तो क्या अब नेपाली एविएशन को है रिफॉर्म की जरूरत?
नेपाल में मात्र एक त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट स्टैंडर्ड क्वालिटी का है. बीते कुछ वर्षों में वहां एविएशन क्षेत्र ने आधुनिक तकनीकों में जरूर थोड़ा बदलाव किया है. पर, उसका सही से क्रियांवयन नहीं किया गया. पोखरा विमान हादसा उसी का नतीजा है. इस घटना के बाद नेपाल विमानन नेटवर्क को सतर्क हो जाना चाहिए. घटना के संभावित पहलुओं को चिन्हित कर उन्हें दुरुस्त करना चाहिए.
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नेपाल में सरकारें तो जल्दी-जल्दी बनती-बिगड़ती रहती है, लेकिन जनमानस की जरूरतों को पूरा करने वाली व्यवस्थाएं वैसी की वैसी ही रहती, बल्कि बिगड़ और जाती हैं. सरकार वहां बदल चुकी है, नए भी निजाम आ गए हैं और विमान हादसे ने उनका स्वागत भी कर दिया है. हादसे ने बता दिया है किन-किन चुनौतियों से नए प्रधानमंत्री को लड़ना है. सरकार भी मानती है कि उनका एविएशन क्षेत्र बहुत कमजोर है. कब मजबूत होगा, ये भविष्य ही बताएगा, लेकिन हवाई यात्रियों के जेहन से किसी एक घटना का डर निकल भी नहीं पाता, दूसरी घटना हो जाती है. संसार भर में खतरों की समीक्षा पर आधारित सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो सुरक्षा पद्धतियों को लगातार रूप से उन्नत तथा पुनः परिभाषित करते रहते हैं, पर नतीजा वही ढाक के पात होता है? अल्जीरिया विमान हादसे के बाद सभी देशों की विमानन कंपनियों ने कुछ सकर्तता जरूर दिखाई थी. लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, सतर्कता भी फुस्स हो गई. सवाल बड़ा है जिसका उठना लाजमी है कि आखिर विमान हादसों की पुनरावृत्ति कब तक होती रहेंगी?
नेपाल में जैसा विमान हादसा हुआ है वो दिल को झकझोर देने वाला है
अब एक और रोंगटे खड़े कर देने वाला विमान दुर्घटना हो गई, लैंडिंग के मात्र कुछ ही मिनट पहले 72 सीटर विमान आसमान से पतंग की भांती जमीन पर आ गिरा. हादसा पड़ोसी पहाड़ देश नेपाल में हुआ है. नेपाल के पोखरा के जिस एयरपोर्ट पर हादसा हुआ है उसके आसपास बहुत ज्यादा हरियाली और पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए वहां दूसरे एयपोर्टस् के मुकाबले विजिबिलिटी कम होती है. इसलिए उस रनवे पर हादसे की संभावनाएं हमेशा से रही हैं.
इतना सब कुछ जानने के बाद भी एयरपोर्ट प्रशासन आंख मूंद कर बैठा रहता है, अगले हादसे का इंतजार करता रहता है और देखते-देखते हादसा हो भी जाता है. दस साल पहले पहले भी वहां एक हादसा हुआ था जिसमें भी विमान दो हिस्सों में टूट गया था. हादसे का तरीका मौजूदा हादसे जैसा ही था.ये तकनीकी समस्या है, या एविएशन की लापरवाही, फिलहाल ये जांच के बाद ही पता चलेगा. पर, इस भीषण विमान हादसे ने एक बार फिर हवाई यात्राओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया है.
विमान जिस तरह से क्षतिग्रस्त हुआ, उसे देखकर वहां के लोगों की चीखें निकल गई, चारों ओर भगदड़ मच गई. नियमित हवाई यात्रा करने वाले हादसा देखकर इस सोच में पड़ गए कि उन्हें यात्रा करनी चाहिए या नहीं? हादसा इतना जबरदस्त था कि प्लेन कई हिस्सों में टूट कर चकनाचूर हो गया. फिलहाल घटना के जो तत्कालीन कारण सामने आए हैं, उससे सीधे सवाल एयरपोर्ट अथॉरिटी, विमानन कंपनियों और उडयन विभाग पर खड़े होते हैं.
दुर्घनाग्रस्त हुआ यति एयरलाइंस पंद्रह वर्ष पुराना बताया गया है, कुछ खामियां पिछले वर्ष भी सामने आई थी जिन्हें ठीक करके फिर से उड़ाने शुरू कर दी.इस हादसे ने 1992 में नेपाल के काठमांडू में हुए विमान हादसे की यादें ताजा कर दीं, जिसमें 167 यात्रियों की जाने गईं थीं. पोखरा एयरपोर्ट बहुत छोटा है, प्रसिद्व धार्मिक स्थल होने के चलते यात्रियों की संख्या में लगातार इजाफा होने लगा था, जिसको देखते हुए नेपाल सरकार ने पुराने पोखरा एयरपोर्ट को नए एयरपोर्ट में तब्दील किया जा रहा था.
