नागालैंड: गुस्सा या साजिश?
क्या दीमापुर में जो कुछ हुआ उसके पीछे सिर्फ भीड़ का गुस्सा था? या उसके पीछे कोई बड़ी और गहरी साजिश है, जिस पर अब भी पर्दा पड़ा हुआ है.
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क्या दीमापुर में जो कुछ हुआ उसके पीछे सिर्फ भीड़ का गुस्सा था? या उसके पीछे कोई बड़ी और गहरी साजिश है, जिस पर अब भी पर्दा पड़ा हुआ है. असल बात तो जांच के बाद ही सामने आ सकेगी, लेकिन फिलहाल जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है वो काफी धुंधली है. जेल की चाक चौबंद सुरक्षा के भीतर से एक कैदी को बाहर खींच लाया जाता है. उसे घसीट कर सात किलोमीटर दूर ले जाया जाता है और फिर चौराहे पर निर्वस्त्र करके पीट-पीट कर मार दिया जाता है. क्या ये सब इतनी ही आसानी से हो भी सकता है? दीमापुर के एक पुलिस अफसर के हवाले से आई रिपोर्ट के मुताबिक भीड़ पर पुलिस फोर्स का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया जा सका क्योंकि उसमें स्कूल ड्रेस पहने लड़कियां आगे चल रही थीं.
आरोप पर सवाल
रिपोर्ट दर्ज कराई गई है कि खान ने पीड़ित युवती को दो बार नशीला पदार्थ खिलाकर उसके साथ दुष्कर्म किया. फिर उसे मुंह बंद रखने के लिेए पांच हजार रुपये दिये. हालांकि, कुछ मीडिया रिपोर्टों में एक टीवी चैनल पर उस होटल के सीसीटीवी फुटेज को दिखाये जाने की बात सामने आई है. इसमें पहले आरोपी और पीड़ित आराम से होटल में आ और जा रहे हैं. यदि ये सच है तो इस घटना का एक दूसरा पहलू भी है जिसके सामने आने से पहले ही 'न्याय' कर दिया गया.
इस पूरे घटनाक्रम पर गौर करें तो कई सवाल खड़े होते हैं.
1. सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि भीड़ आरोपी तक पहुंची कैसे? अगर उस पुलिस अफसर की बात पर यकीन कर भी लें तो क्या स्कूली छात्राओं के लिए जेल का दरवाजा तोड़ कर घुसना इतना आसान काम है? क्या जेल की सुरक्षा इतनी कमजोर है? दीमापुर सेंट्रल जेल के सुरक्षा इंतजाम अर्ध सैनिक बलों के हवाले है. क्या स्कूली छात्र इतने सक्षम थे कि जेल का मजबूत दरवाजा तोड़ कर घुस गए? तो इस सुरक्षा घेरे को महज कुछ स्कूली छात्राओं से तोड़ डाला या उनके साथ भीड़ में असामाजिक तत्व भी शामिल थे?
2. बताते हैं कि भीड़ के पास आरोपी की तस्वीर थी. ये तस्वीर कुछ के हाथों में थी तो कुछ लोगों के मोबाइल पर. मान लेते हैं लोगों के पास तस्वीर थी जिसकी मदद से उन्होंने आरोपी की पहचान की होगी. लेकिन उन्हें ये किसने बताया कि आरोपी सैयद शरीफ खान है किस सेल में? अगर भीड़ में आगे आगे स्कूली छात्राएं चल रही थीं तो उन्हें कैसे पता कि शरीफ को जिस सेल में रखा गया है उस तक पहुंचने का रास्ता कौन सा है?
3. अगर सुरक्षा इतनी मजबूत नहीं थी कि भीड़ को रोका जा सके तो अतिरिक्त इंतजाम क्यों नहीं किए गए? छोटी छोटी बातों पर पुलिस सरेआम लोगों को पीटते देखी जा सकती है. अक्सर ऐसी किसी न किसी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है? फिर पुलिस प्रशासन इस मामले में इतना सुस्त कैसे रह गया?
कौन था आरोपी?
असम के करीमगंज के रहने वाले सेकंड-हैंड कार और स्क्रैप डीलर सैयद शरीफ खान को पहले बांग्लादेशी बताया गया था. शरीफ के भाई जमालुद्दीन खान का कहना है कि उनका पूरा परिवार सेना में है. जमालुद्दीन के अनुसार वह और उनका एक और भाई, कमाल खान इस वक्त भारतीय सेना की असम रेजिमेंट में हैं. उनके एक और भाई, इमामुद्दीन खान भी सेना में था जो 1999 की करगिल लड़ाई में शहीद हो गया. पिता सैयद हुसैन खान भारतीय वायु सेना से रिटायर हुए थे.
...और राजनीति
असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को भी शक है कि ये बलात्कार का मामला नहीं है. मीडिया में आए उनके बयान तो यही इशारा कर रहे हैं. वैसे उन्हें खास फिक्र आरोपी सैयद शरीफ खान के असम के निवासी होने के कारण है. इस मामले में शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे का भी बयान आया है जिसमें उन्होंने दीमापुर की घटना को नियति का न्याय करार दिया है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में ठाकरे कहते हैं कि जो दिल्ली में नहीं हो सका वो नागालैंड में हो गया और लोगों को नागालैंड के लोगों से सीख लेनी चाहिए.
आखिरी सवाल...
न्याय का नैसर्गिक सिद्धांत है कि गुनहगार भले ही छूट जाए पर किसी बेगुनाह को सजा न दी जाए. पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को टीवी स्क्रीन पर गोलियां चलाते पूरे देश ने देखा था. फिर भी उसे न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने का मौका दिया गया. उसे पूरी कानूनी मदद मिले इसके लिए बाकायदा वकील का इंतजाम हुआ, फिर जाकर फैसला हुआ. लेकिन दीमापुर में न बहस, न जिरह सीधे इंसाफ? और ये कैसा इंसाफ जब ये साबित ही नहीं हुआ कि आरोपी ही गुनहगार था. वैसे दीमापुर की भीड़ में कौन लोग थे? क्या वे महज रेप के एक आरोपी को मारना चाहते थे या खासतौर पर उस शख्स सैयद शरीफ खान को, जिस पर रेप का आरोप था? इस सवाल का जवाब मिलना जरूरी है.
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