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Updated: 16 अक्टूबर, 2015 07:16 PM
कनिका मिश्रा
कनिका मिश्रा
  @cartkanika
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तो सुप्रीम कोर्ट ने डांस बार पर लगा बैन हटा दिया है और अब उनके खुलने का रास्ता एकदम साफ़ है. मुझे याद है स्वर्गीय आर. आर. पाटिल जो उस समय महाराष्ट्र के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री एवं गृह-मंत्री थे, उन्होंने डांस बार को बंद करने में खासा उत्साह दिखाया था. महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार का इरादा भी इस बैन को कायम रखने का है और ये बात मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने साफ़ साफ़ कह भी दी है. एक बार फिर से नैतिकता और संस्कृति की रक्षा की दुहाई दी जा रही है और समाज की कड़वी भयावह सच्चाई से मुंह छिपाया जा रहा है.  width=                  
कितना अच्छा होता कि ये दुनिया एक आदर्श दुनिया होती, करन जोहर की बॉलीवुड मूवी की तरह, भर भर के ख़ुशी और हलके फुल्के ग़म, जहां हर लड़की, हर औरत महफूज़ होती. लेकिन अफ़सोस ये है कि दुनिया करन जोहर की मूवी की तरह नहीं, बल्कि अनुराग कश्यप की मूवीज की तरह डरावनी और काली है. जो लडकियां डांस बार के अन्दर बॉलीवुड आइटम सोंग पर थिरकती हैं, वो रास्ता उन्होने अपनी मर्ज़ी से नहीं चुना होता है, बल्कि समाज के उस अँधेरे कौने में वो हमारे समाज द्वारा ही धकेली गयी होती हैं. आप ने अगर टीवी पर इन लड़कियों के इंटरव्यू देखे हैं या अखबार में पढ़े हैं तो आपको मालूम होगा कि कोई लड़की अपनी बीमार माँ और बहनों का खर्च उठाने के लिए ये काम कर रही है तो कोई अपने बच्चों के दूध रोटी के इंतज़ाम के लिए. सच्चाई तो ये है कि कई लड़किया जो केवल डांस कर के अपना जीवन निर्वाह कर लेती थी, इन डांस बार के बंद होने की वजह से वेश्यावृत्ति में धकेल दी गई हैं. ये कोई आदर्श समाज नहीं है, लेकिन जो है वो यही है.
 
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सच तो ये है कि सेक्स ट्रेड आदि काल से चला आ रहा है. आम्रपाली की कथा हमने पढ़ी है और वैजयंती माला की मूवी भी देखी है. अपनी कुंठाओं को मिटाने के लिए पुरुष समाज हमेशा से कुछ औरतों को एक अँधेरे हाशिये में धकेलता रहा है. समाज से बहिष्कृत ये औरतें जिन्हें हम वैश्या या रंडी कह कर गाली देते हैं, हमारे समाज के सम्पन्नतावादी पुरुषों की ही देन हैं और वो पुरुष ही इसके जिम्मेदार हैं.

दूसरी बात ये भी है कि अगर कोई अपनी स्वेच्छा से अपने ढंग से अपनी रोटी कमाना चाहता है तो उसे रोकने वाले हम कौन होते हैं?!

लेकिन ये एक अलग बहस है और ये कहानी केवल अपने देश की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की है. विकिसित दुनिया में सेक्स ट्रेड से जुडी हुई औरतों की हालत इतनी खराब नहीं है, जितनी कि अपने देश में या अपने जैसे और देशों में.

मैं तो यहाँ तक कहूँगी कि जब अपने समाज की भावनाएं इतनी कुंठित हैं, और यहाँ के कामांध पुरुष  इतने ज़्यादा 'सेक्सुअली सप्रेस्सेड' हैं कि वो एक तीन साल की बच्ची से ले कर पचास साल की औरत तक को रेप का शिकार बना डालने में हिचकते नहीं हैं, तो मेरी समझ से इस तरह के डांस बार उन कामांधों की दमित कुंठा के लिए एक हॉस्पिटल का ही काम करते होंगे और समाज के लिए ऐसे हॉस्पिटल बेहद ज़रूरी हैं.

विदेशों में भी तो टॉपलेस बार होते हैं और इस तरह के सिनेमा हाल भी जो पोर्न सिनेमा दिखाते हैं. इस तरह की जगहें कामांध पुरुषों के लिए एक तृप्ति का साधन बन जाती होंगी और फिर वो अँधेरी रात में किसी 'निर्भया' की तलाश नहीं करते होंगे और उस मासूम को अपने जीवन भर की दमित कुंठाओं और अतृप्त इच्छाओं का शिकार नहीं बनाते होंगे. शायद, इसलिए उन्नत देशों में महिलाओं के प्रति अपराध इस स्तर पर नहीं, जैसे अपने यहाँ है.

अभी तीन दिन पहले ही एक युवक ने चार साल की बच्ची के साथ इतनी भयावह तरह से बलात्कार किया कि उसकी हिंसक प्रवृत्ति को देख कर हैवान भी शरमा जाए. इस तरह की घटनाएँ अपने देश में बार बार क्यों होती है ? इनके पीछे इन्ही दमित कुंठाओं का मनोविज्ञान है.

विवेकानन्द जी के शिकागो प्रवास के बाद भारत आगमन पर एक सेक्स वर्कर अपनी माँ के साथ उन से मिलने आई. वहाँ के लोगों के काफी हंगामे के बावजूद भी विवेकानंद जी उन से मिले और कहा कि पहले मैं सेक्स वर्कर्स को हेय दृष्टि से देखता था लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ कि तुम जैसी देवियों की वजह से न जाने कितनी बहनों, पत्नियों और माओं की इज्ज़त बची हुयी है और समाज को स्वच्छ रखने में तुम्हारा उतना ही योगदान है जितना कि किसी और महान व्यक्ति का.

हालाँकि किसी एक वर्ग को बचाने के लिए दूसरों को सूली पे चढाने का तर्क मेरे गले नहीं उतरता लेकिन कड़वी सच्चाई तो ये ही है.

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लेखक

कनिका मिश्रा कनिका मिश्रा @cartkanika

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