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Updated: 08 जून, 2022 05:26 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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निर्मल पाठक की घर वापसी (Nirmal Pathak Ki Ghar Wapsi) वेब सीरिज में एक किरादार है 'संतोषी' जो निर्मल पाठक की मां हैं. इस किरदार को अलका अमीन ने निभाया है. इनसे बेहतर कोई इस रोल में फिट नहीं बैठता. मन को मारती हुई एक स्त्री जो परिवार के लिए इतने त्याग करती है कि वह खुद को ही भूल जाती है. वह महिला जिसका पति 24 साल पहले उसे छोड़कर जा चुका है. जो पति के इंतजार में एक उम्र गुजार देती है. जो अपने बेटे को अपना दुलार देने के लिए तरस जाती है. संतोषी दो देखकर कोई भी कह सकता है कि माएं तो ऐसी ही होती है.

जब निर्मल 24 सालों बाद घर आता है तो वह संतोषी घूंघट किए एक थाल में पानी लेकर आती है और धीरे से पास आकर एक थाल में उसके पैरों को धोती है फिर अपने आंचल से पोछती है. ऐसा पहले के जमाने में होता था जब कोई मेहमान आता तो उसके पैर धुले जाते थे. इसके बाद निर्मल अपने दादा से पूछता है कि मां कहां है? तब दादा धीरे से इशारा करते हैं कि वही मां है.

वह जब रूकती है और उसके चेहरे से आंचल हटता है तो लगता है कि सीधे सामने मां की मूरत खड़ी हो. उम्र की ढलान पर आंखों के नीचे झुर्रियों के साथ सांवली सी रंगत वाली एक महिला चेहरे पर मुस्कान लिए अपने बेटे का दिल खोलकर स्वागत कर रही है. वह भोजपूरी में कहती है 'एतना दिन से कबो मां के याद न आइल. आव इहां आव...अपनों से दूर अकेले रहने वाली मां के चेहरे पर शिकायत कम है प्यार ज्यादा है.

 Nirmal Pathak Ki Ghar Wapsi, SonyLIV, Vaibhav Tatwawadi, Garima Vikrant, Akash Makhijaक्या आपने कभी गांव की उस महिला को गौर से देखा है जिसने अपनी पूरी उम्र पति से दूर होकर गुजार दी हो

संतोषी का जैसा नाम है वह एकदम वैसी ही हैं. वे अपने अंदर दर्द को छिपाए हमेशा मुस्कुराती रहती हैं. वे दिन भर घर के काम ही करती रहती हैं. उनकी आवाज में ममता टपकती है. उनके अंदर कोई बनावटीपन नहीं है. वह भोली हैं. जो कभी किसी से शिकायत नहीं करतीं. 'निर्मल पाठक की घर वापसी' वेब सीरीज लोगों को काफी पसंद आ रही है. इसे आप सोनी लिव पर देख सकते हैं.

जिसमें गांव की हंसी वादियों के साथ आप वहां के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को भी समझ सकते हैं. आईचौक इस सीरीज के बारे में पहले ही लिख चुका है. मैं यहां उन महिला किरदारों के बारे में बात कर रही हूं जो आज भी कई घरों में देखने को मिल जाती है.

राहुल पांडे और सतीश नायर के निर्देशन में बनी वेब सीरीज 'निर्मल पाठक की घर वापसी' में महिलाओं की जिंदगी पर एक बेहतरीन कटाक्ष किया गया है. इसमें सबसे नाम संतोषी मां का ही आता है. जो भोर में सबसे पहले उठकर रसोई में जाकर चाय बनाती है, जबकि सारे घरवाले आराम से सो रहे होते हैं. ऐसा वह तबसे कर रही है जबसे शादी करके आई है. शायद उसे भी यह बात अच्छे से पता है कि अगर वह अपने ससुराल में काम नहीं करेगी तो किसके रहमों करम पर रहेगी, क्योंकि ना पास में ना पति है और ना ही बेटा.

संतोषी किसी तीज त्योहार की खुशी में शामिल नहीं हो पाती. क्योंकि घर संभालने की जिम्मेदारी से वह बाहर नहीं निकल पाती. वह यह सब करके खुद को व्यस्त रखती हैं. उसे किसी चीज का कोई फर्क नहीं पड़ता. वह बीमारी में भी बेटे से पूछती है खाना खइल ह? वह उतना ही बोलती है जितना कोई पूछता है. वह कम बोलती है. इसलिए शायद वो खुद से अकेले में बात करती है रोती है. वह डिप्रेशन में है लेकिन यह बात किसी को घर में पता नहीं है.

वह निर्मल पर अपने 24 सालों का प्यार लुटाना तो चाहती है लेकिन उसके अंदर एक झिझक है जैसे वह किसी के ऊपर अपना अधिकार जताना जानती ही नहीं है. वह हर वक्त रसोई में खाना बनाती है. चावल साफ करती है. बर्तन साफ करती है.

निभा जैसी लड़कियां आज भी कई घरों में घुट रही हैं

संतषी के कामों में उसकी मदद करती है निभा जो निर्मल की चचेरी बहन है. निभा काफी होनहार लड़की है. वह थोड़ा ज्यादा बोलती है और यह बात उसके पिता को अच्छी नहीं लगती है.