चीन से कर्ज लेकर नेपाल बड़ा एयरपोर्ट बना रहा था. कुछ महीनों से उड़ानों में दिक्कतें भी आ रही थीं. हादसों को देखकर हमारे एविएशन तंत्र ने भी सबक लिया है. सभी विमानों के रखरखाव और जांच पड़ताल के आदेश उडियन विभाग ने दिए हैं. ये सही बात है, छोटे रनवों पर खराब मौसम में प्लेनों की लैंडिंग कराना किसी बड़े खतरे से कम नहीं होता. सर्दी के दिनां में जब रनवे नमींदार होता है तो प्लेनों के फिसलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
दस वर्ष पहले मेंगलुरू के एयरपोर्ट पर भी कुछ ऐसा ही हादसा हुआ था. 22 मई 2010 को एयर इंडिया का विमान दुबई से आते वक्त रनवे को पार करते हुए पास की पहाड़ियों में जा गिरा था, जिसमें 158 लोगों की मौत हुई थी. नेपाल ने इस हादसे के बाद भी अगर कोई सतर्कता नहीं दिखाई, तो ऐसे दर्दनाक हादसों की पुनरावृत्ति होती रहेगी और हवाई यात्री असमय मौत के काल में समाते जाएंगे. एयरपोर्ट की सुरक्षा-समीक्षा समय-समय पर की जाती रहनी चाहिए.
कई ऐसे रनवे हैं जो बोइंग विमानों का भार झेलने के लायक नहीं हैं. बोइंग विमानों का वजन लगभग 70 से 100 टन के आसपास होता है. लैंडिंग के वक्त एकदम तेजी से इतना भार जमीन पर पड़ता है तो कम दूरी के रनवे मुकाबला नहीं कर पाते. सर्दी-बारिश में छोटे रनवों की हालत और भी ज्यादा खराब रहती है. खराब मौसम में जब ये विमान लैंड करते हैं तो रनवे पर उनके टायरों की रबड उतर जाती हैं जिससे ब्रेक लगाने के वक्त प्लेनों के फिसलने की संभावनाएं बढ़ जाती है.
उसी स्थित में अगर रनवे लंबे हों, तो पायलट नियंत्रण कर लेता है, लेकिन छोटे रनवों पर दुर्घनाएं हो जाती हैं. मौजूदा विमान हादसे की ज़िम्मेदारी सीधे तौर पर स्थानीय अथॉरिटी, प्रशासन और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ नेपाल की बनती है. जिम्मेदार टॉप अधिकारियों पर केस दर्ज होना चाहिए, हादसे में हताहत बेकसूर हवाई यात्रियों की हत्या का मुकदमा होना चाहिए.
मृतकों में मुआवजा राशि बांट कर घोर लापरवाही और मुंह खोले खड़ी कमियों पर पर्दा नहीं डालना चाहिए. कुछ भी हो, नेपाल विमान हादसे ने हवाई यात्रियों की सुरक्षाओं की विश्वसनीयता खतरे में जरूर डाल दिया है. देश हो या विदेश हर जगहों से समय-समय पर विमान दुर्घटनाओं की खबरें आती रहती हैं. हवाई हादसे अब रेल हादसों की तरह आम हो रहे हैं. इसलिए अब हवाई सफर राम भरोसे हो गए हैं.
नेपाल में नई-नई सरकार बनी है. विमान घटनाओं के बाद जब ज़िम्मेदारी लेने की बात आएगी तो सरकार ये कहकर अपना पल्लाझाड़ लेगी, कहेगी इसमें निजी विमान कंपनियों की गलती है. सीधे तौर पर सरकार घटना की ज़िम्मेदारी अपने सिर पर नहीं लेगी. एविएशन क्षेत्र में नेपाल आज भी दूसरे देशों से काफी पिछड़ा हुआ है. नए विमानन नियम, नई सहूलियतें, आधुनिक तामझाम, यात्रा में सुगमता की गारंटी और भी कई तमाम हवाई कागजी बातें उस समय धरी रह जाती हैं, जब बड़े प्लेन हादसों की ख़बरें आ जाती हैं.
पिछले वर्ष इन्हीं दिनों में दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे पर भी आमने-सामने एक साथ दो विमानों के आने से बड़ा हादसा होते-होते बचा था. हरियाणा के चरखी विमान हादसे को शायद ही कोई भूल पाए, याद करके आज भी रोंगटे खडे हो जाते हैं. उस हादसे को भारत में जबतक का सबसे बड़े हवाई हादसे में गिना जाता है. घटना 12 नवंबर, 1996 में घटी थी, जब दो विमानों में मिड एयर कॉलिजन हुआ, एक विमान सऊदी अरब का था, तो दूसरा कजाखिस्तान का.
उस हादसे में दोनों विमानों में सवार सभी 349 यात्रियों में से कोई जिंदा नहीं बचा. नेपाल में मात्र एक त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट स्टैंडर्ड क्वालिटी का है. बीते कुछ वर्षों में वहां एविएशन क्षेत्र ने आधुनिक तकनीकों में जरूर थोड़ा बदलाव किया है. पर, उसका सही से क्रियांवयन नहीं किया गया. पोखरा विमान हादसा उसी का नतीजा है. इस घटना के बाद नेपाल विमानन नेटवर्क को सतर्क हो जाना चाहिए. घटना के संभावित पहलुओं को चिन्हित कर उन्हें दुरुस्त करना चाहिए.
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