ये हैं जीवन साथी पाने के नए ठिकाने
ऑनलाइन मैट्रिमोनी का भारतीय कारोबार अगले तीन साल में तिगुना होकर करीब 1,500 करोड़ रु. तक पहुंच जाएगा. सिंगल लोगों के लिए बनी वेबसाइटों की अपनी खास जगह बनती जा रही है.
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इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स की जमीन पर मेलजोल का नया चलन टी.एस. इलियट की द कॉकटेल पार्टी के पन्नों के हकीकत में उतरने जैसा है. एक पार्टी में इकट्ठे युवक-युवतियां—इसमें से एक युवक जूते और ऐप्स डिजाइन करता है, तो लड़की कपड़े डिजाइन करती है, हाथ में शराब का गिलास थामे कोने में खड़ा 25-26 वर्ष का लड़का उद्यमी है, तो उधर पेशे से वकील एक युवती कह रही है कि उसे अपने काम से नफरत है. एक 'पलायनवादी कलाकार' की मुलाकात कार रेसिंग का शौक रखने वाली लंबे और खूबसूरत बालों की मलिका से होती है. सिंगल लोगों की साइट द वर्ल्ड अलाइक ने 25 युवाओं को आपस में मेलजोल बढ़ाने के लिए चुना है. दक्षिण दिल्ली के चाणक्यपुरी के महंगे, शानदार होटल डिप्लोमैट की अमरेली की मद्धिम रोशनी में वे एक-दूसरे से घुलने-मिलने में अटपटा महसूस कर रहे हैं. पहली बार ऐसे मौके में शामिल हुआ एक शख्स जब युवक और युवतियों को अलग-अलग समूहों में सिमटते देखता है तो मजाक करता है, ''क्या कर रहे हैं, हम यहां एक दूसरे से मिलने आए हैं, तो जम के मिलते हैं यार!'' इसके साथ ही बार फिर से चहकने लगता है.
अनुमान है कि ऑनलाइन मैट्रिमोनी का भारतीय कारोबार अगले तीन साल में तिगुना होकर करीब 1,500 करोड़ रु. तक पहुंच जाएगा. फिर भी सिंगल लोगों के लिए बनी वेबसाइटों की अपनी खास जगह बनती जा रही है, क्योंकि ये जीवनसाथी चुनने का अलहदा और दिलचस्प विकल्प दे रही हैं, जिसमें परंपरागत तरीकों का थोपा हुआ एहसास नहीं है. दरअसल इसके जरिए वे 20 और 30 से ऊपर के सिंगल्स की हमसफर तलाशने की ऑनलाइन खोज को भुनाना चाहती हैं जो नए तरीकों की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आइएएमआइ) के अनुसार, वैवाहिक वेबसाइटों पर अपलोड की गई प्रोफाइलों की संख्या जनवरी, 2013 के 8.5 लाख से बढ़कर जनवरी, 2014 में 19.6 लाख हो गई थी, यानी सालभर में 130 फीसदी की बढ़त हुई. जहां इससे अकेले पुरुषों और महिलाओं की भारी संख्या का पता चलता है, वहीं यह जानकारी भी मिलती है कि वैवाहिक वेबसाइटें ही अब अकेला प्लेमटफॉर्म नहीं. मुंबई की एक कंसल्टिंग फर्म के मैनेजमेंट कंसल्टेंट राहुल वर्मा कहते हैं, ''वैवाहिक वेबसाइटों पर बातचीत पक्की करने का दबाव होता है.'' ओकेक्युपिड और टिंडर जैसे डेटिंग ऐप्स को इस्तेमाल करने वाले लोग भी हैं, लेकिन मुफ्त में उपलब्ध होने और खूबसूरती को ज्यादा तरजीह देने की वजह से इनके जरिए पनपे रिश्तों की कोई मंजिल नहीं होती. वर-वधू मिलान साइट आइल के संस्थापक एबल जोसफ के अनुसार, ''इस तरह की सेवाओं में नकली प्रोफाइल, अनगिनत इनवाइट्स, शगल की खातिर किए गए कॉल या संदेशों से जुड़ी मुश्किलें होती हैं, जिससे अक्सर यूजर्स की गरिमा को ठेस पहुंचती है.'' डेटिंग ऐप ट्रुली मैडली के संस्थापक सचिन भाटिया कहते हैं कि पश्चिमी मॉडल भारत में काम नहीं करते क्योंकि ''आज की ज्यादातर डेटिंग ऐप्स मौज-मस्ती के लिए साथी ढूंढने वालों के लिए हैं जो शक्ल और जगह पर आधारित हैं.'' यहां डेटिंग का चलन अब भी शुरुआती दौर में ही है और महिलाएं किसी के साथ समय बिताने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी चाहती हैं. गेटेड सिंगल्स समूह जिसमें दाखिल होने से पहले हर सदस्य की सही और पूरी जानकारी दर्ज की जाती है, आज के भारतीय परिवेश में संबंध जोडऩे का नया जरिया बन रहा है.
