपने हिंदुस्तान में पेट की मुश्किलें ख़त्म नहीं होतीं. गैस सबसे बड़ी त्रासदी होती है. गैस ने घर कर लिया तो इंसान की हवा निकल जाती है. तीन दशक हो गए, कार्बाइड ने रातों की नींद उड़ा रखी है.

हक़ीक़त है कि पेट का आदमी को तभी ख्याल आता है जब पेट गड़बड़ाता है. स्थिति सामान्य बनी रहे तो आदमी को एहसास भी नहीं होता कि हम कुछ महत्त्वपूर्ण लिए घूम रहे हैं. पेट अगर क्योर और प्योर नहीं हो, तो लाख फेशियल करा लो आदमी या काला पड़े या पीला. पर पेडिक्योर, मेनिक्योर सुना होगा, पेटिक्योर कोई नहीं करवाता. आदमी तभी घबराता है जब पेट की आड़ में पैर नज़र नहीं आता है. पर्दों पर सिक्स पैक देखता आदमी उन परतों को कोसता है जिसने सिक्स पैक को पर्दों में छुपाया है.

जिनके सिक्स पैक होते हैं पेट उनका भी होता है, पर नज़र नहीं आता. क्योंकि पेट छुपाया जाता है. छप्पन इंच के पेट पर कोई नहीं ऐंठता है, छप्पन इंच की छाती पर वोट निछावर होते हैं. हमारे सामजिक रोगों की जड़ में है मनुवादी वर्ण व्यवस्था. उसमें उदर वैश्य है. विडम्बना है कि पेट प्रतिनिधित्व करता है उनका जो पेट भरते हैं, जिससे शरीर चलता है. कभी बीमारू मध्य प्रदेश पेट भरने में कसर नहीं छोड़ रहा. शरबती गेंहू की मिठास देश के हर किचन में है. चंबल अब डाकुओं के नाम से नहीं जाना जाता. उद्योग अब धंधा हो गया है. शिवराज को इसका श्रेय जाता है क्योंकि बीमारू की पंक्ति से निकाल लाए पर किसी को नजर नहीं आता.

ये व्यापम कहीं और होता तो त्राहि-त्राहि हो जाती. बीस से ज्यादा साल हो गए, पंद्रह सालों से तो जांच चल रही है. पचास के करीब लोग मर गए हैं. तब जाकर हमको पता चला कि ये पथरी नहीं, ट्यूमर है. कैंसर फैल गया है तब तो देश की नींद खुली. पेट का रोग सभी रोगों का जड़ है. पेट में बैक्टेरिया बहुतायत में होते हैं. अच्छे भी, बुरे भी. अच्छाई और बुराई के बीच लड़ाई अनवरत, निरंतर चलती है. आँखों को दीखता नहीं पर विशेषज्ञ बताते हैं कि अच्छे बैक्टेरिया खाना पचाने में मदद करते हैं. बुरे तो ठहरे खानाखराब, ज़रूरत-ए-जुलाब. पर ऐसा विरले ही होता है कि बुराई जीते. पेट में बुराई का प्रसार हो तो सारा शरीर बीमार हो जाता है. इसलिए आहार पर नियंत्रण आवश्यक है. देश जो खाता पीता है, वह पेट में हलचल मचाता है, हजम हो जाता है या फिर पीड़ा देता है.

इसमें कहीं न कहीं, कोई सीख है. जरूरी है कि हम अपने अपने मध्य प्रदेश का खयाल रखें, अच्छे वक्त में और बुरे में भी. देश मध्य प्रदेश का ध्यान रखे. क्रिकेट कप्तान अपने मध्यक्रम का. बच्चों में मंझलों का. ये कमाल कर सकते हैं. ये एमपी अजब है, सबसे गज़ब है.

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