उसके भाई घर का कोई काम नहीं करते लेकिन वक्त निभा ये कर दे, निभा वो कर दे, निभा पानी ला दे, निभा खाना ला दे...यही करते हैं. घर के सभी भाई सुबह गरम-गरम नाश्ता करते हैं और सबको नाश्ता निभा ही करवाती है. वह घर के पुरुषों की एक आवाज पर भागती रहती है. वह भाइयों के भोजन कर लेने के बाद ही खाती है. यहां तक एक गिलास पानी के लिए भी भाई उसका नाम चिल्लाते हैं. वहीं पिता घर आते ही उससे हर बार कुछ ना कुछ काम दे देते हैं. जबकि भाई घटिए पर पड़ा आराम फरमाता है. निभा को अपने साथ होने वाला भेदभाव साफ महसूस होता है लेकिन उसे पता है कि वह कुछ कर नहीं सकती है.

एक दिन शहर से आया निर्मल यह नियम बनाता है कि आज से सभी लोग खाते समय अपना पानी खुद लेकर बैठेंगे, यह बात तब निभा के पिता को पता लगती है तो वे नाराज हो जाते हैं. वहीं जब निर्मल और उसके चचेरे भाई के बीच मनमुटाव हो जाता है तो वह निभा का भाई उससे पानी मांगता है, इस पर वह कहती है कि निर्भल भइया का रूल भूल गए क्या तो वह उसपर चिल्ला देता है. वह कहता है कि जा पानी ला...वह रोती हुई पानी लेने चली जाती है. निभा पढ़कर कलेक्टर बनना चाहती है लेकिन घर में उसकी शादी की बातें की जाती हैं.

विधायक की बेटी का किरदार

इस सीरीज में एक किरदार है विधायक की बेटी का. जिसकी शादी करवाने के लिए उसके पापा उसका कॉलेज बीच में ही छुड़वा देते हैं. वह अभी शादी नहीं करना चाहती है लेकिन उसे वही करना पड़ती है जो पिता चाहते हैं. उसकी शादी बिना उसकी मर्जी से निर्मल के भाई लक्ष्मण से तय कर दी जाती है. लक्ष्मण भी रूढ़िवादी सोच रखता है. वह निर्मल को पसंद नहीं करती है. वह छिपकर एक पार्लर में काम करती है, क्योंकि वह अपनी पहचान बनाना चाहती है.

वह एक बार निर्मल को बताती है कि उसे यह रिश्ता पसंद नहीं है. उसे सबकुछ पिता की पसंद का करना पड़ता है. क्या कपड़ा पहनना है, किस रंग का पहनना है, कब आना है, कब जाना है...यहां तक कि किससे शादी करनी है सबकुछ पापा ही तय करते हैं. हमारी मर्जी के बारे में तो कुछ पूछा ही नहीं जाता. हमें पिता की पसंद को ही अपनी पसंद बनानी पड़ती है.

बचपन से हम यही करते आ रहे हैं. वह लाख कोशिश करती है लेकिन उसकी शादी नहीं रूकती. शादी के लिए विधायक पिता दहेज देते हैं और निर्मल को कहते हैं कि गिफ्ट को दहेज नहीं कहा जाता. वह कैसे भी शादी करके अपना बोझा हल्का करना चाहते हैं और अपनी राजनीति को फायदा पहुंचाना चाहते हैं. विधायक की पत्नी पति के पैर पकड़कर बेटी की जिंदगी की भीख मांगती है लेकिन वह उसे पैरों की जूती समझकर धक्का दे देता है.

संतोषी मां का किरदार तपती धूप में ठंडी छांव का एहसास कराता है. वह निर्मल से पति की आवाज सुनाने की आस लिए परा दिन 9 बजने का इंतजार करती हैं. जब निर्मल पूछा कि मां क्या आपको लगा था मैं कभी आउंगा. इस पर वह कहती हैं काहें नाही...आज तू आईल ह...एक दिन उहों अइहें...वह बिंदी, मंगलसूत्र, सिंदूर लगाती है ताकि अशुभ ना हो जाए. जब लोग कहते हैं कि उनके पति अब जिंदा नहीं हो तो वह मानती नहीं है. जिसने 24 साल इस आस पर बिता दिए हों उसे अपनी पति का मौत पर कैसे रिएक्ट करना चाहिए. जब निर्मल गुस्सा होकर वापस जान को कहता है तो संतोषी मां कहती हैं कि 'छोड़ के गईल आसान और निभावल मुश्किल...'

एक दिन निर्मल पूछता है कि मां तुम हमारे साथ क्यों नहीं आई? तो वह कहती है कि हम घर के पतोहू हईं. हम चल जाएब तो घर टूट जाई. घर बिखर जाई. हमार यहां शादी भइल. हम कहीं नाही जाएब. हम इ घर के आंगन हई और आंगन टूट के ना चाहीं.

संतोषी वह महिला जो कहने को तो वह घर की बड़ी बहू है, जेठानी है, भाभी है और बड़ी मम्मी भी है लेकिन असल में अकेली है. दूसरी है निभा...जो पढ़लिख कर कलेक्टर बनना चाहती है लेकिन उसके घरवाले उसकी जल्दी शादी कराने की बात करते हैं.

क्या आपने कभी गांव की उस महिला को गौर से देखा है जिसने अपनी पूरी उम्र परदेशी पति से दूर होकर गुजार दी हो. पति कमाई करने के लिए शहर चला जाता है और बच्चे एक समय के बाद पहले पढ़ाई फिर नौकरी के लिए दूर हो जाते हैं. सब घर छोड़कर चले जाते हैं लेकिन वह घर में रह जाती है. कभी अकेले तो कभी घर के बाकी लोगों के साथ. उसकी दुनिया बस वह गांव, घर और कुछ पड़ोसी बन जाते हैं. वह अपनी इच्छाओं को मार लेती है, क्योंकि वह अपने आप को पूरी तरह परिवार के लिए सौंप चुकी होती है.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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