महिलाओं की बात हो तो इन अधिकारों की भी बात होनी चाहिए
हम जब महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात करते हैं, तो मां बनने और बने रहने के अधिकार, सुरक्षित प्रसव का अधिकार और जीवित रहने के अधिकारों पर भी बात होना जरूरी है.
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महिला दिवस पर महिलाओं की उपलब्धियों, सशक्तिकरण पर बातें की जाएंगी, पर महिलाओं से जुड़े हुए कुछ मामले ऐसे हैं जिनका जिक्र भी इस मौके पर होना चाहिए. महिलाओं के जीवन से जुड़े ये पहलू भी सामने आने चाहिए. कुछ बातें जो खुशी भी देंगी तो कुछ बातें, दुख भी.
मां बनने का अनुभव बहुत सुखद होता है, लेकिन जागरुकता की कमी के चलते बच्चे को जन्म देना भी एक बुरा ख्वाब बन जाता है और महिला की जान चली जाती है. कुछ ऐसा ही हुआ है गाजा की रहने वाली एक फिलिस्तीनी महिला के साथ जिसने 69 बच्चों को जन्म दिया था, 40 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई. ये महिला दुनिया की सबसे ज्यादा प्रजनन क्षमता वाली महिला थी.
इससे पहले सबसे ज्यादा बच्चे पैदा करने का रिकॉर्ड 18वीं शताब्दी की एक रशियन महिला के नाम है, जिसने भी 69 बच्चों को जन्म दिया था. 16 बार जुड़वां, 7 बार तीन बच्चे, और 4 बार एक साथ 4 बच्चों को उसने जन्म दिया था.
बुरी खबर ये भी है कि भारत में 7 लाख से ज्यादा नवजात बच्चे हर साल जन्म के एक महीने के अंदर ही मर जाते हैं. इनमें से 3 लाख एक दिन भी जिंदा नहीं रह पाते और करीब सवा लाख माताओं की हर साल प्रसव के दौरान मौत हो जाती है. कारण है कुपोषण. गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण न मिलने के कारण मां और बच्चो दोनों कमजोर होते हैं.
वहीं अच्छी खबर ये भी है कि नवजात बच्चों की जान बचाने में केरल भारत का सबसे सुरक्षित स्थान बन गया है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार केरल राज्य में शिशु मृत्यु दर कम होकर अमेरिका की शिशु मृत्यु दर तक पहुंच गई है. 2009 से कोरल में शिशु मृत्यु दर 12 थी जो अब 6 तक आ गई है. और अगर ऐसा है तो हर साल 7 लाख नवजात बच्चों को बचाया जा सकता है.
हम जब महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात करते हैं, तो मां बनने और बने रहने के अधिकार, सुरक्षित प्रसव का अधिकार और जीवित रहने के अधिकारों पर भी बात होना जरूरी है. महिलाओं में उचित मार्गदर्शन और सही देखभाल की कमी ही गर्भवती महिलाओं और उनके होने वाले बच्चों की जान के लिए खतरा बनती है. जो केरल ने कर दिखाया वो अगर बाकी के राज्य भी करें तो मां और बच्चों की जानें बच सकती हैं.
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