रांची में मारा गया मुदस्सिर या सवाल उठाने वाला साद अंसारी: मुस्लिमों के लिए 'आदर्श युवा' कौन है?
रांची हिंसा (Ranchi Violence) में पत्थरबाजों की भीड़ के साथ इस्लाम जिंदाबाद का नारा लगाने वाला मुदस्सिर (Mudassir) या तर्कसंगत बात करने का मुस्लिम छात्र साद अशफाक अंसारी (Saad Ashfaq Ansari). मुस्लिम समाज (Muslim) इन दोनों में से किसे हीरो मानेगा, ये उसे ही तय करना है.
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पैगंबर टिप्पणी विवाद में रांची हिंसा के दौरान एक 16 साल का लड़का मुदस्सिर (Mudassir) पुलिस की गोली लगने से मौत का शिकार हो जाता है. वहीं, महाराष्ट्र के भिवंडी में साद अशफाक अंसारी (Saad Ashfaq Ansari) की नूपुर शर्मा की कथित तरफदारी करने के लिए पिटाई होती है. और, उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है. ये दोनों ही मामले अपने आप में एक कहानी कहते हैं. लेकिन, उस कहानी से ज्यादा जरूरी ये है कि आखिर मुस्लिम समाज के लिए 'हीरो' कौन है? रांची हिंसा में मारा गया मुदस्सिर या सवाल उठाने वाला साद अंसारी...
मुदस्सिर पत्थरबाजों की भीड़ में सबसे आगे था. और, साद अंसारी के घर ही मुस्लिम कट्टरपंथियों की भीड़ पहुंच गई.
पहले बात करते हैं रांची हिंसा में पत्थरबाजों की भीड़ में शामिल रहे एक मुस्लिम युवा मुदस्सिर की. इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगाता हुआ 16 साल का मुदस्सिर पत्थरबाजों की भीड़ में सबसे आगे नजर आ रही है. जबकि, पुलिस की ओर से उपद्रवियों को तितर-बितर करने के लिए फायरिंग की जा रही थी. लेकिन, मुदस्सिर अपने ईमान का पक्का था. नबी की शान में गुस्ताखी करने वाली नूपुर शर्मा को सजा दिलाने का उसका इरादा गोलियों की आवाज से भी कमजोर नहीं हुआ था. और, आखिरकार पुलिस की गोली के चपेट में आने के बाद मुदस्सिर की मौत हो जाती है.
#Shaheed #Mudasir's Mother ?❤️ #Ranchi"My small child died for his #Islam, this mother is proud. For Prophet ﷺ he has given his life, he attained martyrdom, I don't have any sorrow." pic.twitter.com/nvFLARIKhF
— Abdul Hafeez Blr (@AbdulHafeezBlr) June 12, 2022
अब बात करते हैं साद अशफाक अंसारी की. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले मुस्लिम छात्र साद अशफाक अंसारी ने पैगंबर टिप्पणी विवाद में एक सोशल मीडिया के जरिये हिंसक प्रदर्शनों और कट्टरपंथियों की निंदा की थी. और, ये बात मुस्लिम कट्टरपंथियों को नागवार गुजरी. और, इन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने 19 वर्षीय छात्र को उसके घर से बाहर घसीटा. भद्दी गालियां दीं. इतना ही नहीं, साद अशफाक अंसारी पर थप्पड़ बरसाए गए. और, फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उसका अपराध केवल इतना था कि उसने एक इंटरनेट पोस्ट के जरिये इस्लामिक कट्टरपंथियों पर ही सवाल खड़ा कर दिया था.
