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Updated: 30 अप्रिल, 2015 08:44 AM
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नेपाल का एयरपोर्ट विदेशों से आई ऐसी कई मदद या कहें राहत सामग्री से भर गया है, जिसकी उसे अभी जरूरत ही नहीं है. इतने भयानक भूकंप के बाद बचाव और राहत अभियान को कैसे बेहतर ढंग से नियोजित करें, अभी तो यही चुनौती है.

नेपाल को जरूरत है टेंट की. शनिवार को तेज भूकंप के बाद से वहां तेज बारिश हो रही है. राम कुमार दहल नेपाल के गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख हैं. वे कहते हैं कि हमें विस्थापित लोगों के लिए बड़ी संख्या में टेंट चाहिए और हमारे पास पर्याप्त टेंट नहीं हैं. हमें खाना और नॉन फूड आइटम भी चाहिए. घायलों के लिए दवाएं चाहिए.

नेपाल के 22 जिलों में कई ऐसे इलाके हैं जिनसे अब तक कोई संपर्क नहीं हो सका है. वहां न तो बिजली है, न ही टेलीफोन चल रहे हैं. आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख कई जमीनी परेशानियां गिना रहे हैं.

एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में दहल ने बताया कि उनके पास बड़ी मात्रा में ऐसी राहत सामग्री पहुंच चुकी है, जिसकी फिलहाल बहुत कम जरूरत है. ऐसे में उस राहत सामग्री को संभालकर रखना और उसका हिसाब किताब रखना भी एक चुनौती है.  

क्या यह सच है कि नेपाल ने कुछ देशों की मदद ठुकराई है? दहल कहते हैं कि हमने उन्हें इनकार नहीं किया. हमने अपने विदेशी दोस्तों से यही कहा कि यहां एक योजना के साथ आईए. हमारे पास अभी हर किसी के लिए योजना नहीं है. फिलहाल 22-24 विदेशी सर्च और रेस्क्यू टीमें यहां हैं, जो पर्याप्त हैं. हमारा एयरपोर्ट ठसाठस भरा है. राहत और बचाव का काम अब स्थान केंद्रित होना चाहिए. हम नेपाल को मदद और लोगों के लिए डंपिंग ग्राउंड के तौर पर नहीं देखना चाहते. हमें पैसा चाहिए, इसीलिए प्रधानमंत्री आपदा कोष बनाया गया है. गद्दे, कंबल, खाना पकाने के बर्तन और सूखे मेवों जैसी चीजों की तुरंत जरूरत है. हमें ये चीजें देने का वादा किया गया है लेकिन अब तक ये हम तक नहीं पहुंची हैं.

प्रोफेशनल्स चाहिए-
हमें खास मेडिकल पेशवरों जैसे हड्डी विशेषज्ञों, न्यूरोलॉजिस्टों, सर्जनों, और एनेसथिसिया एक्सपर्टों के साथ एंटीबायोटिक, सर्जिकल उपकरणों और बिस्तरों की जरूरत है. हम उन चीजों को नहीं चाहते जिनकी हमें फिलहाल जरूरत नहीं है. ऐसी स्थिति में लोगों और सामान का प्रबंधन करना बहुत कठिन है. मदद के नाम पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गैरजरूरी सामान हम तक नहीं पहुंचाना चाहिए.

सबसे बड़ी चुनौतियां-
बचाव अभियान का प्रबंधन पहली चुनौती है. इसमें कुछ बाधाएं हैं. प्रभावित इलाका तो 22 पहाड़ी जिलों में फैला है. मौसम भी समस्या है. भूकंप वाली शाम से ही लगातार हल्की बारिश हो रही है. हम अब भी कई इलाकों तक नहीं पहुंच सके हैं. एक चुनौती अफवाहों का बाजार भी है. काठमांडू में भूकंप के बाद आने वाले झटकों और ताकतवर भूकंपों की अफवाहें भरी पड़ी हैं. इससे काम में बाधा आ रही है. कई जिलों से संपर्क नहीं हो पाया है क्योंकि वहां हालात बहुत खराब हैं और प्रशासनिक भवन शायद क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. टेलीफोन सिस्टम बंद है, बिजली नहीं है. ऐसे इलाकों तक सहायता पहुंचना मुश्किल हो रहा है.

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