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Updated: 28 मार्च, 2021 11:29 AM
अनु रॉय
अनु रॉय
  @anu.roy.31
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जितनी मुलायम मुस्कान उतना ही आत्मविश्वास लिए जब प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डेन बोल रही थीं न्यूजीलैंड की पार्लियामेंट में कि, 'The grief that comes with miscarriage is not a sickness; it is a loss, and that loss takes time - time to recover physically and time to recover mentally,' तब उनको सुनते हुए ऐसा लगा, दुनिया को दरकार है जैसिंडा जैसे नेताओं की. जो किसी राष्ट्र के सबसे बड़े पद पर रहते हुए भी अपने अंदर के इंसान को बचाए रखने में कामयाब हैं.

ये कितनी दारुण बात है कि कोई मां अपना बच्चा खो देती है या बच्चे को जन्म देती है लेकिन वो बच्चा मर जाता है या मरा हुआ ही जन्म लेता है, तो इस कंडिशन में मांओं को सीक-लीव लेनी पड़ती है. जबकि हक़ीक़त ये है कि ऐसी मांएं उस वक़्त बीमार नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े दर्द से गुजर रही होती हैं. एक ऐसा दर्द जिसके लिए कोई स्वर नहीं रच पाया स्वयं ईश्वर भी. फिर ऐसे में जो माताएं नौकरी कर रही होती हैं उन्हें अपनी ‘सीक-लीव’ में से छुट्टी लेनी पड़ती है.

 Jacinda  Ardern, New Zealand, Prime Minister, Mother, Kid, Abortion, Vacationमहिलाओं के गर्भपात पर जो फैसला न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री ने लिया है वो दिल को छू लेने वाला है

ऐसा सिर्फ़ न्यूजीलैंड नहीं बल्कि दुनिया के सभी देशों में होता है. लेकिन आज के बाद न्यूजीलैंड में ये बदल जाएगा. अब वहां जो माताएं अपने बच्चे को जन्म देने से पहले खो देगी या जिनका गर्भपात हो जाएगा उन्हें तीन दिन की ‘Paid leave’ मिलेगी. यानी उन्हें छुट्टी तो मिलेगी ही उसके साथ सैलरी भी मिलेगी. इतना ही नहीं उस स्त्री के पार्ट्नर को भी ये सहूलियत दी जाएगी.

आज के समय की सबसे सुंदर बात यही है. और सिर्फ़ न्यूजीलैंड ही क्यों दुनिया के सभी देशों को इससे इंस्पायर होना चाहिए. स्त्रियों के हक़ की बात सिर्फ़ हवा में नहीं बल्कि ज़मीनी स्तर पर हो तो कोई बात बने.

जैसिंडा ने अपनी बात को ख़त्म करते हुए जब ये कहा, 'I can only hope that while we may be one of the first, we will not be one of the last, and that other countries will also begin to legislate for a compassionate and fair leave system that recognises the pain and the grief that comes from miscarriage and stillbirth.” तो यक़ीन हुआ कि दुनिया में पॉलिटिक्स सिर्फ़ सत्ता और कुर्सी का खेल नहीं बल्कि इसे स्त्रियों के उत्थान के लिए भी किया जा सकता है. मोदी जी भी कुछ ऐसा करें तो इत्मिनान सा लगेगा.

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लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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