This man put out a message in support of Nupur. A certain “peaceful” community, came into his house, threatened him & forced him to read the Muslim profession of faith & slapped him for good measure. Thank you Kalki avatar sri sri sri @narendramodi! I feel so safe with you as PM pic.twitter.com/lYXDpqa6XC
— Abhijit Iyer-Mitra (@Iyervval) June 12, 2022
सोशल मीडिया से लेकर तमाम टीवी डिबेट को देखा जाए, तो साफ है कि बहुत से मुस्लिम युवाओं और बुद्धिजीवियों के लिए मुदस्सिर एक आदर्श के तौर पर उभरा है. तो, कई मुस्लिम युवाओं के बीच साद अशफाक अंसारी के समर्थन में भी आवाजें सामने आ रही हैं. खैर, मुस्लिम समाज को किसे अपना हीरो चुनेंगे? ये उनकी मर्जी पर निर्भर करता है.
दोनों ही मुस्लिम समाज से आते हैं, तो अंतर क्या था?
वैसे, मुदस्सिर और साद अशफाक अंसारी दोनों ही मुस्लिम समुदाय से आते हैं. पैगंबर टिप्पणी विवाद में मुदस्सिर को नूपुर शर्मा के खिलाफ पत्थरबाजों का साथ देने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. तो, साद अशफाक अंसारी को नूपुर शर्मा के बयान को तार्किक तौर पर देखने की वजह से जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा. वैसे, मुदस्सिर की मां कई वीडियो में वह कहती नजर आ रही हैं कि उनका बेटा इस्लाम और अपने नबी के नाम पर शहीद हुआ है. वहीं, साद अंसारी के परिजन अभी तक इस सदमे से ही नहीं उबर पाए हैं कि उनका इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला बच्चा सलाखों के पीछे पहुंच गया है.
वैसे, ये बात अभी तक सामने नहीं आई है कि रांची हिंसा में मारा गया मुदस्सिर कितना पढ़ा-लिखा था? लेकिन, जिस तरह से मुदस्सिर की मां ने आजतक के साथ अपनी बातचीत में इस्लाम, काफिर जैसे शब्दों का इस्तेमाल बहुतायत में किया था. तो, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि मुदस्सिर की पढ़ाई कुछ ही दर्जों (संभव है मदरसे में पढ़ा हो) तक हो पाई होगी. लेकिन, मुस्लिमों के पिछड़े वर्ग से आने के बावजूद साद अशफाक अंसारी मुख्यधारा में आने की कोशिश कर रहा था. शिक्षा, करियर, नौकरी को अपनी वरीयता मानने वाला ये मुस्लिम छात्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था.
तर्कसंगत बात क्या कबूल नहीं है?
इस्लाम को लेकर कई मौलानाओं और मौलवियों द्वारा कहा जाता रहा है कि मजहबी मामलों में दुनियावी दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं की जा सकती है. इस हिसाब से देखा जाए, तो मुदस्सिर बिल्कुल सही रास्ते पर था. मुदस्सिर की मां भी जेएनयू में लगने वाले देशविरोधी नारों की तरह ही कहती नजर आती हैं कि एक मुदस्सिर के मरने पर सैकड़ों मुदस्सिर खड़े हो जाएंगे. वैसे, नबी की शान में गुस्ताखी करने वालों का 'सिर तन से जुदा' करने की मांग देश के कई हिस्सों में खुलेआम की जा रही है. हालांकि, इन लोगों के खिलाफ संविधान और कानून के तहत कड़ी कार्रवाई की जा रही है. लेकिन, अहम सवाल ये है कि क्या तर्कसंगत बात को पचा पाना इस्लामिक कट्टरपंथियों के बस की बात नहीं है.
