'शादियों' के जरिये Covid को निमंत्रण हमने खुद भेजा, पॉजिटिव केस और मौतों पर रंज कैसा?
भारत में Covid 19 की दूसरी लहर और इसके चलते हुई मौतों ने हमारी स्वास्थ्य सेवाओं और सरकार पर सवालिया निशान लगा दिए हों. लेकिन देश में दूसरी लहार क्यों आई इसकी वजह हम और हमारे घरों में हुई शादियां हैं. हमने अच्छा महूर्त/ दिन तारीख तो देख लिया बस ये नहीं देखा कि अभी समय शादियां करने और भीड़ जमा करने का नहीं है.
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शादी सिर्फ लोगों में नहीं होती. कम से कम हमारे देश भारत में नहीं होती. इस बात को एक देश के रूप में भारत की विशेषता कहना कहीं से भी गलत नहीं है. शादी दो लोगों के अलावा, दो परिवारों का मेल है जिसमें नए रिश्ते जन्म लेते हैं और व्यक्ति पूरी शिद्दत से उन्हें निभाता है. शादी में क्योंकि दो व्यक्ति एक दूसरे का सुख दुःख बांटने का वचन लेते हैं तो चाहे लड़की का हो या लड़के का जब कोई आफ़त, घर परिवार पर आती है तो उसे खत्म करने के लिए दोनों जी जान लगा देते हैं... देश कोविड की दूसरी लहर का सामना कर रहा है. दूसरी लहर पहली के मुकाबले कहीं ज्यादा निर्मम और निष्ठुर थी. हमारे बीच के कई लोग सदा के लिए हमसे कहीं बहुत दूर जा चुके हैं जहां से उनका लौटकर वापस घर की तरफ आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. सवाल होगा कि पहले कोविड फिर शादी और परिवार. आखिर इसमें समानता क्या है? बता दें कि तमाम विशेषज्ञ और हेल्थ एक्सपर्ट्स ऐसे हैं जिनका मानना है कि दूसरी लहर के दौरान जो कुछ भी हुआ जिस तरफ से लोग लापरवाही पर उतरे, बीमार हुए, मौत को गले लगाया उसकी एक बड़ी वजह शादियां और उन शादियों में मौजूद भीड़ थी.
भले ही कोविड की दूसरी वेव के मद्देनजर कितने भी तर्क क्यों न दे दिए जाएं सच्चाई यही है कि शादियां इसका एक बड़ा कारण थीं
जैसा कि कहा गया है Marriages are made in heaven तो बीते 25 मार्च को हम भी छोटे भाई की शादी के गवाह बने. कोविड के खतरे से हम लोग अंजान नहीं थे इसलिए मेहमान कम रखे गए. बधाई देने के लिए जब भी दोस्त और रिश्तेदारों का फोन आता यही कह दिया जाता कि घर की इस शादी में यदि आप उपस्थिति दर्ज कराने में नाकाम होते हैं तो भी कोई बात नहीं. अपना ध्यान रखें और घर पर रहें.
क्योंकि भारत जैसे देश में शादियां अकेले नहीं होतीं तो हमारे घर पड़ी शादी में उतने लोग थे जितने की इजाजत हाल फिलहाल में जिला प्रशासन दे रहा था. शादी हुई. नई दुल्हन आई और सब कुछ अच्छे से निपट गया लेकिन शादी के दो दिन बाद वो हुआ जिसका अंदाजा उस शख्स को तो बिल्कुल नहीं होगा जो खुशियों से घिरा था. जिस घर में कुछ दिनों पहले तक खुशियां खिलखिला रही थीं वहां बीमारी ने अपनी दस्तक दे दी थी. शुरुआत घर में मौजूद बूढ़ी दादी से हुई जो 2 दिन में भली चंगी हो गईं इधर मां और पिता कोविड पॉजिटिव हो गए.
खुद कल्पना कीजिये हर उस शख्स की, जिसके साथ ऐसा मिलता जुलता कुछ हुआ होगा. या फिर एक ऐसे दूल्हे और दुल्हन की कल्पना कीजिये जो एक दूसरे को समझने के लिए कहीं घूमने जाना चाहते थे लेकिन नियति को ये मंजूर नहीं था और उन्हें वहां जाना पड़ा जहां कभी ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोग थे. तो कहीं लोग एड़ी से लेकर छोटी तक का जोर इसलिए लगाते ताकि उनके साथ आए रोगी को बेड मिल जाए और फिर उसका इलाज हो जाए.
हो सकता है कि पढ़ने और सुनने में ये बात बहुत साधारण सी लगे. लेकिन इसे उस नवविवाहित जोड़े के संदर्भ में रखकर सोचिएगा जिसकी नई नई शादी हुई है तो मिलेगा कि किसी भी नए शादी शुदा जोड़े के लिए ये (शादी के अगले ही दिन अस्पताल जाना) एक ऐसा दंश है जो शायद उसे जीवन भर दर्द दे. ऐसा इसलिए क्योंकि सवालिया निशान उस कपल की खुशियों पर लगा है.
