New

होम -> समाज

 |  1-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 05 नवम्बर, 2015 10:34 AM
प्रेयांसी मणि
प्रेयांसी मणि
  @preyansi.mani
  • Total Shares

मैं कल साड़ी पहनकर एक कैफे में बैठी थी. पुरुष हो या महिला, हर कोई मुझे घूर रहा था, मुझे खीज हो रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे मैंने कोई अपराध किया हो. इसलिए इस तस्वीर को देखने का मेरा नज़रिया ज़रा अलग है. आश्चर्य है...मेरी पीढ़ी ने साडी पहनना कैसे छोड़ दिया!! मेरी मां की पीढ़ी में साडियां हर जगह थीं. चाहे साइकिल चलाना हो, रोजमर्रा के काम हों, काम पर या पार्टी में जाना हो, चाहे कॉलेज जाना हो, साड़ी पहनना कोई बड़ी बात नहीं थी. अब जब मैं हर रोज साड़ी पहनती हूं तो मुझे इस तरह की बातें सुनने मिलती हैं- 'क्या तुम कहीं जा रही हो?', ' क्या आज कुछ खास है?', 'क्या कोई कार्यक्रम है?', 'क्या तुम एयर होस्टेस हो?' महिला हो या पुरुष, मुझे घूरने में कोई कमी नहीं करता.

saree_110415022200.jpg
                                               नयी पीढ़ी को साड़ी पहनने में परेशानी महसूस होती है

एक और बात तो बहुत ही हास्यास्पद है- 'अच्छा तो अब तुम्हारी शादी हो गई है, इसलिए'. जैसे साड़ी पहनना शादी के बाद किया जाने वाला काम हो.

और इसके बाद रोना-पीटना- 'ओह, इससे कितनी परेशानी होती है', 'कितना टाइम लगता है', 'तुम इतने अच्छे से कैसे बांध लेती हो?'

मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि साड़ी पहनने से न कोई पारंपरिक बनता है और न कोई भारतीय, इसे पहनकर न कोई कूल लगता है, और न ही इससे कोई शादीशुदा या कुंवारा बनता है. ये सुंदर और आरामदेह पहनावा है, जिसे पहनकर मैं खूबसूरत, सशक्त और स्वतंत्रता का अनुभव करती हूं. मुझे इससे प्यार है. और ये सिर्फ अपनी पसंद है.

 

#साड़ी, #महिलाएं, #परिधान, साड़ी, महिलाएं, परिधान

लेखक

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय