1992 से बहुत अलग है 2018 में अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन
इस बार जो अयोध्या में प्रदर्शन हो रहा है वो 1992 के प्रदर्शन से कई मायनों में अलग है. चाहें सरकार हो, चाहें प्रशासन, चाहें राम का नाम लेकर प्रदर्शन करने वाले लोग सभी बदल गए हैं. इतिहास को ध्यान में रखकर सरकार ने बहुत कड़े इंतजाम किए हैं.
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अयोध्या में एक बार फिर से राम मंदिर को लेकर विवाद शुरू हो गया है. हालांकि, इसे विवाद से ज्यादा शक्ति प्रदर्शन कहा जा सकता है क्योंकि ये कुछ-कुछ ऐसा ही लग रहा है. मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा जो सदियों से चला आ रहा है वो अब भी कायम है बस फर्क इतना है कि अब हिंदुत्व का नारा भाजपा ने नहीं शिवसेना ने बहुत आगे बढ़ाया है और इसी कड़ी में अब उद्धव ठाकरे अयोध्या में शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं.
खैर, इस बार जो अयोध्या में प्रदर्शन हो रहा है वो 1992 के प्रदर्शन से कई मायनों में अलग है. चाहें सरकार हो, चाहें प्रशासन, चाहें राम का नाम लेकर प्रदर्शन करने वाले लोग सभी बदल गए हैं. इतिहास को ध्यान में रखकर सरकार ने बहुत कड़े इंतजाम किए हैं.
1992 में क्या हुआ था?
- 1992 में लगभग हर हिंदू घर के ऊपर भगवा झंडा लगा हुआ था जिसमें वो अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन का सहयोग कर रहा था.
- उस समय अलग-अलग शहरों से पूड़ी-सब्जी के पैकेट कारसेवकों के लिए भेजे जा रहे थे और लगभग हर शहर, हर गांव में 'राम लला हम आएंगे.. मंदिर वहीं बनाएंगे.' गूंज रहा था.
1992 के आंदोलन की जमीन तो 1990 से ही तैयार हो गई थी.
- उस आंदोलन में भाजपा की सबसे शक्तिशाली तिकड़ी अटल बिहारी वाजपेई, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और विश्व हिंदू परिषद के चीफ अशोक सिंघल जिन्हें 'हिंदू हृदय सम्राट' कहा जाता था वो सभी को लीड कर रहे थे. यहां तक कि चारों शंकराचार्यों ने भी अपना समर्थन दे दिया था.
- तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने शहर की कई मशीनरी और काम रुकवा दिए थे ताकि अयोध्या में और लोग आ सकें. ये वो समय था जब खतरनाक स्तर पर अयोध्या में लोगों ने अपना डेरा डाल लिया था.
उस समय भाजपा को सपोर्ट इसलिए भी ज्यादा मिला था क्योंकि उस समय मुलायम सिंह ने 1990 में कारसेवकों पर गोलियां चलवा दी थीं और तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह और मुलायम सिंह मुसलमानों को मनाने में लगे हुए थे.
मुलायम सिंह सरकार ने हजारों कारसेवकों को 1990 में जेल में भेज दिया था और हिंदुओं के ऐसा लग रहा था कि नेता मुसलमानों को मनाने के लिए वोट पॉलिटिक्स कर रहे हैं. यहां तक कि मुस्लिम लीडर जैसे सयैद साहाबुद्दीन भी हिंदुओं को उकसा रहे थे.
क्या हो रहा है अब?
- इस बार इतना बड़ा आंदोलन नहीं है और इसे सिर्फ एक पार्टी विशेष का शक्ति प्रदर्शन कहा जा सकता है.
- इस बार राजनीतिक परिस्थितियां भी ऐसी नहीं हैं और मुसलमान भी शांत है. जहां कांग्रेस ने भी इस समय सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति अपना ली है. भाजपा इस मुद्दे को अपना राजनीतिक नारा बना रही है और किसी भी तौर पर वो हिंसा नहीं दोहराई जा रही जो पहले थी.
- धर्म सभा की बात करें तो भाजपा इस समय VHP से दूर रह रही है और शायद ये चाह रही है कि राम मंदिर का रास्ता किसी और तरह से साफ हो जाए.
इस बार भाजपा के विरोध में हो रहा है आंदोलन
- पिछली बार हिंदुओं को VHP की तरफ से आगे किया गया था इस बार ये मोर्चा शिवसेना ने ले लिया है और भाजपा को 4.5 साल के कार्यकाल में भी मंदिर नहीं बनवाने को लेकर विरोध किया जा रहा है.
हालांकि, इस बार भी शिवसेना की तरफ से कुछ तरीके अपनाए जा रहे हैं जैसे उद्धव ठाकरे अपने साथ शिवनेरी किले (पुणे) की मिट्टी लाए हैं जो राम जन्मभूमि के पुजारी को दी.
VHP की तरफ से भी एक अलग इवेंट चल रहा है जिसे 1992 के बाद सबसे बड़ी सभा कहा जा रहा है. लगभग दो लाख लोग इस समय अयोध्या में हैं.
उत्तर प्रदेश पुलिस फोर्स के 35 सीनियर अफसर, 160 इंस्पेक्टर और 700 से ज्यादा कॉन्सटेबल इस समय अयोध्या में तैनात किए गए हैं साथ ही रैपिड एक्शन फोर्स, आर्म्ड कॉन्सटेबुलरी और एंटी टेररिजम स्क्वॉड के कमांडो तैनात किए गए हैं.
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