मलाला यूसुफजई ने ईरान के हिजाब विरोध के समर्थन में खानापूर्ति कर दी है
मलाला यूसुफजई तो महिलाओं की हमदर्द हैं. वे तो हमेशा महिलाओं के अधिकारों को लेकर आवाज उठाती रही हैं, फिर ईरान की महसा अमिनी की मौत पर एक लंबी चुप्पी के बाद उन्होंने खानापूर्ति कर दी है!
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पूछा जा रहा था कि महिला अधिकार के लिए काम करने वाली मलाला यूसुफजई (Malala Yousafzai) इन दिनों कहां हैं? क्या उन्हें ईरान (Iran) की लड़कियों की चीखें सुनाई नहीं दे रही हैं? क्या वे नहीं जानती कि ठीक से हिजाब (Hijab) ना पहनने की वजह से महसा अमिनी (Mahsa Amini) को इतना मारा गया कि वह पहले कोमा में चली गई और फिर उसकी मौत हो गई? सोशल मीडिया पर काफी ट्रोलिंग झेलने के बाद आखिर शुक्रवार शाम मलाला सोशल मीडिया पर आईं, और एक सधी हुई लाइन में खानापूर्ति करके चली गईं.
क्या मलाला को नहीं दिख रहा है कि महसा की मौत से आहत ईरान की महिलाएं हिजाब के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रही हैं
महसा की मौत से आहत ईरान की महिलाएं हिजाब के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रही हैं. वे हिजाब के विरोध में अपने बाल काट रही हैं. वे अपने सिर से हिजाब उतारकर उसे आग में जला रही हैं. इस्लामिक कट्टरपंथी रिवाजों के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं का ये सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है. दुनियाभर से ईरानी महिलाओं के समर्थन में आवाज उठाई जा रही है. ताकि पिछड़ेपन की निशानी हिजाब से मुक्ति पाने के लिए उनका हौंसला मजबूत हो सके. लेकिन, मलाला ने ईरानी महिलाएं के हिजाब विरोध पर आंखें मूंदे रखीं.
क्या मलाला नहीं जानतीं कि ठीक से हिजाब ना पहनने की वजह से महसा अमिनी को मौत दी गई
लेकिन, यही मलाला कर्नाटक के हिजाब विवाद पर खुलकर सामने आई थीं. उन्होंने न सिर्फ हिजाब के पक्ष में ट्वीट किया, बल्कि भारतीय नेतृत्व को संबोधित करते हुए लिखा कि वे मुस्लिम महिलाओं को हाशिये पर न धकेलें. मलाला की तरह उस समय कई इस्लामी कट्टरपंथी हिजाब के समर्थन में बयान दे रहे थे. अब आइये शब्दश: देखते हैं कि कर्नाटक के हिजाब विवाद पर मलाला ने क्या कहा था, ताकि ईरान मामले पर उनके बयान की तुलना की जा सके.
मलाला के मन में हिजाब गर्ल मुस्कान के लिए दर्द है तो फिर दुनिया छोड़ के जा चुकी महसा के लिए क्यों नहीं
मलाला ने कर्नाटक की मुस्कान के समर्थन में ट्वीट किया था कि 'हिजाब पहने हुई लड़कियों को स्कूलों में एंट्री देने से रोकना भयावह है. कम या ज्यादा कपड़े पहनने के लिए महिलाओं का किसी चीज (objectification) की तरह समझा जा रहा है. भारतीय नेताओं को मुस्लिम महिलाओं को हाशिये पर जाने से रोकना चाहिए.'
“College is forcing us to choose between studies and the hijab”.Refusing to let girls go to school in their hijabs is horrifying. Objectification of women persists — for wearing less or more. Indian leaders must stop the marginalisation of Muslim women. https://t.co/UGfuLWAR8I
— Malala (@Malala) February 8, 2022
अब आइये, मलाला के ईरान मामले पर बयान का रुख करते हैं, जो उन्होंने महसा अमिनी की मौत के आठ दिन बाद ट्विटर पर दिया. मलाला कहती हैं- 'एक महिला जो भी पहनना चाहे, उससे चुनने का अधिकार उस महिला को होना चाहिए. मैं पहले भी कह चुकी हैं कि यदि कोई मुझे हिजाब पहनने के लिए फोर्स करेगा, तो भी मैं विरोध करूंगी. और कोई हिजाब उतारने के लिए फोर्स करेगा, तो भी विरोध करूंगी. मैं महासा अमीनी के लिए न्याय की मांग करती हूं.'अपने ट्वीट में मलाला ने न तो ईरानी सरकार को कठघरे में खड़ा किया, और न ही उन ईस्लामी कानून को जिनके तहत हिजाब अनिवार्य किया गया है.
Whatever a woman chooses to wear, she has the right to decide for herself. As I have said before: If someone forces me to cover my head, I will protest. If someone forces me to remove my scarf, I will protest. I am calling for justice for #MahsaAmini. https://t.co/Vi7jVqUHzf
— Malala (@Malala) September 23, 2022
महिला अधिकारों के लिए मुखर रहीं मलाला का ईरान मामले पर इससे नरम बयान नहीं हो सकता. इस खानापूर्ति से उन्होंने उन इस्लामिक कट्टरपंथियों को राहत दी है, जो भारत में एक्टिव हैं. भारत में इस्लामी कट्टरपंथ पर ईरान की घटना का नकारात्मक असर न पड़े, इसका इंतजाम भी मलाला ने कर दिया है. उनका बयान महासा अमीनी के पक्ष में था, हिजाब के विरोध में नहीं. जो कि इस्लाम की नजर में अनिवार्य है, च्वाइस का मामला नहीं. मलाला हिजाब मामले में च्वाइस की बात कहकर आंख में धूल झोंक रही हैं.
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