हर बात की होती है परख
इन वैकल्पिक सिंगल वेबसाइटों की नजर उस पीढ़ी पर टिकी है जो अपने मां-बाप की दखलअंदाजी से खुद को आजाद कर वयस्क संबंधों के नए आयाम की खोज में हैं और जो सिर्फ शगल के लिए साथ नहीं चाहते, बल्कि बीच का रास्ता चुनने के इच्छुक हैं.
ऐसी ही एक साइट फ्लोह समान शैक्षिक पृष्ठभूमि के लोगों को मिलाती है और इस सिलसिले में खाना बनाने-चखने के नाटकों से जुड़ी कार्यशाला, फूजबॉल या बोर्ड गेम नाइट्स का आयोजन करती है. मुंबई में 27 जून को ट्रुली मैडली ने भारत में पहले वर्चुअल डेटिंग स्पीड हैंगआउट का आयोजन किया. अ वल्र्ड अलाइक खजाने की खोज, हॉलीवुड क्विज या टैरो कार्ड पढऩे के जरिए लोगों के बीच आपसी परिचय का माहौल बनाती है जिसके बाद डेटिंग का सिलसिला खुद ही तैयार होने लगता है. SirfCoffee.com सहज माहौल पेश करती है जिसमें किसी पर कोई दबाव नहीं है और वे सिर्फ लोगों को एक-दूसरे से मिलाने भर की भूमिका पूरी करते हैं, मानो उनका काम इतना ही है. फुटलूज नो मोर एक गतिविधि केंद्रित समूह है जो मूवी नाइट्स या क्रिकेट मैच जैसे आयोजन कराता है.
इस तरह की खास डेटिंग की नई दुनिया में आयोजक उस भूमिका में अवतरित होते हैं जो कभी अभिभावकों की थी. वे सदस्यों की मर्जी के अनुसार रिश्तों के पहले कदम की शुरुआत कराते हैं जिसमें उनकी पृष्ठभूमि की सरसरी जांच के साथ ऐसा माहौल तैयार करना भी शामिल है, जिसमें रिश्ते पनप सकें. अ वल्र्ड अलाइक के सह-संस्थापक हिमांशु गुप्ता कहते हैं, ''हम खास ध्यान रखते हैं कि सभी को अच्छा समय मिले.'' अगर कोई किसी में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा तो वे उसकी मुलाकात दूसरे से कराते हैं.
मेहमानों की फेहरिस्त की सावधानी से जांच की जाती है क्योंकि इससे सदस्यों को सुरक्षित माहौल मिलता है. सभी विशिष्ट डेटिंग प्लेटफॉर्म सभी अहम जांच प्रक्रिया पूरी करने का दावा करते हैं. इसमें ट्रुली मैडली भी शामिल है जो मनोरंजन पर आधारित है और सामाजिक वर्गों का भेदभाव नहीं रखती. इसके संस्थापक सचिन भाटिया कहते हैं, ''लोग डेट्स पर जाना चाहते हैं, अच्छा समय बिताना चाहते हैं. लड़कियां, खासकर, लड़कों से मिलना तो चाहती हैं, पर उनके लिए सुरक्षा बहुत मायने रखती है.''अवल्र्ड अलाइक के 35 वर्षीय गुप्ता जो खुद सिंगल हैं, ऐसे इनवाइट को चुनते हैं जो उनकी कल्पना में बसी छवि से मेल खाती हो, ''ऐसी महिलाएं जो अपने जीवन में अच्छा काम कर रही हों और जिनके पास अच्छी सूरत के साथ योग्यता भी हो.''
