मिलिए भारत के असली 'पैडमैन' यानी माहवारी वाले आदमी से
जहां लाखों महिलाएं माहवारी को लेकर सुरक्षित स्वास्थ्य साधन जुटा नहीं पातीं, वहीं एक पुरुष सबसे अच्छा सैनिटरी पैड बनाने की खोज पर निकल जाता है. अब उसी आदमी का किरदार अक्षय कुमार फिल्म पैडमैन में निभाने जा रहे हैं.
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ये कहानी है एक ऐसे शख्स की जो आम होते हुए भी खास है. जिसका लक्ष्य तो बेहद सामान्य था लेकिन उसे पूरा करते-करते वो कुछ ऐसा कर गया जो बेहद असामान्य था. भारत की लाखों महिलाएं जो महीने के उन दिनों में परेशानियां झेलती हैं, उनके जीवन में बदलाव लेकर आए अरुणाचलम मुरुगनंथम, जिन्होंने गरीब महिलाओं के लिए सस्ते सैनिटरी पैड्स डिजाइन किए और उन्हें घर घर तक पहुंचाया भी. लेकिन आसान सा लगने वाला ये सफर काफी चुनौती भरा रहा. इस सफर को एक वीडियो के जरिए दिखाया गया है, जो फिलहाल सोशल मीडिया पर वायरल है, 23 घंटों में ही इस वीडियो को 33 लाख से भी ज्यादा बार देखा गया और करीब 35 हाजार बार शेयर किया गया है. जानिए क्यों.
India's Menstruation ManIn a world where millions of women can't afford safe menstrual hygiene, one man goes on a quest to make the perfect sanitary pad. His neighbours called him a pervert and his wife left him, but he never gave up. He is India's Menstruation Man.Find out more about his story:http://aje.io/MenstruationMan
Posted by Al Jazeera English on Tuesday, March 1, 2016
कैसे हुई शुरुआत
दक्षिण भारतीय अरुणाचलम मुरुगानंथम शादी के बाद पत्नी को खुश करने के लिए छोटे छोटे तोहफे लाया करते थे. एक दिन उन्हें ये जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि चूंकि उनकी पत्नी सैनिटरी पैड खरीद पाने की स्थित में नहीं थीं इसलिए उन्हें महीने के उन दिनों में पुराने तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता था जो स्वच्छता की दृष्टि से ठीक नहीं था. पत्नी की मदद करने कि लिए उन्होंने खुद एक सस्ता सैनिटरी पैड बनाने का निर्णय लिया जिसे वो अपनी पत्नी को तोहफे में देकर इंप्रेस करना चाहते थे.
ये आसान काम नहीं था
बाजार में उपलब्ध दूसरे सैनिटरी पैड्स की ही तरह मुरुगा एक सस्ता पैड बनाना चाहते थे. इसके लिए वो कॉटन रोल लाए और उसके साथ उन्होंने इसपर काम करना शुरू कर दिया. दो दिन में जाकर उन्होंने एक पैड तैयार कर लिया, और अपनी पत्नी को इस्तेमाल करने दिया. पत्नी को वो पैड जरा भी पसंद नहीं आया. उन्होंने कहा कि वो कपड़ा ही इस्तेमाल करेंगी, क्योंकि ये पैड बिलकुल बेकार है. अब मुरुगा इसे सुधारने कि लिए फिर से जुट गए. वो अलग-अलग मैटीरियल के साथ एक्सपैरिमेंट करने लगे. वो जांच के लिए पैड्स अपनी पत्नी को देते, लेकिन इन नए-नए पैड्स की जांच करने के लिए उन्हें एक महीने का इंतजार करना पड़ता था, जो काफी लंबा समय था. इसलिए उन्होंने अपने गांव के ही एक विश्वविद्यालय की मेडिकल छात्राओं को इन पैड्स को टेस्ट करने के लिए कहा. छात्राओं ने उन्हें इस्तेमाल तो किया लेकिन शर्म की वजह से वो उसके बारे में ज्यादा कुछ बता नहीं पाईं.
