जब देश कोरोना से जूझ रहा था तब महाराष्ट्र में कुछ लोग कन्या भ्रूण के पीछे पड़ गए!
बेटे की भूख में लोग कन्या भ्रूण की जान के प्यासे रहे हैं. कोरोना महामारी के दौरान महाराष्ट्र में सरकार निगरानी से क्या चूकी, प्रसव पूर्व जमकर गर्भस्थ शिशु के लिंग की जांच हुई, और कन्या भ्रूण होने पर उसका काम तमाम किया गया. नतीजा ये हुआ कि 2021 में महाराष्ट्र में 1000 लड़कों पर लड़कियों का अनुपात 906 तक पहुंच गया.
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कोरोना काल (Corona pandemic) में कई बेटियां कोख में ही मार (Female foeticide) दी गईं. बात इतनी संवेदनशील है मगर दिल इतना दुखा है कि सीधे सवाल पर आते हैं. आखिर कोख में पलने वाली बच्चियों ने क्या बिगाड़ा था कि उन्हें पैदा होने से पहले ही मार दिया? बेटियां तो आपकी थीं मगर किसी ने आपको उन्हें मारने का हक नहीं दिया? दुनिया के सामने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी बड़ी-बड़ी बातें कर लेने भर से आप जागरूक नहीं हो जाएंगे. अरे बेटियों से ही तो घर चहकता है, आखिर वो आपसे ऐसा क्या ले लेती हैं जो आप उनसे पैदा होने का हक ही छीन लेते हैं?
असल में महाराष्ट्र लिंगानुपात 2021 की रिपोर्ट आ गई है. जिसके अनुसार हर 1,000 लड़कों पर सिर्फ 906 लड़कियां ही बची हैं. यह आंकड़ा पिछले पांच सालों में सबसे खराब है. इसमें सबसे बुरा हाल बुलढाणा जिले का है जहां सिर्फ 862 लड़कियां ही हैं. वहीं सबसे अधिक लड़कियों की संख्या गढ़चिरौली की है जहां लड़कियों की संख्या 962 है. वहीं पुणे जिले में लड़कियों की संख्या 911 है जबकि पिछले साल 2020 में यह संख्या 924 थी. इस हिसाब से एक साल में पुणे जैसे शहर में लड़कियों की संख्या में 13 की कमी आई है. हैरानी इस बात की है कि पुण जैसे शहर के पढ़े-लिखे लोगों ने भी लड़कियों को कोख में मार दिया.
अपनी बच्ची को कोख में मारने वाले पता नहीं कैसे आज चैन की सांस ले रहे हैं
महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग और नागरिक पंजीकरण प्रणाली के अनुसार, कोरोना महामारी के समय महाराष्ट्र में साल 2019 से 2021 तक लिंग अनुपात में गिरावट हुई है. एक कार्यकर्ता का कहना है कि "कोरोना काल में लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण हत्या खूब हुई." इधर प्रशासन और राज्य मशीनरी कोविड -19 के प्रसार को रोकने में लगी थी उधर माता-पिता ने बच्चियों को कोख में मार दिया".
इसी का नतीजा है कि महाराष्ट्रा के कुल 35 जिलों में से 14 जिलों नासिक, धुले, नंदुरबार, जलगांव, अहमदनगर, सोलापुर, सतारा, कोल्हापुर, अहमदाबाद, जालना, उस्मानाबाद, बीड, वाशिम और बुलढाणा में प्रति एक हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 900 से भी कम है.
आह, सोचिए पिछले कुल सालों में लड़कियों की संख्या कितनी कम हो रही है. अपनी बच्ची को मारने वाले पता नहीं कैसे आज चैन की सांस ले रहे हैं. समझ नहीं आता कि बेटा ऐसा क्या कर लेता है जो बेटी नहीं कर पातीं. अगर यही हाल रहा तो आने वाले सालों में लड़कियां की संख्या कहां पहुचेगी आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए. ऐसा घिनौना काम करने वालों से हम यही कहेंगे कि कल्पना करना, इन बेटियों के बिना यह दुनिया कैसा होगी?
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