नेपाल भूकंपः भारतीय सेना आपको उम्मीद खोने नहीं देगी
जब माउंट एवरेस्ट पर पहला हिमस्खलन हुआ, उस वक्त भारतीय सेना का 35 सदस्यीय एवरेस्ट अभियान दल खुंबू आइस फॉल में था.
-
Total Shares
हवा में डर था. उनके पैरों तले की जमीन हिल रही थी और आसमान सचमुच मौत की बारिश कर रहा था. नेपाल में पहले भूकंप के झटके के साथ ही जब माउंट एवरेस्ट पर पहला हिमस्खलन हुआ, उस वक्त भारतीय सेना का 35 सदस्यीय एवरेस्ट अभियान दल खुंबू आइस फॉल में था. 17,700 फीट की ऊंचाई पर बना बेस कैम्प सुरक्षित था लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक 19,697 फीट पर बना कैम्प बड़े पैमाने पर तबाह हो गया था.
भारी मात्रा में बर्फ तेजी के साथ नीचे की तरफ आ रही थी और रास्ते में आने वाली हर चीज को अपने साथ नीचे ला रही थी. भरी दोपहर में दृश्यता शून्य हो गई थी. भारतीय सेना की एवरेस्ट टीम लगभग 5,500 मीटर की दूरी तय करके जल्द से जल्द वापस बैस कैम्प पर आ गई थी. लेकिन वहां कोई आराम नहीं था. दो बार सफलतापूर्वक एवरेस्ट पर विजय हासिल करने वाले टीम लीडर मेजर रणवीर सिंह जामवाल ने तुरंत डॉक्टरों की टीम को अन्य पर्वतारोहियों की मदद के लिए लगा दिया. टीम ने बारिश के बावजूद धीरे-धीरे जरूरतमंद लोगों को मदद पहुंचाने की कोशिश की. यह कई देशों के पर्वतारोहियों और बहादुर नेपाली शेरपाओं के साथ मिलकर सेना की टीम का एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास था ताकि हालात को काबू किया जा सके. इन्ही कोशिशों के दौरान हिमस्खलन की चपेट में आने वाले विदेशी पर्वतारोहियों के 18 शवों को बाहर निकाला गया. लेकिन सभी बदतर हालत में थे. पर्वतारोही अपने नुकसान का अंदाजा लगाने के बाद पवित्र सागरमाथा में एक बेहतर सुबह की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन भूकंप के ताजा झटके से एक और भारी हिमस्खलन हुआ और इस बार उसका निशाना बैस कैम्प था.
रविवार की सुबह सेना मुख्यालय में चर्चा थी- "एवरेस्ट से खबर बहुत अच्छी नहीं है.'' जब हमारे जवानों के साथ सब ठीक था, तभी एवरेस्ट से बड़े पैमाने पर हताहतों की संख्या की रिपोर्टस् आने लगी थी. कई परिवार पागलों की तरह सेना मुख्यालय में अपने परिचितों और दोस्तों को नेपाल में एवरेस्ट से ताजा खबर जानने के लिए लगातार कॉल कर रहे थे. दोपहर बाद मेजर जामवाल सम्पर्क करने में कामयाब हुए और उन्होंने "अच्छी खबर" दी- हमारे सभी जवान सुरक्षित थे, लेकिन हिमस्खलन की वजह से बेस कैम्प पर उपकरणों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था. बेस कैम्प में हुए नुकसान का ब्यौरा आने का इंतजार ही हो रहा था कि ख़बर आई टीम के सदस्य अपने अनुभव से फायदा लेते हुए दूसरे हिमस्खलन से बच गए हैं. उन्होंने पहले झटके के साथ ही सर्तकता और सावधानी का पालन किया और सुरक्षित स्थान की तरफ चले गए. उन्होंने दूसरे लोगों से भी ऐसा ही करने के लिए कहा और सुरक्षा बरती. हालांकि हिमस्खलन ने उनके टेंट, भोजन, ईंधन और पर्वतारोहण उपकरणों में से कुछ को तबाह कर दिया. नुकसान का अंदाजा लगाए जाने की कसरत किया जाना अभी बाकी था. उनके हाथ में एक बड़ा काम था- हिमस्खलन के मलबे में फंसे कई लोगों को निकालना.
सेना की टीम भी राहत कार्यों में शामिल हो गई. बारिश और भूकंप के झटकों के बावजूद टीम पीछे नहीं हटी और बचाव और राहत अभियान में जुट गई. टीम जोड़ों में विभाजित हो गई और कई अन्य पर्वतारोहियों के साथ मिलकर मलबे से जीवित बचे 61 विदेशी पर्वतारोहियों को बचाने में सफल रही. जो हेलीकाप्टर वहां उड़ान भर रहा था, उसमें आपातकालीन CASVAC यानी हताहत निकासी के लिए एक छोटी सी खिड़की थी. सेना मुख्यालय में अधिकारियों के अनुसार सेना की टीम ने एवरेस्ट यात्रा के साथी यात्रियों के साथ अपना भोजन और दवाइयां भी साझा की. खराब मौसम के बावजूद टीम वापस नहीं लौटी और लगातार लोगों को बाहर निकालने के लिए अभियान जारी रखा.
इस बीच दिल्ली में गुड़गांव निवासी एक 54 वर्षीय पर्वतारोही अंकुर बहल का परिवार दहशत में है. बहल और उनकी पर्वतारोही टीम कैम्प-1 में हिमस्खलन से बाल-बाल बच गई. हिमस्खलन तभी हुआ जब वे कैम्प-2 की तरफ बढ़ रहे थे. बहल और कई अन्य पर्वतारोही सिर्फ एक दो दिन के भोजन, दवाओं और बैटरी के साथ कैम्प-2 में फंसे हैं. बहल की पत्नी कई पर्वतारोहियों के संपर्क में रहीं और सेना कैम्प-2 में मौजूद बहल से संपर्क कर पाई थी लेकिन हिमस्खलन के साथ ही खराब हुए मौसम में उन्हें बेस कैम्प लाना चुनौती भरा काम है. क्योंकि बेस कैम्प-1 और उससे निकलने वाला रास्ता पूरी तरह से तबाह हो गया है. यह समय के खिलाफ एक दौड़ है.
लेकिन मरते दम तक यह टीम कभी ना नहीं कहती है. वे फिर से कोशिश करेंगे. उम्मीद है. भगवान का नाम और प्रार्थना हर जुबां पर है. और कल एक और दिन है.
आपकी राय