मिलिए श्रीमती इमरान खान से: ये कोई रहस्यमयी महिला नहीं
पाकिस्तान के आज तक के सबसे बड़े सेलेब्रिटी और शायद सबसे मशहूर राजनीतिज्ञ की शादी निश्चित ही एक सनसनीखेज खबर बनने वाली थी, और हाँ, ये बनी भी.
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प्रतिक्रिया तो आनी ही थी (इसी प्रतिक्रिया की उम्मीद थी). जिज्ञासा होना भी जरूरी था. हालाँकि, वे प्रतिक्रियाएं... ओ माय गॉड. पाकिस्तान के आज तक के सबसे बड़े सेलेब्रिटी और शायद सबसे मशहूर राजनीतिज्ञ की शादी निश्चित ही एक सनसनीखेज खबर बनने वाली थी, और हाँ, ये बनी भी. समझदार लोगों के हिसाब से अतुलनीय, क्योंकि अगर विद्वेष और तानों को परखा जाय तो ज्यादातर लोगों की दूसरी शादी को शायद ही इतना महत्व मिल पाता है, वो भी इस अनोखे अंदाज में.
देखिये भी. ये इमरान खान की शादी थी. 62 साल की उम्र में शायद ही वो हॉटेस्ट बैचलर रह गए हो, बावजूद इसके अभी उनका चेहरा आकर्षक और शरीर फिट बना हुआ है. उनकी नेक नीयत राजनीतिक गतिविधियों के बावजूद उनकी आलोचना होती है. क्योंकि उनके भाषणों में अलंकारों की भाषा अक्सर बीप करने वाली होती हैं. आइडियाज भी अक्सर 1980 की मनमोहन देसाई की फिल्मों के डायलॉग की तरह हुआ करते हैं. ये कहने के बाद भी इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि खान अपनी तरफ लोगों को खींच लेते हैं. ओ माय गॉड वाली प्रतिक्रियाएं पाते हैं और किसी भी दूसरे राजनीतिज्ञ से कहीं ज्यादा लोग उन्हें फॉलो करते हैं. शब्दशः, ट्विटर पर भी. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी दूसरी शादी को सकारात्मक या दूसरे तरह की ज्यादा प्रतिक्रियाएं मिलीं बजाय नवाज शरीफ के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के. ऐसा ही उन्माद है इमरान खान को लेकर इस देश में जिसे पाकिस्तान कहा जाता है.और जिस महिला से उन्होंने शादी की, या जिस महिला ने उनसे शादी की - उन लोगों का सीधा निशाना बनीं जो इमरान खान को राजनीतिक रूप से महत्वहीन मानते हैं लेकिन फिर भी उनके कामों से प्रभावित रहते हैं. रेहाम खान. एक 'रहस्यमयी' महिला जिसके बारे में कोई नहीं जानता लेकिन दावा सब करते हैं. कौन है रेहाम? कहाँ से आई है वो? उसने ऐसा क्यों कहा? वो चलती क्यों है ? वो साँस क्यों लेती है. और क्यों इमरान खान उससे शादी कर रहे हैं? ये ऐसे सवालों की झाड़ियाँ हैं जो कानों में मच्छर की आवाज की तरह चुभती हैं.
कैसे राजनीतिक मतभेद इतने अव्यवस्थित हो जाते हैं कि गरिमा को ताक पर रख दिया जाता है, और कम होती शिष्टता, बदलकर कीचड़ उछालने की प्रतियोगिता बनकर रह जाती है. ऐसा लगा जैसे अपने निजी जीवन में लिए गए किसी राजनितिक फैसलों को सम्मान देने के बजाय, किसी मीडिया के शख्शियत के सामने खान की शादी का विश्लेषण करते हुए घटिया विचारों की अभिव्यक्ति हो रही है. ईर्ष्या? जलन? बुरा आकर्षण? एक अदूरदर्शी राय? कड़े फैसले? एक हो या दूसरा, और यहाँ आप पाते हैं कि एक बेहद ही सादे तरीके से दो लोगों की निजी शादी जिसमे सहमति भी है, उनके लिए तांक झांक की घटना बन जाती है जो यह मानते हैं कि विचारों का जहर बुझा होना या प्रतिक्रियाओं को तेज़ाब की तरह होना चाहिए. कम से काम हम लोगों के लिए जो मानते हैं कि किसी की निजी जिंदगी बस एक निजी जिंदगी है. उफ़.
ट्विटर बहुत ही अजीब लेकिन एक शानदार माध्यम है जिसकी वजह से हम रेहाम से वाकिफ हो चूके थे. एक बार एक दुसरे से हमने बात-चीत भी किये. कुछ संदेशों का आदान -प्रदान भी हुआ. और फिर मैं उसके एक शो पर गेस्ट भी थी. उससे ऑनलाइन मुलाकात की मेरी यही सीमा थी, उस पत्रकार से जिसके बारे में मैं ट्विटर पर उसके लगातार सक्रिय रहने और टीवी पर उसके आकर्षक मौजूदगी का बस उल्लेख कर सकती हूँ कभी कभी मैं उसके ट्वीट पर सफाई या उसका बचाव करती भी होती हूँ. बिना उसे जाने ही कोई भी उसके संवेदनशील ईमानदारी और स्पष्टता की पराकाष्ठा को उसके ट्विटर के माध्यम से देख सकता है.
