National Girl Child Day: अजमेर की बेटियां दिखा रही हैं बाल विवाह से मुक्ति की राह!
राजस्थान के अजमेर में 4 गांवों की बेटियां बाल विवाह के खिलाफ एक उम्मीद बनकर सामने आई है. महामारी के बीच जब जुलाई 2020 में 12वीं के परीक्षा परिणाम घोषित हुए तो पहली बार हुआ जब यहां की लड़कियों ने 90% से भी ज्यादा अंक हासिल किए.
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कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) के इस मुश्किल काल में भी देश के विभिन्न इलाकों से बाल विवाह (Child Marriage) की ख़बरें आती रहीं. अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव, वंचित तबके के परिवारों के लिए कम होते रोजगार के साधन और स्कूलों के लंबे समय तक बंद होना, जिसके चलते बच्चों की शिक्षा से बढ़ती दूरी ने बाल विवाह की स्थिति (जो पहले से ही गंभीर थी) उसे और भी चिंतनीय बना दिया. इससे पता चलता है कि बाल विवाह की जड़ें समाज में कितनी गहरी हैं. इससे निपटने का एक बेहतर रास्ता है शिक्षा. राजस्थान के अजमेर में 4 गांवों की बेटियां बाल विवाह के खिलाफ एक उम्मीद बनकर सामने आई हैं. महामारी के बीच जब जुलाई 2020 में 12वीं के परीक्षा परिणाम घोषित हुए तो राजस्थान के अजमेर ज़िले के चाचियावास, हासियावास, मीनो का नया गांव और सांकरीया के इतिहास में पहली बार हुआ जब यहां की लड़कियों ने 90% से भी ज्यादा अंक हासिल किए.
राजस्थान के अजमेर में जो बदलाव देखने को मिल रहा है वो सुकून देने वाला है
इन लड़कियों में कुछ की सगाई हो चुकी थी तो कुछ का गौना होना था. यह वह बच्चियां हैं जिन्होंने पढ़ाई-लिखाई तो दूर अपना भविष्य घूंघट, घाघरे और बाल विवाह से ऊपर नहीं सोचा था, आज वे अपने स्वर्णिम भविष्य के नए सपने बुन रही हैं. किसी को आईएएस अफसर बनना है तो किसी को रोनाल्डो जैसा महान फुटबॉलर.
अपनी मेहनत से इस कुरीति को हराने में कामयाब हुई हैं. सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाली सपना गुर्जर ने बताया कि उन्होंने और उनकी सहेलियों ने आज से 10 साल पहले स्कूली शिक्षा तक पूरी करने का सपना नहीं देखा था, पर आज वह अजमेर के विभिन्न महाविद्यालयों में दाखिल हो चुकी हैं.
यह बदलाव रातोंरात नहीं हुआ. इन बच्चियों को यहां तक पहुंचाने के लिए करीब 10 साल का संघर्ष किया. चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) और उसकी सहयोगी संस्था महिला जन अधिकार समिति ने और खासतौर पर इन बच्चियों की माताओं और दादियों ने जिन्होंने समाज की हर आलोचना का सामना किया, लेकिन अपनी बेटियों को चूल्हे-चौके तक ही सीमित न रखकर स्कूल से लेकर फुटबॉल के मैदान तक पहुंचाया.
इन बच्चियों ने गांव मे स्कूल से लेकर खेल के मैदान की उपलब्धता के लिए संघर्ष किया. अपनी हमउम्र लड़कियों के साथ बालिका समूह के जरिए जुड़ी और मिलकर प्रशासन के सामने भी अपनी बात रखने से नहीं डरीं. खुद का और अपनी सहेलियों का बाल विवाह रुकवाया, भूख हड़ताल तक को अंजाम दिया. कल तक जो गांव वाले इन पर तंज़ कसते थे आज उस पूरे गांव को इन बेटियों पर गर्व है. राजस्थान देश के उन 5 राज्यों मे से एक है जहां जनगणना 2011 के अनुसार सबसे अधिक विवाहित बच्चे दर्ज किए गए. ऐसे राज्य के छोटे-छोटे गांवो से आने वाली बेटियों की ये उपलब्धि बहुत मायने रखती है. यह इस बात का सबूत है कि सरकार और क्राइ जैसी सामाजिक संस्थान द्वारा मिलकर शिक्षा खासतौर पर बेटियों की शिक्षा पर दिया जा रहा ज़ोर हमे सही दिशा की ओर ले जा रहा है.
शिक्षा को हमेशा से बाल विवाह को समाप्त करने का एक सशक्त जरिया माना गया है. राजस्थान की बेटियां इसका एक सटीक उदाहरण हैं. इन बच्चियों ने शिक्षा को चुना और बाल विवाह से बचने के लिए इसे अपनी ढाल बनाया. विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इन बच्चियों ने अपने लिए एक बेहतर भविष्य चुना. पढ़ाई के साथ साथ खेल ने उन्हें समाज मे एक अलग पहचान दिलाई और उनमे आत्मविश्वास जगाया.
अक्टूबर 2020 में भारत में बाल विवाह की स्थिति और दशकीय रुझान पर जारी की गयी क्राइ की एक रिपोर्ट जिसमे विभिन्न सरकारी आंकड़ो का विश्लेषण किया गया है, के अनुसार भारत में वर्तमान में करीब पौने दो करोड़ विवाहित बच्चे और किशोर/किशोरियां हैं (10-19 वर्ष). जिसमे से अगर हम 10-19 साल के बीच की विवाहित लड़कियों का प्रतिशत देखे तो वह 75% है.
यानि बाल विवाह से देश मे बच्चियां अधिक प्रभावित होती हैं. हमारा यह दृढ़ता से मानना है कि बाल विवाह के प्रभाव अंतर-पीढ़ीगत हैं और यह समाज और राष्ट्र की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और गरीबी पर सीधे प्रभाव डालता है. ऐसे में यह बेहद ज़रूरी हो जाता है की हम सामाजिक जागरूकता के साथ-साथ बालिकाओं के अच्छे स्वास्थ्य और पोषण को सुनिश्चित करें, उनकी स्कूली शिक्षा पूरी करवाएं और उन्हें उच्च शिक्षा के अवसर दें ताकि वह आगे चलकर एक शिक्षित और स्वस्थ्य समाज की नीव बन सकें.
(iChowk के लिए यह लेख सोहा मोइत्रा ने लिखा है, जो संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) की क्षेत्रीय निदेशक हैं)
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