बेंगलूरू स्थित फ्लोह की सह-संस्थापक सिमरन मंगाराम कहती हैं कि इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसमें शामिल होने वाले सदस्य पढ़े-लिखे, अच्छे परिवारों से हों, मुखर हों और कोई भी काम पूरी शिद्दत से करने का जज्बा रखते हों, क्योंकि दो लोगों के बीच बनने वाले रिश्ते की शुरुआत इसी तरह की आपसी बातचीत से होती है. वास्तव में, शर्मीले लोगों के लिए उनका काम सबसे अहम होता है और संभव है कि वे खामोशी की दीवार तोडऩे में 20 मिनट से अधिक का समय लें, लेकिन उसके बाद बातों का दौर चल पड़ता है. ''फ्लोह में एक-तिहाई सदस्य ऐसे हैं जो मां-बाप के बताने पर शामिल हुए हैं.''
ये साइट्स लोगों को परखने के बाद ही उन्हें सदस्यता देती है. आइल के जोसफ खुद को 'फुल टाइम मैचमेकर' कहते हैं. ''कई लोग परिवार का ख्याल करते हुए अपने ही समुदाय के शख्स से मिलने के इच्छुक होते हैं.'' वे अपनी जांच के दौरान ऐसे लोगों को छांट देते हैं जो अच्छी बातें नहीं कर पाते या 'भावनात्मक रूप से अपरिपक्व्य होते हैं. अगर ''गन्स एन रोजेज सुनकर आपके दिमाग में बंदूकें या गुलाब आए तो आप आइल में प्रवेश के हकदार नहीं.'' उन्होंने चुटकी ली.
वेबसाइटें टीवी प्रेरित कार्यक्रम की तर्ज पर भी डेटिंग का आयोजन करती हैं. जून में ट्रुली मैडली की स्पीड डेटिंग के मौके पर लाइफस्टाइल ब्लॉगर मालिनी अग्रवाल के लाइव गूगल प्लस हैंगआउट सत्र में भारत भर से नौ पुरुषों ने एक युवती को रिझाने की कोशिश की.
लोगों का इन साइट्स को लेकर आकर्षण बढ़ा है. फ्लोह की स्थापना 2011 में हुई थी. आज देश भर में इसके सदस्यों की संख्या 3,000 से ज्यादा है. इसका दावा है कि पिछले चार साल में इसने 71 जोड़ों को शादी के बंधन में बांधा है. सिमरन कहती हैं, ''हम फ्लोह के जरिए कराई जा रही शादियों में शामिल होने के लिए कई शहरों में गए हैं.'' नवंबर, 2014 में दिल्ली में शुरू हुए अ वल्र्ड अलाइक के सदस्यों में राजधानी के 65 लोग शामिल हैं और इसके समारोह में करीब 200 लोगों ने हिस्सा लिया. इस अगस्त से यह अपनी सेवाएं मुंबई तक बढ़ाने वाली है. फुटलूज नो मोर के पास 3,500 सदस्य हैं और यह 'टेलीफोन पर की गई अनौपचारिक बातचीत के जरिए लोगों को चुनती है.'' राष्ट्रीय स्तर पर ट्रुली मैडली के 5,00,000 डाउनलोड्स हैं. आइल 40 से अधिक देशों से 18,000 सदस्यों को चुनने का दावा करता है जिनमें सबसे ज्यादा बेंगलूरू में हैं.