एक अजीब फैसला
मुरुगा के पास कोई चारा नहीं था और उन्होंने एक हैरान करने वाला फैसला लिया. उन्होंने खुद उस पैड को पहनकर जांच करने की ठान ली. एक रबड़ के ब्लैडर से नकली यूट्रस बनाया गया जिसे ट्यूब की मदद से पैड से जोड़ा गया, और ब्लैडर में जानवर का रक्त भर लिया गया. दबाब पड़ने पर रक्त स्राव वैसा ही होता जैसा महावारी में होता है.
अपनी पत्नी के साथ मुरुगा |
पत्नी ने छोड़ा साथ
वो ब्लैडर पहनकर ही रहते, नतीजा ये हुआ कि उनके शरीर से दुर्गंध आती और कपड़ों पर अक्सर खून के दाग पाये जाते. पड़ोसियों ने बातें बनाना शुरू कर दिया, लोग उन्हें पागल तक कहने लगे. जब लोगों की बातें बर्दाश्त से बाहर हो गईं तो उन्की पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गईं. पत्नी को लगा कि वो चली जाएंगी तो मुरुगा ये सब करना बंद कर देंगे. लेकिन वो जुटे रहे. अपने काम में सफलता तो नहीं बल्कि तलाक का नोटिस जरूर मिला गया. मुरुगा ने फिर भी हार नहीं मानी और शोध करते रहे. अपने शोध में उन्होंने पाया कि भारत की केवल 10 से 20 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं ही महावारी के लिए हाइजीनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं. वो अब इस मिशन पर जुट गए कि उन्हें भारत की हर महिला तक कम कीमत वाले सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराने हैं.
मेहनत रांग लाई
अपने सैनिटरी पैड के लिए सही मैटीरियल खोजने में उन्हें दो साल लग गए. और इस योजना को साकार रूप देने के लिए उन्होंने करीब 4 सालों में आसानी से चलने वाली तीन मशीनें भी तैयार कीं. जिनका इस्तेमाल कर कोई भी महिला अच्छे और सस्ते सैनिटरी पैड्स तैयार कर सकती है. बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड्स की आधी कीमत में ये पैड्स तैयार हो गए.
अब महिलाएं उनकी बनाई मशीनें खरीद सकती हैं और खुद के सैनिटरी पैड्स बनाकर बेच सकती हैं. मुरुगा की इन मशीनों ने गांव में रहने वाली महिलाओं को रोजगार प्रदान किए. देश के 27 राज्यों में 1300 मशीनों पर ये पैड्स तैयार किए जाते हैं. मुरुगा ने अब ये पैड्स दूसरे देशों में निर्यात भी करने शुरू कर दिए हैं. कई कंपनियों ने मुरुगा से उनकी मशीनें खरीदनी चाही लेकिन उन्होंने अपनी मशीनें किसी कंपनी को नहीं बेचीं. वो अपनी मशीनें केवल महिलाओं की स्वयं सेवी संस्थाओं को ही देते हैं.
आज मुरुगा एक जाना माना नाम हैं. ये उनकी मेहनत, लगन और महिलाओं की मदद करने की भावना ही थी जिसने उन्हें टाइम्स मैगजीन 2014 के सौ प्रभावित करने वाले लोगों की सूचि में ला खड़ा किया.
मरुगा का लक्ष्य था पत्नी को तोहफा देना, लेकिन उन्होंने देश के हर गांव की महिला को जो तोहफा दिया उससे पत्नी भी इंप्रेस हो ही गईं. 5 साल पति से दूर रहने के बाद मुरुगा की पत्नी भी उनके पास वापस आ गईं. उनका लक्ष्य पूरा हुआ. वो कहते है कि जब वो इस स्तर पर ही बेहद खुश हैं, तो अगले स्तर पर जाने की क्या जरूरत.
भारत में रहने वाली हर पांच में से एक लड़की को महावारी के चलते स्कूल छोड़ना पड़ता है. गांव और पिछड़े तबके में रहने वाली महिलाएं बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड्स नहीं खरीद सकतीं. ऐसे में मुरुगा की एक जिद ने इन सभी महिलाओं की जिंदगी बदल दी.
अक्षय कुमार अब मुरुगानंथम का किरदार फिल्म पैडमैन में निभाने जा रहे हैं, देखिए ट्रेलर :
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