हाल फिलहाल कई घरों में शादियां हुईं और ऐसी भी खबरें आई कि उन घरों में लोगों की मौत हुई. यानी जिस घर में कल तक जश्न का माहौल था वहां कुछ ही घंटों में मातम बरपा हो गया. ध्यान रहे इसके लिए न तो दूल्हा जिम्मेदार है और न ही दुल्हन. अगर कोई जिम्मेदार है तो वो एक असभ्य समाज के रूप में हम हैं. जिन्होंने मुसीबत को ख़ुद अपने दरवाजे पर निमंत्रण दिया.
ये एक कड़वी बात है. तमाम लोगों का आहत होना लाजमी है. लेकिन व्यक्तिगत रूप से बताऊं तो महामारी को मैंने ख़ुद अनुभव किया है. दरवाजे तक वायरस ने कैसे दस्तक दी इसपर मेरे पास बहुतेरे तर्क और कुतर्क हो सकते हैं. लेकिन आदमी को अपने से ईमानदार होना चाहिए. ईमानदारी का तकाजा यही कहता है कि मैं सच बोलूं और डंके की चोट पर इस बात को स्वीकार करूं कि कारण कुछ और नहीं बल्कि घर में हाल फिलहाल में हुई शादी ही था.
चूंकि बात किसी और के नहीं बल्कि अपने घर की है यो दुख होता है उस छोटे भाई और उसकी पत्नी पर जो अभी कुछ दिन पहले दूल्हा और दुल्हन थे. दोनों ने शायद ही कभी सोचा हो कि अपनी नई जिंदगी और नए भविष्य के सपने छोड़कर उस मां की सेवा में दिन रात एक करेंगे जिसकी सांसे ऑक्सीजन और एलोपैथिक दवाओं के सहारे चल रही है.
मां, छोटे भाई की मां है. जमाना कहेगा न केवल पुण्य बल्कि मां, वो भी बीमार मां की सेवा करना एक बेटे का धर्म है मगर नई बहू... नई बहू कभी रसोई में है तो कभी दवाओं के साथ मां के सिरहाने. वो लगातार इसी कोशिश में है कि ऐसा क्या हो जाए कि उसकी सास या ये कहें कि उसके पति की मां ठीक हो जाए. और हां ये सब उस वक़्त हो रहा है जब अभी उसके हाथों की मेहंदी भी नहीं उतरी है.
कोई कुछ कह ले लेकिन घर की नई बहू को उसके सेवा भाव के लिए नमन रहेगा. जिस शिद्दत से वो अपनी सास की सेवा में है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि यदि ईश्वर ने दुखों का पहाड़ दिया तो घर परिवार की नई बहू के जरिये वो मार्ग भी बताया जिसपर चलते हुए इन दुखों को पार लगाया जा सकता है.हो सकता है कि उपरोक्त तमाम बातों के बाद इस लेख को पढ़ रहा व्यक्ति आलोचक बन कमेंट कर दे कि जब देख रहे थे कि मौत तांडव कर रही है तो शादी नहीं करनी चाहिए थी.
बात बिल्कुल सही है मगर इससे ज्यादा सही वो बात है जो 2020 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कही थी और बताया था कि अब वो वक़्त आ गया है जब हमें कोरोना के साथ ही जीना है.
ध्यान रहे स्थिति जब ऐसी हो तो अगर शादी न भी होती और अगर बीमारी लगनी ही होती तो लग जाती. हो सकता है शादी में स्प्रेडर घर में आया कोई मेहमान हो लेकिन ये स्प्रेडर कोई कैब वाला, दूध वाला, सब्जी वाला, ऑटो वाला, परचून वाला भी तो हो सकता था. हम आखिर इस बात को क्यों भूल रहे हैं कि जब कोविड के मद्देनजर वायरस के आदान प्रदान में हर चीज की प्रबल संभावना है तो फिर इसकी क्यों नहीं हो सकती?
बहरहाल, जो होना था हो गया यूं भी बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि होनी को टाला नहीं जा सकता लेकिन हां कुछ बुरा हो उसके लिए प्रिकॉशन जरूर लिए जा सकते हैं और वो प्रिकॉशन यही हैं कि आदमी बेवजह भीड़ भाड़ वाली जगह पर न जाए. जाए तो मास्क लगाकर जाए, घर आए तो कपड़े बाहर ही उतारे. हाथों को धोए और नहाए. वक़्त मुश्किल है और कोविड की इस दूसरी लहर से बचा तभी जा सकता है जब हम अपने स्तर से न केवल सावधानी बरतें बल्कि पूरी तरह से उस पर अमल भी करें. याद रहे कोविड से बचने के लिए जानकारी ही बचाव है.
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