भीड़ में भी अकेले
यह ऐसी पीढ़ी है जो साथ रहने के सवाल को सीधे-सादे ढंग से नहीं बांचती. जीवन का पूर्ण होना सिर्फ शादी से नहीं जुड़ा. फ्लोह की सिमरन कहती हैं, ''ऐसे मेलजोल की जरूरत तब होती है जब शादी या जगह बदलने के कुछ वर्षों बाद 'दोस्ती मुर्झाने लगती है' और आपको नए लोगों से मिलने की जरूरत महसूस होती है. सोशल साइट्स के जरिए कराई जा रही ज्यादातर मुलाकातें दोस्तों या परिवार के माध्यम से होती हैं. इनके जरिए भी तलाश पूरी नहीं होती तो आपके पास कोई और उपाय नहीं होता.''2014 में भारत में फ्लोह के कराए एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि युवकों की तुलना में युवतियां ज्यादा मीन-मेख निकालती हैं और ''मां-बाप को अपने बेटे-बेटियों के शादी से पहले के रिश्तों की जानकारी नहीं होती.'' गौर करने वाली बात है कि प्रतिभा और धन में जीत का परचम प्रतिभा के हाथ आया और ''शहरी शादियों में जाति से जुड़ा मसला भी अब खास मायने नहीं रखता.''
34 वर्षीया फैशन डिजाइनर मीता (बदला हुआ नाम) न्यूयॉर्क फैशन एकेडमी से पढ़ाई पूरी करके हाल ही में भारत लौटी हैं और थोड़े ही समय में यहां पुरुषों और उनके मिले-जुले संकेतों से इतना ऊब गईं कि सात साल अकेले जिंदगी बिताने के बाद अब उन्होंने व्हाट्सऐप पर 'मिक्स्ड सिग्नल्स नाम का एक समूह बनाया है जो दोहरी शख्सियत वाले पुरुषों से जुड़ी कहानियों को साझा कर रहा है. वे कहती हैं, ''मैंने सभी वैवाहिक साइटों के माध्यम से पुरुषों से मुलाकात की, यह बेहद थकाऊ है. कुछ ने उनसे अपने तलाक की बात छिपाई. ''कुछ आपके शौक क्या हैं'' जैसे सवालों की फेहरिस्त के साथ पहुंचे थे. सवालों की फेहरिस्त ढो रहे लोगों के साथ दिलचस्प बातचीत नहीं हो सकती.'' मीता फ्लोह, अ वल्र्ड अलाइक और आइल की सदस्य हैं.
देखा जाए तो ये खास डेटिंग प्लेटफॉर्म समय की कमी से जूझ रहे युवाओं की सामाजिक जरूरत को पूरा कर रहे हैं. मुंबई स्थित प्रबंधन सलाहकार राहुल वर्मा जीवनसाथी की तलाश में जांचने-परखने के तनाव से खुद को आजाद रखने के लिए फ्लोह का इस्तेमाल करते हैं. वे कहते हैं, ''वास्तव में किसी से मुलाकात करने की संभावना बेहिसाब है. मैं हर महीने करीब दर्जन भर महिलाओं से मिलता हूं. इससे न सिर्फ समय की बचत होती है, बल्कि सही लोगों से मुलाकात करने का भी मौका मिलता है.'' फिर भी, जिन पर सोशल मीडिया का जुनून सवार है, उनमें इन साइटों की दीवानगी भी होती है—ये साइट प्रोफाइल की जांच करने के लिए ट्विटर, लिंक्डइन और फेसबुक का ही इस्तेमाल करते हैं. अध्ययनों से पता चलता है कि इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल अकेलेपन को और बढ़ा देता है. 2013 में मिशिगन यूनिवर्सिटी के सामाजिक मनोवैज्ञानिक एतान फ्रॉस के अध्ययन में पता चला कि फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट आदमी की सामाजिक मेलजोल की बुनियादी जरूरत को पूरा करने का अमूल्य जरिया हैं, लेकिन ''लोगों की भलाई करने की बजाए फेसबुक का इस्तेमाल उल्टे नतीजे दे रहा है.'' यह उसे नजरअंदाज कर रहा है. दिल्ली की मनोवैज्ञानिक गीतांजलि कुमार कहती हैं, ''शहरीकरण, प्रवास और एकल परिवार लोगों का अकेलापन बढ़ा रहे हैं. खासकर शहरों में. लोगों से मिलना-जुलना और उनसे जुडऩा एक चुनौती है. दिल्ली जैसे शहरों में सुरक्षा महिलाओं के लिए बड़ी चिंता है. ऐसे में अगर कोई आपके लिए किसी शख्स को जांच परख कर उसके साथ बाहर जाने या घूमने-फिरने के लिए आश्वस्त करता है तो इससे बढ़कर सुकून नहीं.''
