भारत को नहीं चाहिए ऐसे बेतुके नियम
मुंबई के सिनेमा घर में राष्ट्रगान के लिए न खड़े होने पर एक परिवार को सिनेमा घर से बाहर कर दिया गया. पर सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को प्रसारित करने का ये नियम क्या बेतुका नहीं लगता?
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हम भारतीय होने पर गर्व करते हैं और भारत का सम्मान करते हैं, इस बात का सुबूत देने के लिए हमें क्या करना चाहिए? बहुत से तरीके हो सकते हैं देशभक्ति दिखाने के, लेकिन अगर राष्ट्रगान पर खड़े नहीं हुए तो क्या इसका ये अर्थ है कि हम देश का अपमान कर रहे हैं?
मुंबई के कुर्ला स्थित सिनेमा घर में राष्ट्रगान के लिए न खड़े होने पर एक मुस्लिम परिवार को सिनेमा घर से बाहर कर दिया गया. हालांकि परिवार ने माफी मांगी कि उनसे गलती हुई, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये वाकई गलती थी?
कुछ दिनों पहले भी टीवी एक्टर कुशाल टंडन ने ट्वीट करके अभिनेत्री अमीषा पटेल पर भी राष्ट्रगान पर खड़े नहीं होने की बात कही थी. ये मामला सुर्खियों में तो आया लेकिन किसी और वजह से. अमीषा पटेल ने राष्ट्रगान पर खडे नहीं होने का कारण अपनी स्वास्थ संबंधी समस्या को बताया. जो उंगली उनकी देशभक्ति पर उठी थी वो अचानक किसी और दिशा में मुड़ गई. अपनी पीरियड्स की समस्या पर किए ट्वीट की वजह से मामले का रुख ही बदल गया था. पर इस बार राष्ट्रगान पर खड़े नहीं होने का मामला फिर सुर्खियों में आ गया, वजह ये भी हो सकती है कि वो एक मुस्लिम परिवार था. अचानक कुछ लोगों की देशभक्ति जगी और उन्होंने इस परिवार के साथ बदसलूकी की. परिवार में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. उन्हीं के सामने देशभक्ति के नाम पर अपशब्द कहे गए. आश्चर्य होता है ऐसे लोगों पर जब उनकी देशभक्ति इस तरह लोगों के सामने जागती है. और उस देशभक्ति के नशे में चूर ये लोग ये भी नहीं सोचते कि महिलाओं और बच्चों के सामने वो क्या कह रहे हैं और देशभक्ति की कौन सी परिभाषा समझाने की कोशिश कर रहे हैं. यहां ये बताना जरूरी है कि 2003 में महाराष्ट्र सरकार ने ये आदेश पारित किया था कि हर सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान का प्रसारण किया जाएगा. और इस दौरान सभी दर्शकों का खड़ा होना अनिवार्य होगा.
राष्ट्रगान पर क्या कहता है कानून?-
राष्ट्रगान बजने पर देश के नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वो सावधान होकर खड़े रहें. प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट, 1971 के सेक्शन तीन के अनुसार ‘जान-बूझ कर जो कोई भी किसी को भारत का राष्ट्रगान गाने से रोकने की कोशिश करेगा या इसे गा रहे किसी समूह को किसी भी तरह से बाधा पहुंचाएगा, उसे तीन साल तक कैद या जुर्माना भरना पड़ सकता है. इस एक्ट में राष्ट्रगान गाने या बजाने के दौरान बैठे रहने या खड़े होने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले पर कह चुका है कि ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है कि किसी को राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य किया जाए.
क्या बंद नहीं होना चाहिए ये नियम?
तनाव भरे जीवन से थोड़ी देर निजात पाने के लिए एक व्यक्ति तीन घंटे की फिल्म देखने के लिए जाता है. वो डेढ़ दो सौ रुपये का टिकट सिर्फ खुद को रिलैक्स करने के लिए खरीदता है. अब अंदर आकर पहले उसे अपनी देशभक्ति का परिचय देना होगा फिर वो फिल्म देखेगा. जरा सोचिए कोई 'हेट स्टोरी-2' जैसी फिल्म देखने जाये तो वो किन भवनाओं से जाएगा.. और शुरुआत में ही उसे देशभक्ति वाली भावनाएं जागृत करनी होंगी, तो कितना मुश्किल होता होगा ऐसे में भावनाओं से लड़ पाना. और यहां सवाल ये भी उठता है कि ऐसे मूड में जब व्यक्ति अनमने ढंग से राष्ट्रगान सुनता है, फिर आजू बाजू वालों को देखता है, अगर सब खड़े हैं तो खड़ा होता है, नहीं तो खड़े होने की जहमत नहीं उठाता, ऐसे में राष्ट्रगान को मजबूरी समझना क्या राष्ट्रगान का अपमान नहीं है?
सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को प्रसारित करने का ये नियम निहायती बेमानी लगता है. जिस तरह से हम राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करते हैं, जिस तरह ध्वज को कहीं पर भी फहराया नहीं जा सकता उसी तरह राष्ट्रगान को भी किसी भी जगह गाना या बजाना नहीं चाहिए. क्योंकि अगर उस जगह मौजूद व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रगान को सम्मान नहीं दे पाता तो उसे उसका अपमान करने का भी कोई मौका नहीं देना चाहिए.
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