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Updated: 13 अक्टूबर, 2021 09:06 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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दीदी...पीछे से धीमी आवाज आई, मनीषा ने पीछे मुड़़कर देखा तो एक छोटी सी बच्ची उसके सामने खड़ी थी. उसकी बड़ी-बड़ी आंखें, लंबे बाल, उसने पुराना लेकिन साफ-सुथरा सूट पहन रखा था. वह अपनी उम्र के हिसाब ज्यादा ही लंबी थी. मनीषा ने गौर किया कि वह मुस्कुरा तो रही थी लेकिन उस मुस्कान में एक झिझक थी. आंखों में जैसे 100 तरह के सवाल... अरे यह तो 11 साल की तारा है.

मनीषा ने कहा, अरे तारा तुम कब आई और मम्मी कहां हैं? असल में तारा की मम्मी मनीषा के घर काम करती हैं. आम भाषा में कहें तो तारा की मम्मी मनीषा की कामवाली बाई हैं. हां मनीषा उनका सम्मान करती है और उनके साथ घर के सदस्य की तरह ही व्यवहार करती है. तारा कभी-कभी अपनी मां के साथ घर आ जाती है. 

तारा ने बिना जवाब दिए ही तपाक से पूछा दीदी, ये कन्या पूजा कैसे करते हैं? मेरी एक दोस्त पूछ रही थी. उसे ये पूजा करनी है. इतना सुनकर मनीषा को लगा इतनी कम उम्र में यह ऐसे सवाल क्यों पूछ रही है? इससे पहले तारा ने दूसरा सवाल किया किस दिन होती है यह पूजा जिसमें लड़कियों को अपने घर बुलाते हैं, उन्हें अच्छा खाना खिलाते हैं. दीदी मुझे बता देना कि इस बार के नवरात्र में यह दिन कब पड़ने वाला है.

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बिना रूके तारा ने सिंक में पड़े कप धोने के लिए उठा लिए और फिर पूछा और क्या-क्या होता है दीदी. मेरी दोस्त बता रही थी कि उसे पिछली साल ढेर सारा सामान मिला था. पूरी बात सुनकर मनीषा समझ गई थी कि तारा ऐसा क्यों पूछ रही थी.

मनीषा ने कहा पहले तुम बर्तन मत धुलो, ये दीदी कर लेंगी. इस बार नवरात्र में कन्या पूजन 13 अक्टूबर को है, इसी बुधवार को. उस दिन कन्याओं की पूजा की जाती है, उनके पैर धोए जाते हैं, आलता लगाया जाता है, उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है, तिलक लगाया जाता है, आरती की जाती है, पूरी-हलवा और चना खिलाया जाता है, उन्हें अपनी हैसियत के हिसाब से उपहार, पैसे या अनाज दिए जाते हैं. फिर पैर छूकर, सिर झुकाकर आशीर्वाद लिया जाता है. मनीषा की पूरी बात सुनकर तारा के चेहरे पर चमक आ गई. खुश होकर उसने आखिर पूछ ही लिया दीदी आप करोगे ये कन्या पूजन, मैं जरूर आउंगी. मुझे पिछली साल से इस दिन का इंतजार है.

उसने मासूमियत से कहा उस दिन मुझे काम भी नहीं करना पड़ेगा और सभी लोग मेरी पूजा करेंगे. ऐसे तो सब दिन लोग मेरे उपर चिल्लाते ही रहते हैं. मनीषा को उसकी भावना समझने में देर नहीं लगी. बेटियों की जिंदगी में कितने ही संघर्ष होते हैं और तारा तो एक कामवाली की बेटी है. इसलिए उसकी तकलीफ का अंदाजा लगाने में आखिर कितना वक्त लगता?

मनीषा ने उसे गले से लगा लिया और कहा तुम स्कूल जाती हो? मैं तारा से कहूंगी वो तुम्हें अपने साथ काम के लिए ना लेकर जाए. मैं यह कन्या पूजन तो नहीं करती लेकिन तेरे लिए हमेशा की तरह कपड़े और गिफ्ट जरूर लाउंगी. तुम बुधवार को कन्यापूजन के लिए अपनी सहेलियों के संग आ जाना. यहां रहने वाली मेरी सहेेलियों से मैं बात कर लूंगी. 

तभी तारा ने कहा लेकिन मुझे को कोई बुलाता भी नहीं...मनीषा ने कहा बुधवार को तुम अपनी सहेलियों के संग यहां आ जाना. यहां बहुत से लोग हैं जो कन्या पूजन करते हैं. बुधवार की सुबह तारा अपने सहेलियों के संग सीढ़ियों पर पहुंची तो मनीषा समझ गई कि कन्याओं की टोली आ चुकी है. उनकी खिलखिलाहट, उनकी बातें, चेहरे की चमक देखकर मनीषा को आज सुकून मिला. लड़कियों की टोली में तारा भी शामिल थी जिसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था…

थोड़ी देर में तारा तो मनीषी की आंखों के सामने से ओझल हो चुकी थी लेकिन उसके मन में कई सवाल उमड़ रहे थे. हमारे देश में बेटियों को देवी का रूप माना जाता है. उनकी पूजा की जाती है लेकिन क्या एक दिन सम्मान देने से, एक दिन पूजा करने से बाकी दिन किए गए अत्याचार कम हो जाते हैं. हम यह नहीं कहते कि सभी लोग पापी हैं लेकिन उन लोगों का क्या जो बेटी ने जन्म लिया है सुनकर उसे अस्पताल में छोड़ आते हैं, जो बेटियों के साथ गलत काम करते हैं, जो गरीब बेटियों को छोटी नजरों से देखते हैं…

तारा इसलिए खुश थी क्योंकि उसे पता था कि एक दिन के लिए ही सही उसे कामवाली की बेटी के नजरों से देखकर उसे छोटा महसूस नहीं करवाया जाएगा. उसे लोग सम्मान के साथ पुकारेंगे...उसके लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि बाकी कन्याओं की तरह उसे समान नजरों से देखा जाएगा ना कि एक कामवाली की नजर से...क्या इन लोगों की कोई इज्जत नहीं होती. इन्हें सम्मान पाने का हक नहीं? हमारी और आपकी तरह ये भी तो अपना पेट भरने के लिए नौकरी ही कर रहे हैं. हम ऑफिस जाते हैं और ये घर-घर जाकर अपना काम करते हैं...

इनके साथ सम्मान भरे लहजे में बात कर लेने से कोई छोटा तो नहीं हो जाता…? ऐसा ना होता को एक बेटी को एक साल तक एक उस दिन का इंतजार नहीं करना पड़ता जब उसका सम्मान किया जाता है. जब वह कामवाली बाई की बेटी से अचानक छोटी दुर्गा बन जाती है. एक बच्चे का मन कुछ भी सोच सकता है, लेकिन तारा ने सोचिए कितनी गहरी वाली बात कह दी...बेटियों का सम्मान एक दिन हर रोज होना चाहिए. आखिर, ये कैसा समाज है जहां मां दुर्गे की पूजा होती है लेकिन बेटियों का बहिष्कार किया जाता है...

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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