लोग क्या सोचते हैं ये उसके लिए मायने रखता है जबकि एक शुभचिंतक के रूप में मेरी राय यही है कि उसे नकारात्मक सोच वाले लोगों से बचना चाहिए. जितनी धैर्यता से वो नकारात्मक सोच वाले लोगों को भी जवाब देती है, ये भी अपने आप में एक तारीफ है. आज नहीं तो कल ये फांसने वाले लोग इसके गैर आक्रामक जवाबों से उकता कर कोई न कोई नया शिकार ढूंढने निकल जायेंगे. उफ़ , साँपों की भरमार है , ऐसे में लंबे घुटने तक वाले जूते पहनना जरूरी है अगर घास में चलना है तो. जब मैं इंडिया टुडे वुमन मैगजीन की कवर स्टोरी के सिलसिले में रेहाम से मिली, हाल फिलहाल ही एक हाई प्रोफाइल राजनीतिज्ञ से शादी करने वाली महिला से एक फीके इंटरव्यू की ही हम आशा कर रहे थे. और उस सुहावने अप्रैल के दिन में मेरी केवल वही बात गलत नहीं हुई, बानी गाला, इस्लामाबाद के शानदार घर में रहने वाली उस महिला के बारे में खूब सुन रखा था. हाँ, इमरान खान का घर पहाड़ी पर हैं, जहाँ 300 नहरें हैं. कई एकड़ में फैला फैला यह इलाका. चमक-दमक से दूर नजर आता है. कराची के सबसे प्रतिभावान फोटोग्राफर मदीहा ऐजाज़ को ले सबसे पहले मैं रेहाम की सबसे छोटी बेटी इनाया से मिली. 12 साल की एक बिलकुल ही दिलचस्प लड़की जिसने मुझे अपने घर के सभी छह कुत्तों से मिलवाया. जब मैं सादगी लेकिन बहुत ही खूबसूरती से रखी लिविंग रूम में रेहम का इंतज़ार कर रही थी, एक छोटी सी मुलाकात इमरान से भी हुई जब वो कमरे में दाखिल हुए. उनकी त्वचा के ही अनुरूप अपने व्यायाम के कपड़े में. इतने सालों में मैं हालांकि उनसे कितनी ही बार मिल चुकी हूँ, उनसे हलकी-फुल्की बात करने की आदी रही हूँ, चाहे वो छोटी ही क्यों न हो. उनके बचपन/किशोरावस्था या उनके जवानी के दिनों के हीरो को लेकर.
रेहाम से मिलना आनंददायक था. और पहली ही चीज जो कोई बतला सकता है कि रेहाम जैसा टीवी पर दिखती हैं, उससे कहीं ज्यादा सुन्दर हैं. मेरे जैसी पंजाबी गप्पी लड़की के लिए पख्तून की गप्पी महिला के साथ चार घंटे बिताना हो हल्ला मचने के समान था. उसके दो सबसे बड़े लड़के, साहिर 21, और रिदा 17 भी बातचीत करने में मजेदार थे. कोई महसूस कर सकता था कि वह अपने सगे भतीजे-भतीजियों से बाते कर रहा हो. उसके बच्चों को देखना ही उसके बेमिसाल माँ होने का प्रमाण है. इस बात के बावजूद कि दस वर्षों तक उसने इन बच्चों की अकेले परवरिश की.रेहाम ने सबकुछ देख रखा है: एक नौकरी से दूसरी नौकरी होते हुए कैसे वो UK में अपनी आजीविका चलाती रही. रिदा की बर्थडे पार्टी के दौरान उसके मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया. वह बेटे साहिर के ग्रामर स्कूल के पास रहती, भले खुद की नौकरी पर जाने के लिए रोज 4 घंटे का सफर करना पड़ता.
अब रेहाम की सबसे बड़ी लालसा गलियों के उन बच्चों के लिए काम करने की है जिससे उनकी हालत लोगों के नजर के सामने आए और बदल सके. और उसके विश्वास में दृढ़ता साफ झलकती है. जिन बच्चों के लिए वो काम करना चाहती है दूसरे लोग उसे नजरअंदाज कर देते हैं. पख्तून के इतिहास और संस्कृति पर दो फ़िल्में बनाने के बाद, रेहाम का आभूषण बिजनेस भी कोशिश कर रहा है कि इसमें उसके क्षेत्रों के लोगों को काम मिले.
इमरान खान और उनकी पत्नी से दरवाजे पर बातचीत करते हुए मैं वहां से निकल रही थी, लेकिन थके और दुबले होने के बावजूद इमरान को खुश और तनावमुक्त देखना अच्छा लगा. ये बाते चलती ही जाएंगी लेकिन ये अलिफ लैला की कहानी नहीं है. यह कहना ही काफी है कि रेहाम वैसी महिला नहीं है जैसी कि सोशल मीडिया में लोग बिना थके उसे प्रचारित करने की कोशिश कर रहे हैं. वो भी बिना उसे जाने. मैं कभी तो अपनी इन्द्रियों पर भरोसा कर सकती हूँ. कोई भी जिसके पास वो 500 मेगावाट वाली मुस्कान हो और अक्सर ही बिना बनावटी हंसी हंसती हो, वो कुछ भी हो सकती है लेकिन वो 'रहस्यमयी' नहीं हो सकती.
दूसरी बात: रिदा ज्यादातर बातचीत में अपनी माँ की तरफ मुखातिब नहीं था. और बीच बीच में ज्यादा से ज्यादा अपनी माँ की बातों में वो सिर ही हिलाता रहा, जिससे मैं यही समझ सकी कि जो रेहम का उपहास उड़ाते हैं, उसके बारे में बातें बनाते हैं, उन्हें कुछ भी नहीं पता कि रेहाम खान-खान क्या है.
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