आप किस समूह का हिस्सा हैं?
सदस्यों को प्रोफाइलिंग से कोई परहेज नहीं, साथ ही उन्हें पैसे देने से भी गुरेज नहीं. चाणक्यपुरी में अ वल्र्ड अलाइक के समारोह में मौजूद उद्यमी मोहित ऐसे मौकों का इस्तेमाल लंबे संबंध बनाने के लिए युवतियों को परखने की खातिर करते हैं और उन्हें अस्वीकृति से कोई उलझन नहीं होती. गुप्ता नए लोगों को शामिल करने से पहले मौजूदा सदस्यों की राय लेते हैं. छह माह से साल भर तक की फीस 15,000 से 24,000 रु. के बीच है जिसमें मासिक रात्रिभोज, शो और विभिन्न गतिविधियों के लिए अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है. इस तरह इन प्लेटफॉर्म पर इससे कम आर्थिक स्रोत के लोग खुद ही छंट जाते हैं. हालांकि पत्रकारों, उद्यमियों और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों को शामिल करने के लिए ये छूट की पेशकश भी करते हैं.
डिजाइनर मीता कहती हैं कि जब समूह आपको कबूल करता है तो आप अच्छा महसूस करते हैं यानी आपको सराहा गया है. अ वल्र्ड अलाइक में खूबसूरती को भी तरजीह दी जाती है. वे कहती हैं कि खूबसूरत लोगों के समूह का हिस्सा बनने से उन्हें गर्व महसूस होता है. यह वर-वधू की परंपरागत वर्गीय और जातिगत तलाश से परे उभरता एक उदार चलन है. मुंबई में फ्लोह के विज्ञापन विभाग में कार्यरत 32 वर्षीय आमोद दानी कहते हैं कि उन्हें सबसे ज्यादा उत्साह इस बात का है कि उन्हें विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के साथ मुलाकात करने का मौका मिलता है.
प्यार की नई पींग कुछ ऐसे पड़ती है कि उसने मेरी प्रोफाइल देखी तो मैंने उसकी. बेंगलूरू की जनसंपर्क सलाहकार, 28 वर्षीया रीति रे की मुलाकात अपने पति 32 वर्षीय अर्नब साहा से आइल पर हुई थी. रिटेल कंपनी रूश में ट्रेनिंग मैनेजर के रूप में काम करने वाले साहा रीति के मन में बसी छवि के बेहद करीब थे. लिहाजा उसने आइल के जरिए मुलाकात के लिए फीस भर दी. रीति कहती हैं, ''मुझे ऐसा लगा मानो मैं किसी पुराने दोस्त से बात कर रही हूं. '' उसके मां-बाप वैवाहिक वेबसाइटों पर उसका प्रोफाइल पोस्ट करते समय उसकी लंबाई वगैरह के बारे में गलत जानकारी डाल रहे थे.
अ वर्ल्ड अलाइक की सह संस्थापक देवीना बधवार कहती हैं, ''यह एक वैश्विक सचाई है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपकी शख्सियत कितनी शानदार है या आप पर कितने लोग फिदा हैं, दरअसल जो बात मायने रखती है वह है एक साथी की तलाश.'' सोशल मीडिया के दीवानों और उनकी लोकप्रियता के अलावा गेटेड सिंगल्स प्लेटफॉर्म एक सार्वभौमिक सत्य पेश कर रहे हैं—एक ऐसा समाज जहां मेलजोल की ललक जीवंत हो रही है.
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