जी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, नूपुर शर्मा के समर्थन में साद अशफाक अंसारी लिखा था कि '50 साल की उम्र वाले एक आदमी का 6-9 साल वाली बच्ची से शादी करना खुले तौर पर बाल शोषण है. मुझे नहीं पता कि आप लोग इसका समर्थन कैसे और क्यों करते हैं. जरा सोचिए, क्या आप अपनी 6 साल की बेटी की शादी किसी 50 साल के आदमी से करने को तैयार होंगे. इसके बारे में जरा सोचो. अब बड़े हो जाओ यारों. दुनिया में आतंकवाद फैलाने वाले धर्मों को त्यागो और इंसान बनो. ऐसा करना ज्यादा मुश्किल नहीं है, बस इसके लिए हिम्मत चाहिए. मुझे पता है कि इस पोस्ट के बाद मुझे कितनी नफरत मिलेगी और काफी लोग मुझे गलत समझेंगे. फिर भी मैं इसके लिए तैयार हूं क्योंकि आप लोग इस मामले में बच्चे हैं और कुछ भी समझने को तैयार नहीं हैं.' क्या इस बात पर भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में बहस नहीं होनी चाहिए कि साद अशफाक अंसारी ने आखिर गलत क्या कहा?
साद को पीटने और मुदस्सिर की मौत की वजह बिल्कुल अलग है
साद अशफाक अंसारी की सोशल मीडिया पोस्ट पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने कांग्रेस के एक मुस्लिम कॉर्पोरेटर के नेतृत्व में उसके घर को घेर लिया. साद अशफाक अंसारी के साथ मारपीट करते हुए उससे कलमा पढ़वाया गया. साद के माफी मांगने के बावजूद मुस्लिम कट्टरपंथियों की भीड़ शांत नही हुई. साद के खिलाफ पुलिस ने धार्मिक भावनाएं भड़काने का केस दर्ज कर जेल भेज दिया. जबकि, साद अंसारी की सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने किसी धर्म का नाम तक नहीं लिया था. इसके बावजूद उनके साथ मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने बदसलूकी की. वैसे, साद अशफाक अंसारी के मामले में स्वघोषित लिबरल और बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को सांप सूंघ गया है. धर्म को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इन लिबरलों के बीच एक गहन खामोशी छा गई है.
रांची हिंसा में मारे गए मुदस्सिर की तस्वीर को शेयर करते हुए प्रोपेगेंडा पत्रकार राणा अयूब लिखती हैं कि 'यह एक बड़ी चेतावनी है. इस तस्वीर से मेरी जान निकल रही है. इसे पोस्ट करना परेशान कर रहा है. लेकिन, यह एक तस्वीर इस बात का प्रतीक है कि राज्य द्वारा भारतीय मुस्लिमों पर कितनी क्रूरता थोपी जा रही है. 15 साल के मुदस्सिर ने हेट स्पीच के खिलाफ कदम उठाया. और, पुलिस ने उसकी हत्या कर दी.' वैसे, राणा अयूब मुदस्सिर की मौत पर सब कुछ बता देती है. बस वह ये बताना भूल जाती हैं कि हेट स्पीच के खिलाफ कदम उठाने वाला मुदस्सिर आखिर पत्थरबाजों की भीड़ के बीच कैसे पहुंच गया? वह ये बताना भूल जाती हैं कि क्या मुदस्सिर को केवल इस वजह से बच्चा माना जा सकता है कि वह पत्थरबाजों और हिंसा करने वाले उपद्रवियों के साथ मिलकर हेट स्पीच के खिलाफ आवाज उठा रहा था.
मेरी राय
रांची हिंसा में मारे गए मुदस्सिर को उसकी मजहबी कट्टरता के लिए हीरो बनाया जा रहा है. लेकिन, साद अशफाक अंसारी को मुस्लिम कट्टरपंथी बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि, वह तर्कसंगत और पढ़े-लिखे इंसान की तरह बात कर रहा है. जबकि, पैगंबर टिप्पणी विवाद में किसी तरह के तर्क की कोई जगह ही नहीं है. चाहे ये बात हदीस में ही क्यों न लिखी हो? खैर, मुस्लिम समाज को अपने हीरो सावधानी से चुनने होंगे. लेकिन, उसे मुदस्सिर को चुनना है या साद अशफाक अंसारी को ये बात मुस्लिमों को ही तय करनी होगी.
आपकी राय